18 लाख के शाहतूश शॉल का मुद्दा कश्मीर चुनावों में क्यों उठा सबसे गर्म और नर्म

Kashmir Elections2024: कश्मीर चुनावों में प्रचार की गर्मी के बीच पीडीपी की चीफ मेहबूबा मुफ्ती ने नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला पर शाहतूश को बैन करने का आरोप लगाया. घाटी के लिए शाहतूश एक दुखती रग है. जानते हैं इसके बारे में सबकुछ

18 लाख के शाहतूश शॉल का मुद्दा कश्मीर चुनावों में क्यों उठा सबसे गर्म और नर्म
हाइलाइट्स कश्मीर में शाहतूश शॉल को बनाना और बेचना बैन है, एक जमाने में ये हजारों को रोजगार देता था दुनिया का ये सबसे बेहतरीन ऊन तिब्बत के एक खास नस्ल के हिरण से निकाला जाता था शाहतूश शॉल की कीमत 4.5 लाख से लेकर 18 लाख रुपए के आसपास होती है, ये बहुत गर्म और मुलायम कश्मीर विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान में गर्मी बढ़ रही है. आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की चीफ महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर आरोप लगाया कि उन्हीं के कारण राज्य के फलते-फुलते शाहतूश शॉल उद्योग पर बैन लगा. उन्हीं की वजह से पिछले दो दशकों से कहीं ज्यादा समय से राज्य में शाहतूश के बनने वाले शॉल बनने बंद हो गए. जिससे हजारों लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ. आखिर ये शाहतूश है क्या, जो इस बार चुनाव का मुद्दा बन रहा है. हालांकि ये एक ऐसा मुद्दा है, जो राज्य में काफी असर डाल सकता है. दरअसल दो दशक से पहले तक कश्मीर में शॉहतूश शॉल की इंडस्ट्री बड़ी शॉल इंडस्ट्री थी, जिससे हजारों महिलाओं को रोजगार मिला हुआ था. ये काफी महंगा शाल होता था, जिसके राज्य में काफी पैसा भी आता था लेकिन वर्ष 2003 के आसपास में शाहतूश के उत्पादों पर बैन लग गया, तब से इसे लेकर कश्मीर में बराबर नाराजगी बनी रहती है, खासकर उन महिलाओं में, जिनके लिए ये आमदनी का बड़ा जरिया था. दो दशकों से राज्य में इसे लेकर कई बार आवाज उठी कि इस पर लगा प्रतिबंध हटाया जाए ताकि ये उद्योग फिर से जिंदा हो सके, अन्यथा कश्मीर की एक कला भी साथ साथ लुप्त हो जाएगी. इस बैन के खिलाफ कश्मीर में स्थानीय स्तर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई भी लड़ी गई लेकिन हर जगह मायूसी ही हाथ लगी. नतीजतन अब मुश्किल ही है कि शाहतूश पर लगा बैन खत्म हो पाए. अब जानते हैं कि शाहतूश है क्या और इससे कैसे वो शॉल बनाया जाता था, जो पश्मीना को भी मात देता था. सवाल – क्या होता है शाहतूश, ये किससे मिलता है? – दरअसल शाहतूश एक किस्म का ऊन है, जो बहुत मुलायम है और बहुत गर्म भी. शाहतूश का मतलब होता है ऊन का राजा. इसको पश्मीना से कहीं ज्यादा बेहतर माना जाता है. ये ऊन चिरू नामक एक तिब्बती हिरण से मिलता है. माना जाता है कि इसके लिए इस हिरण को मार दिया जाता है. चिरू के प्रत्येक नथुने में ऑक्सीजन-रहित हवा में सांस लेने के लिए विशेष थैलियां होती हैं. उनके पास माइनस 40 डिग्री तापमान के लिए मोटी ऊन भी होती है. यह रेशों के वे महीन धागे हैं – चिरू ऊन में किसी भी जानवर की तुलना में सबसे कम माइक्रोन होते हैं – जो इसे गर्म, हवादार और वांछनीय बनाता है. सवाल – शाहतूश शॉल पर बैन क्यों लगा दिया गया, इसका कानून क्या है? – एक जमाने में कश्मीर में ऐसे चिरू हिरण की संख्या 10 लाख के आसपास थी, जो अब भारत से लेकर तिब्बत तक 70000 के आसपास बची हुई है. हालांकि कश्मीर में अब इनकी संख्या कुछ सौ में ही बताई जाती है. इसे भारत में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत सर्वोच्च सुरक्षा दी गई है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में वन्य वनस्पतियों और जीवों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआईटीईएस) भी इस प्रजाति से बने उत्पादों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाता हैदुनिया में शाहतूश ऊन को सबसे बेहतरीन माना जाता है. इसके बाद विकुना ऊन है. सवाल – शाहतूश शॉल या उत्पाद बनाने के लिए तिब्बती हिरण को मार क्यों दिया जाता है? – दरअसल चिरू हिरण आसानी से पकड़ में नहीं आता. इस वजह से उसके बाल काटना बहुत मुश्किल काम है. इस कारण उसका ऊन निकालने के लिए इस हिरण को मार दिया जाता है. माना जाता है कि एक शाहतूश शॉल बनाने के लिए 4-5 चिरू हिरणों की बलि दे दी जाती है. 20वीं सदी के उत्तरार्ध में चिरु की आबादी में 90 फीसदी की भारी गिरावट के कारण वर्ष 2016 तक वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में वर्गीकृत कर लिये गए. उसके ऊन का इस्तेमाल गर्म कोट से लेकर शानदार स्कार्फ और शॉल बनाने के लिए किया जाता है. हालांकि 1979 से सीआईटीईएस के तहत शाहतूश का उत्पादन, बिक्री अवैध मानी जाती रही है. हालांकि चोरी छिपे अब भी शाहतूश ऊन के लिए चिरु हिरण का शिकार होता है. काले बाजार में शाहतूश शॉल की कीमत $5,000 (4.5 लाख रुपए) से लेकर $20,000 (18 लाख रुपए) तक होती है. सवाल – कैसी होती है ये शाहतूश शॉल, क्यों इसकी मांग पैसेवालों के बीच खूब होती है? – शाहतूश नाम ही राजसीपन को दिखाता है. इससे बना हर शॉल, नाजुक और अलौकिक माना जाता है. ये भी ऐसा होता है कि पश्मीना की तरह किसी अंगूठी जितनी पतली जगह से निकल जाए. न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे लेकर एक रिपोर्ट छापी, जिसमें बताया गया, इसका वजन लगभग कुछ भी नहीं है. यह एक डाउन कम्फ़र्टर की तरह गर्म है. यह कागज़ की पतला है. हालांकि कहा जाता है कि पहले शाहतूश के लिए ऊन अहिंसक तरीके से प्राप्त की जाती थी. तब चिरू मृग जहां जहां अपने बाल गिराता था, उसको इकट्ठा करके बेचा जाता है लेकिन बाद में लोगों ने लालच में ज्यादा ऊन हासिल करने के लिए उसको मारना शुरू कर दिया. सवाल – पश्मीना और शाहतूश में अंतर क्या होता है? – पश्मीना और शाहतूश के शॉल एक जैसे लगते हैं. पश्मीना ऊन चंग्रा (पश्मीना) बकरी के अंदरूनी भाग से प्राप्त की जाती है, जो आमतौर पर लद्दाख क्षेत्र में मिलती है. वैसे पूर्वी हिमालय में पाई जाने वाली चेगू नस्ल की बकरी से भी पश्मीना ऊन का उत्पादन होता है. हालांकि पश्मीना ऊन को बहुत गर्म और मुलायम माना जाता है लेकिन शाहतूश इससे कई कदम आगे है. तिब्बत के दुर्लभ हो रहे चिरू हिरण, जिनसे शाहतूश ऊन बनाया जाता है. सवाल – सुप्रीम कोर्ट में भी शाहतूश से जुड़ा मामला पहुंचा था, वहां क्या हुआ और इसका धंधा अब कैसे होता है? – वर्ष 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक फैसले की सुनवाई करते हुए शाहतूश शॉल के उत्पादन और व्यापार पर कड़ाई से प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि दिल्ली और कई जगहों पर लगातार छापेमारी में शाहतूश के शॉल और उत्पाद जब्त किए जाते रहे हैं, जिससे लगता है कि कश्मीर में इसके व्यापारियों और बुनकरों का गुप्त नेटवर्क जारी है, जो कई देशों तक चोरी छिपे शाहतूश शॉल भेजते हैें. कहा जाता है कि शाहतूश ऊन हासिल करने के लिए जिस तरह चिरू को मारना पड़ता था, उसको देखते हुए चिरू को मारने पर 1970 के दशक से प्रतिबंध लगा दिया गया. 90 के दशक तक शाहतूश हर जगह थे: दिल्ली की बढ़िया दुकानों से लेकर हांगकांग और न्यूयार्क के महंगे शोरूम्स तक. लेकिन फिर इस पर और कड़ा प्रतिबंध लगा दिया गया, जिससे ये पूरा व्यावसाय ही ठप हो गया. सवाल – क्या शाहतूश के शॉल अब भी काले बाजार में बिक रहे हैं? – वैश्विक स्तर पर कार्रवाई के बावजूद, इस लग्जरी परिधान की मांग अभी बनी हुई है. पिछले साल केवल एक महीने के अंदर दो पुलिस स्टिंग ऑपरेशन में दिल्ली और लद्दाख में लगभग 400 शातूश पकड़े गए. भारतीय अधिकारियों के अनुसार, 2000 से 2014 के बीच यहाँ 738 शॉल जब्त किए गए. 2018 से 2019 के बीच कम से कम 300 शॉल जब्त किए गए. सोशल मीडिया पर शाहतूश का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, जिसका पता लगाना कठिन है. सवाल – सदियों से कैसे हिरण का शिकार करके शाहतूश शॉल बनाया जाता रहा है? सदियों से, एशिया भर में खानाबदोश लोग चिरू के विशाल झुंडों का शिकार करते थे, फिर खाल को भारत के कश्मीर क्षेत्र में भेजते थे, जहां कारीगर इस ऊन से शॉल, स्टोल और स्कार्फ बनाते थे. इस व्यापार में लगभग एक दर्जन चरण हैं, जिसमें अक्सर पूरा परिवार भाग लेता है. पुरुष ऊन इकट्ठा करते हैं, उसका सौदा करते हैं, उसे धोते हैं, बुनते हैं और कढ़ाई करते हैं. महिलाएं इसे अलग करती हैं और कातती हैं. इस ऊन को निकालने की प्रथा हमेशा से खूनी रही है. एक जमाने में इसके वस्त्र मुगल बादशाहों के लिए आरक्षित थे. अब ये विलासिता का प्रतीक बन गया. आज उत्तरी भारत में लगभग 300 चिरू बचे हैं, जहां वे केवल लद्दाख के सुदूर पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते हैं. अनुमान है कि तिब्बत में इनकी संख्या 75,000 है. सवाल – एक अच्छा शाहतूश शॉल बनाने में कितना समय लग जाता है? – एक अच्छा शाहतूश बनाने में एक साल या उससे ज़्यादा समय लग सकता है. हालांकि एक अच्छा पश्मीना बनाने में भी इतना ही समय लग सकता है; दोनों ही हाथ से बुने जाते हैं. असली शाहतूश को नंगी आँखों से पहचानना निश्चित रूप से मुश्किल है. जब पुलिस सूक्ष्मदर्शी से शॉल की जांच करती है, तो शाहतूश के चिह्नों में हीरे की बुनाई के पैटर्न, छोटे सफेद बाल और अनियमित बुलबुले जैसी कोशिकाओं से इसका पता लगता है. Tags: Jammu and kashmir, Jammu Kashmir Election, Jammu kashmir election 2024FIRST PUBLISHED : September 2, 2024, 19:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed