कांग्रेस की बेलगावी मीटिंग क्यों खास गांधी से 100 साल पुराना क्या कनेक्शन

कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की मीटिंग आज से कर्नाटक के बेलागावी में शुरू हो रही है. इसका 100 पहले की गांधी की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस की सभा से क्या कनेक्शन है.

कांग्रेस की बेलगावी मीटिंग क्यों खास गांधी से 100 साल पुराना क्या कनेक्शन
हाइलाइट्स कांग्रेस कार्य समिति का बेलगावी में मीटिंग आज से महात्मा गांधी बेलगावी में ही 1924 की थी ऐतिहासिक कांग्रेस की सभा तब कांग्रेस की ये मीटिंग गांधीजी की अध्यक्षता में हुई थी कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) कर्नाटक के बेलगावी मे्ं एक विस्तारित सत्र का आयोजन कर रही है. दो दिन की इस मीटिंग के साथ यहां एक रैली भी करेगी. ये कार्यक्रम महात्मा गांधी द्वारा 1924 में पार्टी अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के ऐतिहासिक बेलगाम (अब बेलगावी) सत्र की अध्यक्षता करने की शताब्दी के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे , लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और वायनाड की सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कांग्रेस के शीर्ष नेता, देश भर से सीडब्ल्यूसी सदस्य और पार्टी के वरिष्ठ नेता इसमें शिरकत करेंगे. पार्टी इस कार्यक्रम के जरिए जहां कांग्रेस में नई जान फूंकेगी, वहीं भावी रणनीति पर भी चर्चा करेगी. बेलगावी ही क्यों? फरवरी 1924 में एक सर्जरी के बाद जेल से रिहा होने के बाद महात्मा गांधी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता की कमी से नाखुश थे. इस दूरी को खत्म करने के लिए उन्होंने उस साल 18 सितंबर से 8 अक्टूबर तक 21 दिनों का उपवास किया. वह कांग्रेस पार्टी में पनप रही गुटबाजी को भी खत्म करना चाहते थे. तभी उन्होंने बेलगाम में अपनी अध्यक्षता कांग्रेस की ऐतिहासिक सभा की. कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह कार्यक्रम पार्टी के 1924 के अधिवेशन की शताब्दी मनाने के लिए आयोजित किया जा रहा है. इस “ऐतिहासिक आयोजन” में करीब 200 नेता हिस्सा लेंगे. महात्मा गांधी ने बेलगाम में अपना भाषण मुख्य रूप से अहिंसा, राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के साधन के रूप में असहयोग, अस्पृश्यता को दूर करने, समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा देने, सामाजिक-आर्थिक असमानता को दूर करने की आवश्यकता और न्याय और समानता के सिद्धांत को सुदृढ़ करने पर दिया था. ये 1924 में गांधी जी के भाषण की विषय-वस्तु थी. फिर ये बेलगाम अधिवेशन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का आधार बना. महात्मा गांधी की अध्यक्षता वाला एकमात्र सत्र यह कांग्रेस पार्टी का एकमात्र अधिवेशन था जिसकी अध्यक्षता पार्टी प्रमुख के रूप में महात्मा गांधी ने की थी. गांधीजी दिसंबर 1924 से अप्रैल 1925 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे. इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल , सरोजिनी नायडू और खिलाफत आंदोलन के नेता मुहम्मद अली जौहर और शौकत अली सहित कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने भाग लिया. कांग्रेस पार्टी ने बेलगावी में होने वाली इस विस्तारित कांग्रेस कार्यसमिति बैठक को ‘नव सत्याग्रह बैठक’ नाम दिया है. यह बैठक उसी स्थान पर होगी जहां महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता संभाली थी. एजेंडे में क्या है? बैठक 26 दिसंबर को दोपहर 2:30 बजे महात्मा गांधी नगर में शुरू होगी. सत्र का पहला दिन 1924 के सत्र के आयोजन स्थल वीर सौधा में आयोजित किया जाएगा. दूसरे दिन, कर्नाटक सरकार द्वारा स्वीकृत महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण बेलगावी में सुवर्ण विधान सौधा – राज्य विधानसभा में किया जाएगा. 27 तारीख को सुबह 11:30 बजे बेलगावी में ‘जय बापू-जय भीम-जय संविधान’ रैली होगी. यह घटना कांग्रेस के लिए क्यों महत्वपूर्ण? मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस को 1924 की तरह ही पुनरुत्थान की जरूरत है. कांग्रेस यहां चिंतन करेगी और अपनी रणनीति में कुछ महत्वपूर्ण कार्यात्मक बदलाव करेगी. 1924 के बेलगाम सत्र में क्या हुआ था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 39वां सत्र 26-27 दिसंबर, 1924 को कर्नाटक के बेलगाम (अब बेलगावी) में आयोजित किया गया था. सत्र में भारत भर से 30,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया. गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ आवश्यक औजारों के रूप में असहयोग और सविनय अवज्ञा की रणनीतियों पर जोर दिया. सत्र में पहली बार “वंदे मातरम” का सार्वजनिक गायन भी देखा गया, जिसने इसके ऐतिहासिक महत्व को और पुख्ता किया. तब के सत्र का अब की सभा से कनेक्शन वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व का लक्ष्य अपनी वर्तमान चुनौतियों और गांधी के समय में सामना की गई चुनौतियों के बीच समानताएं स्थापित करना है, ताकि समकालीन राजनीति में उनके सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया जा सके. कुल मिलाकर, बेलगावी कांग्रेस बैठक का इतिहास न केवल भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण घटना को दर्शाता है, बल्कि कांग्रेस पार्टी के भीतर वर्तमान राजनीतिक हालात के साथ भी जुड़ता है. कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी का संदेश क्या था? असहयोग आंदोलन का उल्लेख करते हुए गांधीजी ने अहिंसा के अपने विचार को विस्तार से बताया और कहा कि हो सकता है कि यह अपेक्षा के अनुरूप न हुआ हो ( फरवरी 1922 में चौरी चौरा पुलिस स्टेशन की घटना के बाद असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया गया था) लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह (स्वतंत्रता की ओर) एक प्रभावी रास्ता था. “1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में सरकारी उपाधियों, कानूनी अदालतों, शैक्षणिक संस्थाओं, विधायी निकायों और विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का संकल्प लिया गया था. सभी बहिष्कारों को संबंधित पक्षों द्वारा कमोबेश अपनाया गया… हालांकि एक भी बहिष्कार कहीं भी पूरा नहीं हुआ, लेकिन इसका देश को जगाने में बहुत असर पड़ा. गांधी जी ने यहां हिंदू-मुस्लिम एकता और दमित वर्गों पर क्या कहा गांधीजी ने हिंसा का बॉयकाट करने की भी बात की. उन्होंने ये बताया कि व्यक्तिगत दुर्व्यवहार, चिढ़ाने वाला व्यवहार, झूठ बोलना, चोट पहुंचाना और हत्या करना हिंसा के प्रतीक हैं जबकि शिष्टाचार, अहानिकर व्यवहार, सत्यनिष्ठा आदि अहिंसा के प्रतीक हैं. गांधी ने यहीं कहा, मेरे लिए, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार अहिंसा के कपड़े (चुनने) का प्रतीक है. क्रांतिकारी अपराध का उद्देश्य दबाव डालना होता है… मेरा मानना ​​है कि अहिंसक कार्य हिंसक कृत्यों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी ढंग से दबाव डालते हैं, क्योंकि यह दबाव सद्भावना और सौम्यता से आता है.” हिंदू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यता से लड़ने पर गांधी ने यहां कहा, अस्पृश्यता स्वराज के लिए एक और बाधा है. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “इसका उन्मूलन स्वराज के लिए उतना ही आवश्यक है जितना हिंदू-मुस्लिम एकता की प्राप्ति. यह मूल रूप से एक हिंदू प्रश्न है और हिंदू तब तक स्वराज का दावा या अधिग्रहण नहीं कर सकते जब तक कि वे दमित वर्गों की स्वतंत्रता को बहाल नहीं कर देते.” स्वशासन के संबंध में गांधीजी ने सुझाव दिया कि अंतिम अपील अदालत को लंदन से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया जाए. प्रांतीय सरकारों, विधानसभाओं और अदालतों की आधिकारिक भाषा हिंदुस्तानी हो. उन्होंने लोगों से “पूर्ण सत्याग्रही” बनने का आह्वान भी किया. ये कहा, “मैंने बार-बार कहा है कि सत्याग्रह कभी विफल नहीं होता और सत्य को सही साबित करने के लिए एक पूर्ण सत्याग्रही ही काफी है. आइए हम सभी पूर्ण सत्याग्रही बनने का प्रयास करें. इस प्रयास के लिए किसी ऐसे गुण की आवश्यकता नहीं है जो हमारे बीच सबसे निचले स्तर के व्यक्ति के लिए भी अप्राप्य हो, क्योंकि सत्याग्रह हमारे भीतर की आत्मा का गुण है. यह हम सभी में निहित है. स्वराज की तरह यह भी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. हमें इसे पहचानना चाहिए.” स्वतंत्रता आंदोलन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? इतिहासकारों का मानना ​​है कि यह अधिवेशन किसान चेतना को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम था। इसके परिणामस्वरूप कर्नाटक और देश के अन्य भागों में खादी का प्रसार हुआ. ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा मिला. कांग्रेस के नेतृत्व वाली पहलों में किसानों की भागीदारी भी बढ़ी. कांग्रेस के लिए इसका क्या महत्व है? कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने कहा कि पार्टी की मौजूदा स्थिति 1924 जैसी है. नेता ने कहा, “कांग्रेस को 1924 की तरह पुनरुत्थान की जरूरत है. हमें उम्मीद है कि यह कुछ महत्वपूर्ण कार्यात्मक बदलाव करेगी और जीत की राह पर लौटेगी.” उन्होंने कहा कि पार्टी कुछ “गंभीर आत्मनिरीक्षण” कर रही है. Tags: All India Congress Committee, Congress, KarnatakaFIRST PUBLISHED : December 26, 2024, 11:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed