आर्टिकल 21जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट ने मनी लांड्रिंग में जमानत को जरूरी माना
आर्टिकल 21जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट ने मनी लांड्रिंग में जमानत को जरूरी माना
पिछले कुछ समय से मनी लांड्रिंग केसों में लगों को लंबे समय तक जेलों में रखा जाता था. जमानत लेना बहुत मुश्किल हो जाता था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में आर्टिकल 21 के तहत इसकी जो नई व्याख्या की है, जो मजबूती से मौलिक अधिकारों के पक्ष में खड़ी होती है.
हाइलाइट्स आर्टिकल 21 देश के नागरिकों को सम्मान और आजादी से जीवन जीने की गारंटी देता है संविधान के आर्टिकल 21 की कई बार अदालतों ने व्याख्या करके लोगों के इस मौलिक अधिकार की रक्षा की है मनी लांड्रिंग मामलों में आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत देने के अधिकार की व्याख्या एक मिसाल बनेगी
ऐसा लगता है कि धन-शोधन निवारण अधिनियम 2002 (Prevention of Money Laundering Act, 2002) में बगैर जमानत दिए लंबे समय तक जेल में रखने के दिन बीतने वाले हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के अधिकार को मौलिक अधिकार से जोड़ते हुए इस बात पर जोर दिया है कि जमानत एक नियम जबकि जेल एक अपवाद है, जिसका पालन पीएमएल कानून यानि में भी होगा, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 41 का भी हवाला दिया है.
हाल फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट ने लगातार जमानत पर जोर दिया है, चाहे मामला के कविता से जुड़ा हो झारखंड में पीएमएल कानून से जुड़े प्रेम प्रकाश को जमानत देने की. सुप्रीम कोर्ट ने इस रुख और व्याख्या के बाद पीएमएलए के तहत लगातार जेल में रहने के डर को जहां खत्म किया है, वहीं ये ईडी को भी झटका है, इससे उसके पॉवर्स के पर सुप्रीम कोर्ट ने कतर दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि पीएमएलए के सेक्शन 45 बेशक आरोपी की जमानत को रोकता हो लेकिन इसमें ये कतई नहीं कहा गया है कि आखिर किन स्थितियों में सेक्शन 45 से जरिए जमानत नहीं दी जानी चाहिए. लिहाजा अब ये मान लेना चाहिए कि पीएमएलए केसों में जिस तरह से लोगों को जेल में रखा जा रहा था और जमानत नहीं मिलती थी, वो स्थितियां बदल जाएंगी.
अब हम ये देखेंगे कि इस मामले में क्यों सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 21 पर जोर दिया है और इसे पीएमएलए एक्ट में जमानत देने के अधिकार से भी जोड़ा है.
सवाल – क्या है आर्टिकल 21 और ये क्या कहता है?
– भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है.वो कहता है:
“कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा.” इस अनुच्छेद को संविधान में सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से व्याख्या किए गए प्रावधानों में एक माना जाता है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस आर्टिकल को “मौलिक अधिकारों का हृदय” कहा गया है.
सवाल – क्या होता है अनुच्छेद 21 का दायरा?
– पिछले कुछ वर्षों में भारतीय न्यायपालिका द्वारा अनुच्छेद 21 के दायरे की व्यापक रूप से व्याख्या की गई है. अब फिर की जा रही है. इसमें न केवल भौतिक अस्तित्व का अधिकार शामिल है, बल्कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार और इससे जुड़ी सभी चीजें भी शामिल हैं. ये गरिमा और सम्मानपूर्ण आजादी के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है.
– जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के कुछ प्रमुख पहलुओं में शामिल हैं:
– मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार
– आजीविका का अधिकार
– स्वास्थ्य एवं चिकित्सा देखभाल का अधिकार
– प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार
– आश्रय का अधिकार
– निजता का अधिकार
– विदेश यात्रा का अधिकार
– एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कोई भी प्रक्रिया जो किसी व्यक्ति को उसके जीवन या स्वतंत्रता से वंचित करती है वह “उचित, निष्पक्ष और न्यायसंगत” होनी चाहिए न कि “मनमाना, सनकी या काल्पनिक.”
सवाल – क्या अन्य देशों में आर्टिकल 21 की तरह के कानून की धाराएं हैं, वो क्या और कैसी हैं?
– अन्य लोकतंत्रों में इसी तरह के समान संवैधानिक प्रावधान हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका में 5वां संशोधन है जो जीवन, स्वतंत्रता या संपत्ति से वंचित करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का प्रावधान करता है. यूनाइटेड किंगडम के पास कोई लिखित संविधान नहीं है, लेकिन वह विभिन्न क़ानूनों और सामान्य कानून के माध्यम से जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है. कनाडा में अधिकारों और स्वतंत्रता का कनाडाई चार्टर है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देता है.
सवाल – क्या कहना चाहिए कि जब ऐसा लगा है कि सत्ता के जरिए मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, तब अदालतों ने इसे कवच के तौर पर खड़ा किया है?
– अनुच्छेद 21 भारत में मानवाधिकार न्यायशास्त्र का प्रमुख चालक रहा है. न्यायालयों द्वारा इसकी समय – समय पर व्यापक व्याख्या की है, जिससे लोगों के अधिकार बरकरार रहे हैं. उनका जीवन सार्थक और गरिमापूर्ण हुआ है., वैसे एक प्रावधान के रूप में इसे आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सका है. अनुच्छेद 21 राज्य की मनमानी कार्रवाई के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में हमेशा खड़ा रहा है, हालांकि कभी कभी लगा है कि ये कुंद हो रहा है लेकिन हर बार अदालत की व्याख्यों के साथ ये निखर कर निकला और हर व्यक्ति के मूल्य और समानता को बरकरार रखा है.
सवाल – सुप्रीम कोर्ट किस तरह फिर से पीएमएलए में आर्टिकल 21 का हवाला दिया है?
– भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 21 और धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत धन शोधन मामलों में जमानत प्रावधानों के बीच संबंध को दोहराया है. प्रेम प्रकाश के मामले से संबंधित एक फैसले में, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि “जमानत नियम है और जेल अपवाद है”. ये सिद्धांत कड़े पीएमएलए मामलों में भी लागू होता है, जो आर्टिकल 21 में निहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को जाहिर करता है.
सवाल – पीएमएलए में जमानत को लेकर किस तरह सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 21 पर बल दिया है?
– न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है. अगर स्वतंत्रता से वंचित किया जा रहा है तो इसकी वैध वजह और प्रक्रिया होनी चाहिए. कोर्ट से कहा, बेशक पीएमएलए की धारा 45, जो जमानत के लिए कुछ शर्तें लगाती है, वो भी आर्टिकल21 के मौलिक सिद्धांत को नहीं बदलती. ये भी कहती है कि वो कौन सी बातें हैं जिसे पूरा करके जमानत दी जानी चाहिए. इसका मतलब यह है कि अभियोजन पक्ष को जमानत से इनकार करने से पहले प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करना होगा. जिसे लंबे समय तक नहीं टाला जा सकता.
सवाल – तो ये कहा जाना चाहिए कि भविष्य में अब पीएमएलए के मामलों में जमानत हासिल करना आसान हो जाएगा?
– बिल्कुल सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस कानून को लेकर आर्टिकल 21 की जो व्याख्या की है, वो एक मिसाल कायम करता है कि अब मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में जमानत आवेदनों पर कैसे विचार किया जाएगा. इससे वो कठोर शर्तों को आसान कर दी जाएंगी, जिन्होंने पहले आरोपी व्यक्तियों के लिए जमानत हासिल करना मुश्किल बना दिया था. सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला अनुच्छेद 21 और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में जमानत प्रावधानों के बीच महत्वपूर्ण परस्पर क्रिया को उजागर करता है, इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि उचित प्रक्रिया और उचित कारण के बिना स्वतंत्रता में कटौती नहीं की जानी चाहिए. जब सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में ये व्यवस्था दी है तो ये नीचे की अदालतों तक भी लागू होंगी, जिससे व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करते हुए अधिक संतुलित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया जाएगा.
सवाल – अगर मनी लांड्रिंग मामलों में अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जमानत का विरोध किया तो क्या होगा?
– ऐसे में ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के प्रथम दृष्टया सबूत स्थापित करने होंगे. जिस पहलू पर ईडी का पक्ष अब तक कमजोर रहा है. लिहाजा अगर सबूत हुए तो कानून भी उसी दिशा में माकूल काम करेगा.
सवाल – कई बार आरोपी व्यक्तियों को हिरासत में लेकर जबरदस्त उससे जो कबूल करवाया जाता है, वो इस तरह के मामलों में क्या काम करेगा?
– सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में आरोपी व्यक्तियों द्वारा दबाव में या हिरासत में रहते हुए दिए गए कबूलनामे की स्वीकार्यता पर भी बात की है. न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ऐसे बयान साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं होने चाहिए, क्योंकि वे निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं. अब ऐसे मामलों में न्यायाधीशों को जमानत की सुनवाई में अधिक विवेक का प्रयोग का अधिकार हासिल होगा.
Tags: Bail grant, Money Laundering, Money Laundering Case, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : August 29, 2024, 20:29 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed