ऐसे CJI जो शुरू में चपरासी थे फिर क्लर्क बने पिता अनाथालय में बड़े हुए

आमतौर पर हमारे देश के ज्यादातर सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस बहुत अच्छी पृष्ठभूमि से आए हैं. उन्होंने अच्छी पढ़ाई की. लेकिन एक सीजेआई ऐसे थे, जो अभावों में पले और बहुत गरीब थे.

ऐसे CJI जो शुरू में चपरासी थे फिर क्लर्क बने पिता अनाथालय में बड़े हुए
हाइलाइट्स ये सीजेआई थे सरोश होमी कपाड़िया उनका जन्म आजादी के 6 हफ्ते बाद हुआ चतुर्थ श्रेणी नौकरी के साथ कानून की पढ़ाई शुरू की भारत के एक ऐसे चीफ जस्टिस भी रहे हैं, जो बहुत गरीब पृष्ठभूमि से इस शीर्ष पद तक पहुंचे. करियर की शुरुआत एक चपरासी के तौर पर की. फिर क्लर्क बने. साथ में कानून की पढ़ाई की. उनके पिता अनाथालय में बड़े हुए थे. वह अपनी मेहनत और इंटैलिजेंस के बल पर सुप्रीम कोर्ट के 16वें चीफ जस्टिस बने. उनके कई फैसले मिसाल की तरह लिये जाते हैं. उनका नाम था सरोश होमी कपाड़िया. उनका जन्म देश की आजादी के 06 हफ्ते बाद सितंबर 1947 में मुंबई में हुआ. जब वह सुप्नीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने तो आजाद भारत में पैदा होने वाले पहले सीजेआई भी थे. उन्होंने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई से स्नातक किया. अपना करियर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में शुरू किया. फिर मुंबई में एक वकील के दफ़्तर में लॉ क्लर्क बन गए. बाद में फिरोज दमानिया के साथ काम किया जो एक बहुत ही सम्मानित “फ़ायरब्रांड” श्रम वकील थे. बांबे के प्रतिष्ठित पारसियों के विपरीत उनके पिता सूरत के एक अनाथालय में पले-बढ़े थे. एक मामूली रक्षा क्लर्क के रूप में काम किया था. उनकी माँ कैटी एक गृहिणी थीं. परिवार मुश्किल से गुजारा कर पाता था. युवा सरोश ने तय कर लिया था कि वह अपना भाग्य खुद बनाएगा. वह जज बनना चाहता था और कुछ नहीं. शुरू से ही उनकी दिलचस्पी कानून से जुड़े पहलुओं में थी. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रहने के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ. कपाड़िया के क्लर्क से वकील बनने. फिर बांबे हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बनने की भी एक कहानी है, जो कहती है कि अगर आपमें प्रतिभा है और मेहनत करने के माद्दा के साथ दृढ इच्छाशक्ति है तो आप कहीं तक भी पहुंच सकते हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस के पद पर पहुंचने के बाद स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौके पर एक भाषण में कहा, “मैं एक गरीब परिवार से आता हूं. मैंने अपना करियर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में शुरू किया. मेरे पास अकेली संपत्ति मेरी ईमानदारी है.” एक एक सीढ़ी चढ़ते गए कपाड़िया 23 मार्च 1993 को बांबे हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए. 5 अगस्त 2003 को उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. 18 दिसंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट में जज बने. 12 मई 2010 को उन्हें राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई. 29 सितंबर 2012 को सेवानिवृत्त हुए. कपाड़िया एक कट्टर पारसी थे. वह बौद्ध और हिंदू दर्शन में रुचि रखते थे. नियमित तौर पर कोलकाता में बेलूर मठ जाते थे. उन्होंने ध्यान सीखा. रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद के बारे में सब कुछ पढ़ा. 4 जनवरी 2016 को मुंबई में उनका निधन हो गया. कपाड़िया ने वकील के तौर पर अपने करियर के शुरुआती दिनों में मजदूरों और गरीबों के बहुत से केस लड़े. वह जजों तक केसों के ब्रीफ पहुंचाते थे कपाड़िया ने करियर की शुरुआत मुंबई में बेहरामजी जीजीभॉय के साथ ग्रेड चार कर्मचारी के रूप में की, वह चपरासी थे, उनका मुख्य काम वकीलों तक मुकदमों की ब्रीफ पहुंचाना था. बेहरामजी जीजीभॉय बांबे में सात गांवों के मालिक थे. उनके पास बहुत सारा भू-राजस्व था. इसी के चलते भूमि को लेकर उनके बहुत से मुकदमे अदालतों में चलते रहते थे. उन मामलों को गगरेट एंड कंपनी द्वारा संभाला जाता था, जहां एक युवा वकील रत्नाकर डी सुलाखे काम करते थे. सुलाखे भी बाद में बड़े पदों तक पहुंचे. उन्होंने अपने एक संस्मरण में लिखा, “सरोश हमारे दफ़्तर में अक्सर आते थे. इस तरह मेरी उनसे पहली मुलाक़ात हुई. उन्हें क़ानून में गहरी दिलचस्पी थी. मैंने उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया.” चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के साथ कानून की पढ़ाई चतुर्थ श्रेणी का काम करते हुए कपाड़िया ने क़ानून की पढ़ाई शुरू की. इस बीच में वह क्लर्क बन गए. जब वह लॉ ग्रेजुएट बन गए तो बार में दाखिला लिया. उस समय तक उन्हें ज़मीन और राजस्व से जुड़े मुद्दों की गहरी समझ हो गई. उन्होंने ऐसे मामले लड़ने शुरू कर दिए. एक जूनियर वकील के तौर पर वह बहुत तैयारी करते थे. बहस की उनकी गजब की क्षमता थी. जिसने उन्हें चर्चित कर दिया. वह फिरोज दमानिया नाम के ऐसे सीनियर वकील के साथ जुड़ गए, जो तब ग़रीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के पक्षधर माने जाते थे. शायद ही कभी छुट्टियां ली हों उन्होंने एक बार हैदराबाद में कॉमनवेल्थ लॉ एसोसिएशन के सम्मेलन में भारत को रिप्रेजेंट करने का निमंत्रण इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि वह उनका सुप्रीम कोर्ट में काम करने का दिन था. सीजेआई के रूप में पदभार ग्रहण करने के पहले दिन उन्होंने आधे घंटे में 39 मामलों का निपटारा किया. कपाड़िया शायद ही कभी छुट्टियां लेते थे. तब तीन साल तक उन्होंने लंच में चने ही खाए जब कपाड़िया बांबे हाई कोर्ट में जज बने, तो वह हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर कोर्ट रूम नंबर तीन में बैठते थे, जिससे कई लोग हैरान हो जाते थे, क्योंकि जजों की सीनियारिटी बढ़ने के साथ ही वे कोर्टहाउस बिल्डिंग में ऊपर चले जाते थे. कपाड़िया ने बाद में इसका राज बताया. अपने करियर के शुरुआती दिनों में निम्न-श्रेणी के कर्मचारी के रूप में उन्हें रोज ही अदालत में वकीलों के पास आना होता था. तब वह न्यायालय के पास फाउंटेन क्षेत्र में बैठकर अपना दोपहर का भोजन करते थे. ये सबसे सुकून वाली जगह थी. तीन सालों तक वह दोपहर के भोजन में अक्सर भुने हुए चने का एक छोटा कोन लेकर खाया करते थे. जिस जगह वह दोपहर का खाना खाते थे, वो जगह उनके कोर्ट नंबर तीन से नजर आती थी. चर्चित फैसला 3 मार्च 2011 को कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह , गृह मंत्री पी. चिदंबरम और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज (असहमति) वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा की गई मुख्य सतर्कता आयुक्त पोलायल जोसेफ थॉमस की नियुक्ति को रद्द कर दिया. इस फैसले से सरकार को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी. मनमोहन सिंह को नियुक्ति में गलती स्वीकार करनी पड़ी. इसके अलावा उन्होंने कई अहम फैसले सुनाए. Tags: Chief Justice, Chief Justice of India, Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : June 17, 2024, 09:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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