कौन सा भारतीय गर्वनर जनरल था गांधीजी का समधि बेटी ने की बापू के बेटे से शादी
कौन सा भारतीय गर्वनर जनरल था गांधीजी का समधि बेटी ने की बापू के बेटे से शादी
Birthday C Rajagopalachari: सी राजगोपालाचारी को महात्मा गांधी सबसे ज्यादा विद्वान मानते थे. उनकी बेटी को गांधीजी के सबसे छोटे बेटे से प्यार हो गया. दोनों ने क्यों इस शादी को टालना चाहा.
हाइलाइट्स दोनों नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे करें लव मैरिज, तब रखी कड़ी शर्त दोनों ने पांच साल तक अलग रहकर शर्त पूरी और फिर की शादी गांधीजी के ये बेटे थे हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक
आजाद भारत के पहले गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का आज जन्मदिन है. वो 10 दिसंबर 1972 को तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में पैदा हुए थे. नेहरू उन्हें पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका. वह बहुत बड़े वकील थे. उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय गांधीजी को है. वो गांधीजी के रिश्तेदार कैसे बने, इसका किस्सा भी दिलचस्प है. नेहरू के पहले वो बहुत करीब थे, बाद में अनबन हो गई.
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (Chakravarti Rajagopalachari) को आमतौर पर राजाजी के नाम से ज्यादा जाना जाता है. वो वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे.उनके पिता तमिलनाडु के सेलम के न्यायालय में न्यायाधीश थे. राजाजी पढ़ने में जीनियस थे. लगातार प्रथम श्रेणी पास होते थे.राजाजी के राजनीति में आने की वजह गांधी ही बने. गांधी के असहयोग आंदोलन का उन पर इतना असर हुआ कि उन्होंने अपनी जमी-जमाई वकालत छोड़ दी और खादी पहनने लगे.
राजाजी की वकालत की स्थिति ये थी कि वो सेलम में कार खरीदने वाले पहले वकील थे. गांधी के छुआछूत आंदोलन और हिंदू-मुस्लिम एकता के कार्यक्रमों ने उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया. 1937 में हुए चुनावों के बाद राजाजी मद्रास के प्रधानमंत्री (तब मुख्यमंत्री के समकक्ष पद) बने. 1939 में जब वायसराय ने एकतरफ़ा निर्णय लेकर भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में धकेल दिया तो उन्होंने विरोध स्वरूप इस्तीफ़ा दे दिया.
गांधीजी के मित्र और करीबी सलाहकार
गांधीजी के वो बहुत करीब थे. अक्सर उन्हें जब गंभीर मामलों पर कोई सलाह लेनी होती थी तो अक्सर राजाजी ही याद आते थे. दोनों की अंतरंगता इतनी बढ़ी कि राजाजी ने अपनी बेटी को गांधीजी के आश्रम में रहने के लिए भेजा. राजाजी की बेटी लक्ष्मी जब वर्धा के आश्रम में रह रही थीं तभी उनके और गांधीजी के छोटे बेटे देवदास के बीच प्यार हो गया.
यूं आपस में बन गए समधि
देवदास तब 28 साल के थे और लक्ष्मी 15 की. तब ना तो गांधीजी इस शादी के पक्ष में थे और ना ही राजाजी. शायद अलग अलग जातियों का होने के कारण दोनों उस समय इसके लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने देवदास के साथ एक बहुत कठिन शर्त रखी कि वो 05 साल तक लक्ष्मी से अलग रहें. अगर तब भी दोनों का एक दूसरे के प्रति प्यार कायम रहेगा तो शादी कर दी जाएगी. ऐसा ही हुआ. फिर दोनों की शादी हो गई. इस तरह राजाजी और गांधीजी आपस में समधि बन गए.
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कई बार गांधीजी और कांग्रेस से मतभेद भी
कांग्रेस के साथ आने के बाद राजाजी ने उसके आंदोलनों में जोरशोर से शिरकत करना शुरू किया. जल्द ही वो देश की राजनीति और कांग्रेस में शीर्ष नेताओं में शामिल हो गए. गांधीजी बेशक उनसे राय लेते थे लेकिन कई बार दोनों में मतभेद की स्थितियां भी बनीं. कई बार वो खुले तौर पर कांग्रेस के विरोध में भी खड़े मिलते थे. लेकिन ये तय था कि वो कोई भी काम अकारण नहीं करते थे. सी. राजगोपालाचारी ने अपनी छोटी बेटी की शादी गांधीजी के सबसे छोटे बेटे देवदास से की. हालांकि ये उस समय अंतरजातीय विवाह के तौर पर काफी क्रांतिकारी भी माना गया.
जब गांधीजी जेल में होते तो वो यंग इंडिया का संपादन करते
वह गांधीजी के कितने करीब थे, इसका पता इस बात से चलता है कि जब भी गांधीजी जेल में होते थे, उनके द्वारा संपादित पत्र ‘यंग इंडिया’ का सम्पादन चक्रवर्ती ही करते थे. जब कभी गांधी जी से पूछा जाता था, ‘ जब आप जेल में होते हैं, तब बाहर आपका उत्तराधिकारी किसे समझा जाए?’ तब गांधी जी सहज भाव से कहते, ‘राजा जी, और कौन?’ दोनों के सबंधों में तब और भी प्रगाढ़ता आ गयी, जब सन् 1933 में चक्रवर्ती जी की पुत्री और गांधी जी के बेटे देवदास वैवाहिक बंधन में बंधे.
हालांकि दूसरे विश्व युद्ध के शुरू के दौरान उनकी कांग्रेस से ठन गई. वो गांधीजी के विरोध में खड़े थे. गांधीजी का विचार था कि ब्रिटिश सरकार को इस युद्ध में केवल नैतिक समर्थन दिया जाए, वहीं राजा जी का कहना था कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देने की शर्त पर ब्रिटिश सरकार को हर प्रकार का सहयोग दिया जाए. मतभेद इतने बढ़े कि राजा जी ने कांग्रेस की कार्यकारिणी की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया.हालांकि फिर कांग्रेस में लौटे.
05 साल पहले ही विभाजन को लेकर आगाह किया था
वो पहले शख्स थे, जिन्होंने 1942 में इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन में देश के विभाजन पर सहमति जता दी थी. हालांकि उस समय उनका बहुत विरोध हुआ लेकिन उन्होंने इसकी कोई परवाह नहीं की. हालांकि 1947 में वही हुआ, जो वो पांच साल पहले कह चुके थे. ये तमाम वो वजहें थीं कि कांग्रेस के नेता उनकी दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता का लोहा मानते थे.
नेहरू और कांग्रेस की नीतियों से खुश नहीं थे
1946 में देश की अंतरिम सरकार बनी. उन्हें केन्द्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया. 1947 में देश के आजाद होने पर वो बंगाल के राज्यपाल बने. अगले ही साल स्वतंत्र भारत के प्रहले ‘गवर्नर जनरल’. जब नेहरू उन्हें देश का पहला राष्ट्रपति नहीं बना सके तो उन्हें 1950 में फिर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लिया गया. 1952 के आम चुनावों में वह लोकसभा सदस्य बने और मद्रास के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए. लेकिन कुछ साल बाद ही नेहरू और कांग्रेस से नाखुश होकर मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस दोनों छोड़ दी.
राजाजी को कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वामपंथी समाजवाद की तरफ झुकाव को लेकर एतराज था. वो मानते थे कि इससे कांग्रेस को इसका नुकसान होगा. इसी मतभेद के चलते उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर नई राष्ट्रवादी पार्टी का गठन करने का विचार किया. 4 जून 1959 को स्वतंत्र पार्टी गठित हुई.
नई स्वतंत्र पार्टी जिस तेजी से उभरी, उसी झटके से खत्म भी
राजाजी ने अलग पार्टी बनाने की घोषणा की. इस पार्टी का नाम था स्वतंत्र पार्टी. 61 साल पहले बनी इस पार्टी ने मज़बूत विपक्ष की भी भूमिका निभाई. उन्होंने एनजी रंगा और मीनू मसानी जैसे दिग्गजों के साथ इस पार्टी की स्थापना की. हालांकि ये जिस रफ्तार से उभरी थी, उसके बाद केवल 15 सालों में उसी तेज़ झटके के साथ खत्म भी हो गई. हालांकि शुरू में नेहरू और राजाजी कांग्रेस में साथ होने पर भी बहुत करीब नहीं थे लेकिन नेहरू उनसे प्रभावित थे. 1946 में दोनों ज्यादा करीब होकर काम करने लगे. नेहरू जी के साथ उन्होंने कई स्थितियों में काम किया लेकिन बाद में उनकी नीतियों को लेकर उनमें मतभेद हुआ. उन्होंने अलग होकर नई पार्टी बना ली.
क्या थीं स्वतंत्र पार्टी के उठान की वजहें?
1. नेहरूवादी समाजवाद को नकारना, जिसका झुकाव कथित तौर पर कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा की तरफ हो गया था.
2. स्वतंत्र पार्टी में राजगोपालाचारी समेत वो नेता शामिल थे, जिनका जनसामान्य के बीच आधार और प्रभाव था.
3. इस पार्टी के कई नेता प्रधानमंत्री पद तक के चेहरे के तौर पर देखे गए थे.
4. बिहार, उड़ीसा के राजघरानों द्वारा बनाई गई पार्टियां स्वतंत्र पार्टी में शामिल हुईं और 1967 में इन राज्यों में स्वतंत्र पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर मुख्य विपक्ष में आई. इसके बाद राजस्थान के राजघराने इस पार्टी से जुड़े. महारानी गायत्री देवी का शामिल होना बड़ी घटना थी.
5. इस पार्टी में गुजरात में भाईलालभाई पटेल जैसे नेता ज़मीन तैयार कर रहे थे तो तमिलनाडु में कामराज और गणेशन की क्षेत्रीय पार्टियां स्वतंत्र पार्टी में विलय हो रही थीं. वहीं, आंध्र में एनजी रंगा का करिश्माई नेतृत्व स्वतंत्र पार्टी को मज़बूत कर रहा था.
6. स्वतंत्र पार्टी आज़ादी के 20 साल बाद भी गरीबी, अशिक्षा जैसी समस्याओं को मुद्दा बना रही थी और किसानों, छोटे कामगारों और निम्न व मध्यम वर्ग की आवाज़ बनने की कोशिश कर रही थी. सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ भी लोगों को जागरूक किया जा रहा था.
कैसे नज़र आया स्वतंत्र पार्टी का उठान?
1959 में पार्टी के गठन के बाद पहला चुनाव 1962 का था. इस चुनाव में नई बनी स्वतंत्र पार्टी ने 18 लोकसभा सीटें जीतीं. बिहार, राजस्थान, गुजरात और उड़ीसा में कांग्रेस के मुकाबले स्वतंत्र पार्टी मुख्य विपक्ष के तौर पर उभरी. इसके बाद 1967 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी और कामयाब हुई क्योंकि 44 लोकसभा सीटें जीती. इस दौरान कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस पार्टी को माना जाने लगा था, लेकिन अगले चुनाव में पार्टी अपना अस्तित्व भी नहीं बचा पाई.
नतीजे ने सबका दिल तोड़ दिया
1971 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी को सिर्फ 8 सीटें हाथ लगीं तो सबका दिल टूट गया. मसानी ने इस्तीफा दे दिया और राजाजी व स्वतंत्र पार्टी की कई कोशिशों के बाद भी वह वापस नहीं आए बल्कि कुछ ही समय में उन्होंने सक्रिय राजनीति से भी संन्यास ले लिया. 25 दिसंबर 1972 को राजाजी के निधन के साथ ही स्वतंत्र पार्टी का भी खात्मा हो गया था लेकिन अगले दो सालों में तीन अध्यक्षों के साथ यह पार्टी और ज़िंदा रही.
नेहरू को पहले ही चीन से आगाह किया था
रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब “द लास्ट लिबरल” में राजाजी को भारत का सबसे ज्ञानी पुरुष बताया. गांधीजी उन्हें अपने विवेक का रखवाला कहते थे. गुहा लिखते हैं कि अगर 1942 में विभाजन को लेकर उनकी बात सुनी जाती तो हम शायद बंटवारे से उपजे खून-खराबे से बच जाते. नेहरू मंत्रिमंडल में बतौर गृहमंत्री उन्होंने 1951 में ही कम्युनिस्ट चीन के विस्तारवादी मंसूबों को लेकर उन्हें आगाह किया था. कहा जाता है कि उन्हें तमाम बातों का पूर्वज्ञान हो जाता था. राजाजी का मानना था कि परमाणु बम मनुष्य की हेकड़ी की उपज है. मनुष्य ये यकीन करने लगा है कि उसे भी भगवान जैसा विशेषाधिकार प्राप्त हो गया है.
महिलाओं के कामकाज के विरोधी
हालांकि गुहा लिखते हैं, राजाजी हमेशा पाकिस्तान से मधुर संबंधों के पक्ष में रहे. उनकी इच्छा ये भी थी कश्मीर के लोग सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जिंदगी व्यतीत करें. साथ ही वो बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की वकालत करने वाले शुरुआती लोगों में थे. हालांकि वो महिलाओं के काम करने के विरोधी थे. उन्होंने इस पर टिप्पणी भी कि कोई बच्चों वाली महिला कैसे काम करने के बारे में सोच सकती है.
1954 में राजा जी को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. वह विद्वान् और अद्भुत लेखन प्रतिभा के धनी थे. तमिल और अंग्रेज़ी के बहुत अच्छे लेखक थे. ‘गीता’ और ‘उपनिषदों’ पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं. 28 दिसम्बर, 1972 को चेन्नई में उनका निधन हो गया.
Tags: Gandhi Family, Jawahar Lal Nehru, Love Story, Mahatma gandhiFIRST PUBLISHED : December 10, 2024, 07:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed