सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीबीआई से ज्यादा ताकतवर जांच एजेंसी हो गई है ईडी!

दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट-1946 के तहत सीबीआई को राज्यों की सरकार से विशेष अनुमति की दरकार होती है. दूसरी तरफ कानूनी अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की मोहर के बाद ईडी देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी बन गई है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीबीआई से ज्यादा ताकतवर जांच एजेंसी हो गई है ईडी!
हाइलाइट्ससुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीबीआई से ज्यादा ताकतवर जांच एजेंसी हो गई है ईडीईडी में ईसीआईआर के तहत दर्ज मामला क्या एफआईआर नहीं?ईडी के सामने दिया गया बयान क्या कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर मान्य है? नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार के मंत्री और उनकी महिला सहयोगी के यहां से नोटों का भंडार मिलने के बाद भ्रष्ट नेता, अफसर और व्यापारियों में ईडी का खौफ बढ़ गया है. दूसरी तरफ जांच एजेंसियों के राजनीतिक इस्तेमाल के भी आरोप लग रहे हैं. दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट-1946 के तहत सीबीआई को राज्यों की सरकार से विशेष अनुमति की दरकार होती है. दूसरी तरफ कानूनी अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की मोहर के बाद ईडी देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी बन गई है. ED यानि प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना 1956 में हुई थी. विदेशी मुद्रा से सम्बन्धित अपराधों को रोकने के लिए 1973 में फेरा और 1999 में फेमा कानून बना था. उन कानूनों के खत्म होने के बाद हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आर्थिक अपराधों के खिलाफ ईडी पीएमएलए (PMLA) कानून 2002 के तहत कार्रवाई करती है. इसमें यूपीए शासनकाल में अनेक बड़े संशोधन किये गये और फिर मोदी सरकार ने 2018 में पीएमएलए कानून में अनेक संशोधन किए. इन संशोधनों को 243 से ज्यादा याचिकाओं के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इन सभी मामलों का निपटारा करते हुए 545 पेज का फैसला देकर ईडी के सभी अधिकारों को बहाल रखा है. ईडी के अधिकारों के बारे में अहम फैसले को इन 6 प्वाइंट्स में समझा जा सकता है: ईडी में ईसीआईआर के तहत दर्ज मामला क्या एफआईआर नहीं? ईडी में ईसीआईआर (इनफोर्समेंट केस इनफार्मेशन रिपोर्ट) के तहत मामला दर्ज किया जाता है. सीआरपीसी की धारा-154 के तहत पुलिस में एफआईआर दर्ज होती है, जिसकी कॉपी अभियुक्त और उसके परिजनों को मिलना जरूरी है. इस फैसले के अनुसार ईसीआईआर को एफआईआर नहीं माना जा सकता, इसलिए उसकी कॉपी अभियुक्त को देना जरूरी नहीं है. समन के बाद क्या हिरासत और गिरफ्तारी का अधिकार है? केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील दिया कि सबूतों के बात ही ईडी में गिरफ्तारी होती है इसलिए ईसीआईआर दर्ज करने के बाद आरोपी को हिरासत में लेने का ईडी को अधिकार है. उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है जिसके अनुसार समन की कार्यवाही के दौरान भी ईडी के अधिकारी आरोपी शख्स को हिरासत में ले सकते हैं. ईडी के सामने दिया गया बयान क्या कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर मान्य है? सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ईडी के अधिकारी पुलिस विभाग से अलग हैं. उनके द्वारा धारा-50 के तहत दर्ज बयान संविधान के अनुच्छेद-20 (3) के दायरे में नहीं आता. संविधान के अनुसार किसी को खुद के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. एविडेंस एक्ट की धारा-25 के तहत पुलिस अधिकारियों के सामने दिये गये इकबालिया बयान की सबूत के तौर पर मान्यता नहीं होती. लेकिन इस फैसले के बाद ईडी अधिकारियों के सामने दिये गये बयान को कोर्ट के सामने सबूत के तौर पर माना जा सकता है. क्या जब्ती, गिरफ्तारी और छापेमारी का अधिकार है? पुलिस की जांच सीआरपीसी कानून के तहत होती है लेकिन ईडी को अवैध संपत्ति की जब्ती, गिरफ्तारी और छापेमारी के लिए पीएमएलए कानून के तहत विशेष अधिकार हासिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इन अधिकारों पर अपनी मोहर लगा दी है जिसके बाद ईडी देश की सबसे शक्तिशाली जांच एजेंसी बन गई है. कोर्ट के अनुसार मनी लॉन्ड्रिंग में लिप्त लोगों की संपत्ति की जब्ती और कुर्की के लिए ईडी अधिकारियों को हासिल अधिकार संवैधानिक तौर पर वैध हैं. संपत्ति की वैधता को साबित करना क्या अभियुक्त की जिम्मेदारी है? संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अदालत से दोषी करार होने तक हर व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है. इसलिए कानूनी व्यवस्था के अनुसार पुलिस के मामलों में अभियुक्त के खिलाफ अभियोजन पक्ष को आरोपों को सिद्ध करना पड़ता है. लेकिन पीएमएलए कानून की धारा-24 के तहत अभियुक्त को ही यह साबित करना पड़ता है कि जांच के दौरान मिला धन कानूनी तौर पर वैध है. अपराध की आय जुड़ी सम्पत्ति को छुपाना, कब्जा करना, अधिग्रहीत करना या फिर उसे बेदाग सम्पत्ति के रुप में पेश करना भी गम्भीर अपराध है. जिसके लिए ऐसी सभी सम्पत्ति की जब्ती हो सकती है. ऐसा साबित नहीं करने पर जांच एजेंसी उसे जब्त कर सकती है. क्या एक अपराध में दोहरी सजा और जमानत की कड़ी शर्त है? पीएमएलए कानून के तहत एक अपराध में दोहरी सजा हो सकती है. अदालत के फैसले से धारा-45 के तहत जमानत के लिए दोहरी शर्त का कानून बरकरार है. इस कानून के तहत जमानत के मामले में पहले सरकारी लोक अभियोजक यानि पब्लिक प्रोसिक्यूटर का पक्ष सुनना जरुरी है. अभियुक्त को जमानत तभी दी जा सकती है जब यह सिद्ध हो जाये कि आरोपी दोषी नहीं है और रिहाई होने पर वह दोबारा अपराध नहीं करेगा. अभियुक्तों की अंतरिम राहत को चार हफ्ते के लिए जारी रखते हुए सम्बन्धित हाईकोर्ट को मामले को डिसाईड करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि दुनिया में फैले मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स, आतंकवाद, क्रिप्टो, साइबर वित्तीय अपराध और हवाला कारोबार के जहर से भारत को बचाने के लिए सख्त और कड़े कानून जरुरी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पीएमएलए अपीलीय ट्रिब्यूनल से लोगों को जल्द न्याय नहीं मिल रहा, जिसे ठीक करने के लिए सदस्यों और स्टॉफ की जल्द भर्ती जरूरी है. पीएमएलए कानून में संशोधनों को वित्त विधेयक के तौर पर पारित किया गया था. इसकी संवैधानिकता पर सुनवाई के लिए पूरे मामले को सात जजों की संविधान पीठ को रेफर कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने इस कानून में किये गये संशोधनों की वैधता को इस आधार पर स्वीकार किया है कि धनशोधन आर्थिक अपराध होने के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है. पीएमएलए कानून के तहत दर्ज मामलों की संख्या में कई गुना बढ़ोत्तरी हो गई है लेकिन सजा की दर काफी कम है. जरूरत इस बात की है कि इन अधिकारों का कानून के दायरे में इस्तेमाल हो जिससे ईडी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े ना हों. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार कानून का बेजा इस्तेमाल ना हो. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: CBI, Enforcement directorate, Mamata banerjee, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : July 31, 2022, 14:20 IST