दास्तान-गो : एक हुईं नसीम बानो हिन्दी सिनेमा की पहली ‘रानी-सुंदरी’ और ‘महा-सितारा’

Daastaan-Go ; Naseem Bano Birth Anniversary Special : फिल्में छोड़ने के कुछ बरस बाद नसीम बानो एक बार फिर सुर्ख़ियों में आईं, जब उन्होंने 22 बरस की बेटी सायरा का निकाह 44 बरस के दिलीप कुमार से कराया. बताते हैं, इस निकाह के लिए जितनी कशिश सायरा की हुई, क़रीब-क़रीब उतनी ही कोशिश उनकी वालिदा नसीम की भी रही.

दास्तान-गो : एक हुईं नसीम बानो हिन्दी सिनेमा की पहली ‘रानी-सुंदरी’ और ‘महा-सितारा’
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक्ती तौर पर मौजूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज…  ——————– जनाब, नसीम बानो याद हैं क्या किसी को?. चूंकि यादें धुंधला जाया करती हैं न, इसलिए पूछा. आज, चार जुलाई को इनकी पैदाइश (साल 1916 में) का दिन हुआ करता है. हिन्दी सिनेमा में गहरी दिलचस्पी रखने वाले इन्हें यक़ीनन जानते होंगे. इस सिनेमा की पहली ‘रानी-सुंदरी’ (ब्यूटी-क्वीन) और ‘महा-सितारा’ (सुपर-स्टार) कहलाती थीं नसीम. वह भी 1930 से आगे वाली दहाई के उस दौर में जब सोहराब मोदी, चंद्र मोहन, पृथ्वीराज कपूर जैसे सितारे सिनेमाई दुनिया में जगमगाया करते थे. इतना ही नहीं, इनके बारे में एक बात और शुरू में ही जान लीजिए. ये कि साल 1949 में एक फिल्म आई ‘चांदनी रात’. इसमें नसीम बानो अव्वल अदाकारा थीं. और साथी अदाकार थे श्याम, जो नसीम से यही कोई 10 बरस छोटे. और ये दौर वह था, जब हिन्दी सिनेमा में सुरैया, नूर जहां, नरगिस, मधुबाला, स्वर्ण लता, मुमताज़ शांति जैसी अदाकाराओं के सिक्के चलने लगे थे.  लेकिन नसीम की अहमियत कम न हुई थी. अब शायद, यहां से आपके ज़ेहनी तार कुछ झनझनाने लगे हों. लेकिन ठहरिए. अभी तो दास्तां शुरू हुई है. आगे सुनिए. साल 1960 से आगे वाली दहाई में दौर ऐसा भी आया, जब फिल्में बनाने वाले नसीम बानो के घर आते तो थे उनकी बेटी को फिल्मों में लेने के लिए. मगर नसीम को देखते ही ठगे रह जाया करते थे. उनसे गुज़ारिश किया करते कि आप भी हमारी फिल्म में कोई किरदार अदा कर दें तो मेहरबानी हो. लेकिन नसीम साफ़ मना कर दिया करतीं. नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी से उनकी मुवाज़ना हो. यानी ख़ूबसूरती या अदाकारी को लेकर दोनों के बीच किसी तरह की कोई ग़ैर-वाजिब तुलना किया करे. लिहाज़ा, अपनी इसी सोच की वज़ा से नसीम ने फिर फिल्मों में नज़र आना ही छोड़ दिया. साल 1957 की ‘नौशेरवां-ए-आदिल’ उनकी आख़िरी हिन्दी फिल्म साबित हुई. हालांकि इसके बाद एक पंजाबी फिल्म ‘चडि्डयां दी डोली’ (1966) में वे ज़रूर दिखीं, बस. अलबत्ता, फिल्मों में न दिखने का मतलब ये न हुआ कि उन्होंने फिल्में पूरी तरह छोड़ दीं. बल्कि फिल्मी दुनिया में बेटी के उतर जाने के बाद उन्होंने अपने लिए नया किरदार चुन लिया. अपनी बेहद ख़ूबसूरत बेटी की ख़ूबसूरती में चांद लगाने का. फिल्मों के लिए उसके कपड़े, गहने वग़ैरा डिज़ाइन करने का. ये सिलसिला तब तक जारी रहा, जब तक उनकी बेटी हिन्दुस्तान के आला-अदाकार की शरीक-ए-हयात बनने के कुछ साल बाद फिल्मों से दूर न हो गई. तमाम जवां दिलों को आहें भरते हुए न छोड़ गई. और नसीम की बेटी को जानते हैं? सायरा बानो, जिन्हें देख लेने के बाद कई मर्तबा पलकें गिर जाने से ही मना कर देती थीं. अब तो समझ ही गए होंगे. मशहूर अदाकारा सायरा बानो की वालिदा और ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के शाहज़ादा सलीम यानी दिलीप कुमार उर्फ़ मोहम्मद यूसुफ़ खान की सास का तआर्रुफ़ (परिचय) है ये. इस बड़े तआर्रुफ़ की हक़दार भी हैं, नसीम बानो. क्यों? इसकी झलक तो शुरू में ही दी जा चुकी है. इनके बारे में किसी को कुछ और देखने, समझने की मंशा हो तो बस, एक फिल्म देख डालिए, ‘पुकार’. साल 1939 में आई थी. देखते ही समझ आ जाएगा कि ये सिर्फ़ ख़ूबसूरती की मालिकिन नहीं थी. ख़ूब-सीरती भी इनकी शख़्सियत में उतनी ही समाई हुई थी. ये फिल्म चर्चित ‘जहांगीरी-इंसाफ़’ (सलीम जहांगीर का न्याय) के इर्द-गिर्द बनी है. इसमें नसीम बानो ने मल्लिका-ए-हिन्दुस्तान नूर-जहां का किरदार अदा किया है. नूर-जहां, यानी जिसकी रोशनी, जिसका नूर पूरे जहां, पूरी दुनिया में फैलता हो. और क्या मज़ाल कि फिल्म देखने के बाद कोई नसीम बानो को ही नूर-जहां न माना करे. इस फिल्म में जो रुतबा नसीम बानो ने क़ायम किया, वह उन्हें बड़े होकर मिला हो, ऐसा भी नहीं है. पैदाइशी यह रुतबा उन्हें नसीब हुआ था. हसनपुर के नवाब अब्दुल वहीद खान के घर जो पैदाइश हुई थी इनकी. सो, परवरिश भी नवाबी शान-ओ-शौकत से हुई. पुरानी दिल्ली में पैदा हुई थीं नसीम. शुरू में रोशन-आरा बेगम नाम हुआ इनका. वालिदा शमशादबाई चाहती थीं कि बेटी डॉक्टर बने. इसलिए दिल्ली के अच्छे ‘क्वींस मैरी स्कूल’ में उनका दाख़िला कराया. इकलौती औलाद थीं. इसलिए मां-बाप कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे इनकी परवरिश और तालीम वग़ैरा में. हर ज़िद पूरी किया करते थे इनके मां-बाप. बताते हैं, पढ़ाई के दिनों में ये स्कूल भी पालकी से जाया करती थीं. ये रुतबा-ओ-रौब था इनका. छुट्‌टी के दिनों में अक्सर बंबई में जाया करती. वहां रिश्तेदारी थी. सो, ऐसे ही जब 14-15 बरस की हुईं तो गर्मी की छटि्टयों में एक मर्तबा बंबई आईं. नई पीढ़ी पर अब तक हिन्दी फिल्मों का असर ख़ूब होने लगा था. नसीम पर भी हुआ और अपने रिश्तेदार के घर से ज़िद कर के फिल्मों की शूटिंग देखने जाने लगीं, करीब-करीब रोज़ ही. फिर वहीं एक दिन तय कर लिया कि फिल्मों में ही काम करना है आगे. बताते हैं, ‘सिल्वर किंग’ (1935) फिल्म का वाक़्या है ये. फिल्मी दुनिया तक ऐसी आवा-जाही के बीच ही सोहराब मोदी जैसे बड़े अदाकारों और फिल्मकारों से भी जान-पहचान अच्छी हो चुकी थी. सोहराब मोदी तब एक फिल्म बना रहे थे. अंग्रेजी ज़बान के बड़े अदीब (साहित्यकार) हुए विलियम शेक्सपियर. उनके उपन्यास ‘हेमलेट’ की कहानी को सोहराब मोदी तब ड्रामे की तरह स्टेज पर खेला करते थे. उसी को उन्होंने अब ‘खून का खून’ के नाम फिल्मी सूरत देने का इरादा किया. इसमें नसीम को ओफीलिया के किरदार के लिए लेना चाहते थे. नसीम भी तैयार थीं. लिहाज़ा उन्होंने एक रोज घर लौटकर अपनी मां के सामने इसकी मंशा का इज़हार कर दिया. मगर वालिदा ने मना कर दिया. पर नसीम ठहरीं ज़िद्दी, तो अपनी मांग मनवाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठ गईं. आख़िर मां को ही मानना पड़ा. और इस तरह नसीम के फिल्मों में आने का रास्ता बना. फिल्म बनी. बोलती फिल्मों का शुरुआती दौर था वह. इसलिए ज़्यादा ताम-झाम नहीं था. बताते हैं, सोहराब मोदी ने स्टेज पर खेले जाने वाले नाटक को ही दो कैमरों की मदद से रिकॉर्ड कर लिया था. इसलिए फिल्म बनने-बनाने का काम ज़ल्द ही निपट गया. फिल्म 1935 में ही पर्दे पर भी आ गई. यह ज़्यादा चली तो नहीं लेकिन नसीम के काम, उनकी अदाकारी और उनकी ख़ूबसूरती पर हर किसी ने ग़ौर फ़रमा लिया था. ऐसे में, फिल्म से फ़ारिग़ होकर छुटि्टयों के बाद जब नसीम वापस दिल्ली पहुंची तो उन्हें स्कूल की प्रिंसिपल ने उन्हें आगे पढ़ाई जारी रखने की इजाज़त देने से इंकार कर दिया. अलबत्ता, फिल्मी-दुनिया के दरवाज़े तो खुल ही चुके थे. सो, नसीम ने अब वापस बंबई आकर सोहराब मोदी की ही फिल्म कंपनी ‘मिनर्वा मूवीटोन’ के साथ उनकी अगली फिल्मों के लिए एक करार कर लिया. इस तरह उनका फिल्मी-सफ़र बा-क़ायदा शुरू हो गया. नसीम की ज़िंदगी में अगला अहम पड़ाव तब आया, जब उन्होंने बचपन के दोस्त मोहम्मद एहसान-उल-हक़ से शादी की. वे भी फिल्मी दुनिया से जुड़े थे. लिहाज़ा दोनों ने तय किया कि अब अपनी फिल्म कंपनी बनाई जाए. और यह बनी भी, ‘ताजमहल पिक्चर्स’ के नाम से. इस बैनर तले ‘उजाला’ (1942), ‘बेगम’ (1945), ‘मुलाक़ात’ (1947), ‘चांदनी रात’ (1949), जैसी कई अच्छी फिल्में बनीं. कि तभी हिन्दुस्तान का बंटवारा हो गया और एहसान-उल-हक़ पाकिस्तान चले गए. फिर वहीं जा बसे. लेकिन नसीम बानो ने हिन्दुस्तान को चुना. बताते हैं, इसी दौर में कुछ वक़्त के लिए वे लंदन में भी जाकर रहने लगीं थीं. अपनी दोनों औलादों- सायरा बानो और सुल्तान अहमद के साथ. हालांकि, फिल्मों के सिलसिले में बंबई आना-जाना लगा रहता था. इसी वज़ा से फिर सायरा बानो का भी फिल्मों में आना हो गया. इसके बाद नसीम बानो बंबई में ही आकर रहने लगीं. बहरहाल, फिल्में छोड़ने के कुछ बरस बाद नसीम बानो एक बार फिर सुर्ख़ियों में आईं, जब उन्होंने 22 बरस की बेटी सायरा का निकाह 44 बरस के दिलीप कुमार से कराया. बताते हैं, इस निकाह के लिए जितनी कशिश सायरा की हुई, क़रीब-क़रीब उतनी ही कोशिश उनकी वालिदा नसीम बानो की भी रही. हालांकि, आगे चलकर एक फिल्म मैगज़ीन ‘स्टारडस्ट’ को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इस तरह की किसी कोशिश से इंकार भी किया था. बल्कि कहा था तो यूं भी था कि उन्हें अपनी बेटी के फ़ैसले पर अचरज ही हुआ है. मगर जो भी हो, इस काम के पूरे होने के बाद वे सुर्ख़ियों से दूर ही रहीं फिर. और इसके बाद एक तारीख़ वह भी आई जब वे दुनिया-ए-फ़ानी (नश्वर-जगत) से ही दूर हो गईं, हमेशा के लिए. वह तारीख़ हुई 18 जून की. साल 2002, जब नसीम बानो ने बंबई के अपने घर में आख़िरी सांस ली. उस वक़्त 85 बरस से कुछ ऊपर की थीं ‘रानी-सुंदरी’. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Birth anniversary, Hindi news, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : July 04, 2022, 17:30 IST