फैसला डिलीट करने के मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर CJI की टिप्पणी बहुत अहम
फैसला डिलीट करने के मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर CJI की टिप्पणी बहुत अहम
अगर कोई दोषी अपीलीय कोर्ट से बरी हो जाता है तो क्या उसे ये अधिकार है कि वो ट्रायल कोर्ट के फैसले को सार्वजनिक डोमेन से हटवा सके. मद्रास हाई कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में एक पोर्टल को बरी व्यक्ति के बारे में पहले चले मुकदमे की जानकारियां हटवाने का आदेश दे दिया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद हाई कोर्ट के आदेश को सर्वोच्च अदालत ने स्टे कर दिया है. लेकिन इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले का बहुत व्यापक असर होगा.
अगर ट्रायल कोर्ट से दोषी व्यक्ति हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से बरी कर दिया जाता है तो क्या उसके दोष के बारे में जो दस्तावेज हैं उन्हें हटा दिया जाय. ये सवाल सुप्री कोर्ट के सामने आया है. इस सवाल का बहुत अधिक ताल्लुक मीडिया से भी है. दरअसल, एक व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट ने उसके अपराध में दोषी ठहराया. अपील के बाद मद्रास हाई कोर्ट ने उसे बरी कर दिया. व्यक्ति ने अपने भुला देने के अधिकार के तहत हाई कोर्ट से प्रार्थना की कि ट्रायल कोर्ट के फैसले को भी उसकी वेबसाइट से हटाया जाय. उसकी ये प्रार्थना भी मान ली गई. ट्रॉयल कोर्ट के फैसले और पूरे मामले को कानूनी इतिहासकार के तौर पर दर्ज करने वाली वेब पोर्टल इंडियन कानून ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी .
इंडियन कानून का कहना है कि ट्रायल कोर्ट के फैसले के दस्तावेज हटाने का आदेश देना ठीक नहीं है. इस मसले की पहली सुनवाई सीजेआई की अदालत में हुई और सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल जानकारी हटाने के मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को स्टे कर दिया. अब सुप्रीम कोर्ट में बरी किए गए व्यक्ति के भुला देने के अख्तियार और लोगों के सूचित रहने के अधिकार के बीच क्या अहम है इस पर कोर्ट विचार करेगा.
सीजेआई न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा कि भले ही कोई हाई कोर्ट किसी ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट देती है लेकिन वो मुकदमे की जानकारी हटाने के आदेश कैसे दे सकती है. उन्होंने कहा – “तीन स्तरों वाली न्याय व्यवस्था में हर न्यायालय का फैसला सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा होता है.” आगे इस मामले की सुनवाई होगी और सुप्रीम कोर्ट इस पर कोई स्थायी व्यवस्था देगा. लेकिन इस मामले में मीडिया अभी प्रभावित होती न दिख रही हो लेकिन इसका असर दूरगामी हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच कर रही है.
भले ही कानूनी इतिहासकार का काम करने वाली वेबसाइट समाचारों की वेबसाइट न हो, लेकिन उसका काम भी तो मीडिया का ही है. बहुत सारे मसले रोजाना ऐसे होते हैं जिनमें ट्रायल कोर्ट के फैसले को अपीलीय कोर्ट पलट देते हैं. ट्रायल कोर्ट से सजा मिलने पर बहुत सारे मामलों में न्यूज वेबपोर्टल और अखबार व्यक्ति के गुनाह और कोर्ट की कार्यवाही छापते लिखते हैं. वीडियो भी बनाते हैं.
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अब अगर बरी होने वाला व्यक्ति अपने पुराने दस्तावेज हटाने की मांग करने लगे तो उसका निपटारा अव्यवहारिक होने का अंदेशा है. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील रविशंकर कुमार कहते हैं – ” वैसे तो ये मामला अभी विचाराधीन है, फिर भी न्यायालयों को ऐसे ही आदेश देने चाहिए जिन्हें लागू कराया जा सके.” अगर किसी ने पूरे दस्तावेज को किसी वेबसाइट से डाउनलोड कर लिया हो तो फिर उसे कैसे हटाया जा सकेगा.
बीबीसी इंडिया और पीटीआई भाषा के संपादक रह चुके मधुकर उपाध्याय बताते हैं कि अगर कोई वेबसाइट से मामला हटावाने का आदेश प्राप्त भी कर लेता है तो अखबारों में छप चुके मसलों का क्या होगा. वे कहते हैं- “अब हम लोग पहले की तुलना में बहुत अधिक कनेक्टेड दुनिया में रह रहे हैं. वेब और वर्चुअल कनेक्टिविटी की दुनिया में ये कर पाना संभव ही नहीं है.”
हाई कोर्ट के रिटायर जज और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र सिंह का इस मामले पर कहना है कि चूंकि अभी सुप्रीम कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया है, लिहाजा वे इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते. फिर भी वे इस बात पर सहमत है कि ये मामला बहुत संवेदनशील है और इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत सारी बातों को साफ करेगा. इसका व्यापक असर होगा.
Tags: Madras high court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : July 25, 2024, 19:43 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed