ब्रांदा हादसा: देश का हाल ऐसा क्यों है कि देस जाने को धक्के खाने पड़ते हैं
ब्रांदा हादसा: देश का हाल ऐसा क्यों है कि देस जाने को धक्के खाने पड़ते हैं
1990 के दशक में जब उदारीकरण तेज हुआ तब शहरों में बाहर से लोगों का आना भी बढ़ा. इसकी वजह शहर में काम के अवसर बढ़ना था. साथ ही, शहरों में होने वाले विकास कार्यों के चलते भी लोगों की जरूरत बढ़ी और बेहतर जिंदगी की चाह लिए शहर आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी. लेकिन, इतने सालों बाद भी विकास की धुरी बड़े शहर ही बने हुए हैं.
दीवाली और छठ का त्योहार. परदेस से ‘देस’ जाने के लिए हाहाकार. ‘सिस्टम’ को इससे नहीं कोई सरोकार. स्टेशन पर भीड़ बेशुमार. मची भगदड़ और कई लोगों का अस्पताल पहुंचा कर कराना पड़ा उपचार.
यह मुंबई के बांद्रा टर्मिनस पर त्योहार पर घर जाने वालों की भीड़ और रेलवे की बदइंतजामी के चलते 27 अक्तूबर को हुई घटना का संक्षिप्त ब्योरा है.
एक और खबर अमेरिका से है. अमेरिका ने अपने यहां अवैध रूप से रह रहे लोगों को एक चार्टर्ड प्लेन में भरा और जहाज को भारत रवाना करा दिया. आपके मन में सवाल उठ सकता है कि इन दोनों खबरों को एक साथ क्यों बताया जा रहा है? इन दोनों का आपस में क्या संबंध है?
संबंध है. दोनों समस्याओं के मूल में है पलायन. अपना गांव-देश छोड़ कर दूसरे शहर-महादेश में ठिकाना बनाने की मजबूरी या/और महत्वाकांक्षा. मुंबई के बांद्रा टर्मिनस पर बांद्रा-गोरखपुर एक्सप्रेस में सवार होने के लिए ‘जंग’ लड़ने वाले लोगों में से ज्यादातर मजबूरी में ही अपना गांव-शहर छोड़ वहां गए हुए लोग होंगे. अपने यहां ‘रोटी’ का जुगाड़ नहीं हो पाने की मजबूरी या रोटी पर लगाने के लिए ‘घी’ का इंतजाम करने की महत्वाकांक्षा के चलते.
मुंबई की तीन-चौथाई से ज्यादा आबादी अपना घर-गांव-शहर छोड़कर आए लोगों की ही है. महाराष्ट्र से बाहर की बात करें तो मुंबई में सबसे ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश से गए हैं. ऐसा नहीं है कि यह हाल केवल मुंबई का है. लगभग सभी शहरों का यही हाल है. हर राज्य से लोग काम की तलाश में बाहर जाते हैं. चाहे राज्य के भीतर जाएं, बाहर या देश से बाहर. 2011 की जनगणना में इससे जुड़े सामने आए आंकड़ों पर नजर डालें. जनगणना में पलायन करने वालों की कुल संख्या 4,14,22,917 बताई गई. कुछ राज्यों के आंकड़े देखें… राज्यकाम के सिलसिले में घर छोड़कर बाहर जाने वालों की संख्याउत्तर प्रदेश31,56,125गुजरात30,41,779महाराष्ट्र79,01,819बिहार7,06,557पंजाब12,44,056
अगली जनगणना तो अभी होनी है, लेकिन पीएलएफएस सर्वे (2020-21) पर आधारित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में माइग्रेशन की दर 28.9 प्रतिशत थी. यानी हर चौथा आदमी घर छोड़ कर बाहर जा रहा है. हालांकि, इसमें सरकार का दावा है कि काम के सिलसिले में माइग्रेशन केवल 10.8 प्रतिशत ही था.
सच यह है कि 1990 के दशक में जब उदारीकरण तेज हुआ तब शहरों में बाहर से लोगों का आना भी बढ़ा. इसकी वजह शहर में काम के अवसर बढ़ना था. साथ ही, शहरों में होने वाले विकास कार्यों के चलते भी लोगों की जरूरत बढ़ी और बेहतर जिंदगी की चाह लिए शहर आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी. लेकिन, इतने सालों बाद भी विकास की धुरी बड़े शहर ही बने हुए हैं. नतीजतन लोगों को काम की तलाश और बेहतर जिंदगी की आस मे शहरों का रुख करना पड़ रहा है.
सरकार शहरों पर बढ़ते इस दबाव को झेलने लायक बुनियादी ढांचा विकसित करने में सफल साबित नहीं हो पा रही. अगर सरकार इसकी कोशिश भी करे तो व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है कि जिस रफ्तार से शहर आने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है, उस गति से बुनियादी ढांचा तैयार किया जा सके. बांद्रा टर्मिनस पर हुआ हादसा क्षमता और जरूरत के बीच बड़े अंतर का नतीजा का एक छोटा-सा नमूना भर है. गांवों या छोटे शहरों से जहां काफी हद तक मजबूरी की वजह से पलायन हो रहा है, वहीं बड़े शहरों में भी पलायन का रोग लगा हुआ है. यहां से पलायन के पीछे शानदार जीवन जीने की महत्वाकांक्षा और उसके लिए अपने यहां उपलब्ध संसाधनों को नाकाफी मानने की प्रवृत्ति ज्यादा काम करती है.
ऐसा भी नहीं है कि उनकी सोच निराधार है. आंकड़े बताते हैं कि विदेश जाकर कमाने वाले भारतीयों की औसत कमाई कुछ ही समय में 118 प्रतिशत बढ़ गई, जबकि अपने देश में इतनी कमाई तक पहुंचने में 20 साल लग जाते.
यूएस कस्टम्स एंड बॉर्डर पेट्रोल के मुताबिक अक्तूबर 2023 और सितंबर 2024 के बीच 90,415 भारतीयों को अवैध तरीके से अमेरिका में प्रवेश करने की कोशिश करते पकड़ा गया है. साल 2023 में 216,219 भारतीयों ने तो नागरिकता ही छोड़ दी. साल-दर-साल नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. पांच साल में ही करीब 8.5 लाख भारतीय दूसरे देश के नागरिक बन गए.
सालकितने भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता2023216,2192022225,6202021163,370202085,2562019144,017
विदेश मंत्रालय के एक आंकड़े के मुताबिक, 1.36 करोड़ एनआरआई (नॉन रेजिडेंट्स इंडियन), 1.87 करोड़ पीआईओ (पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन) और 3.23 करोड़ ओसीआई (ओवरसीज सिटिजंस ऑफ इंडिया) भारत के बाहर निवास करते हैं. औसतन हर साल करीब ढाई लाख लोग भारत से बाहर रहने जाते हैं. इतने लोग दुनिया के किसी देश से विदेश रहने नहीं जाते.
ये सभी आंकड़े ऊपर बताई गई प्रवृत्ति का ही नतीजा हैं. यह प्रवृत्ति तभी रुकेगी जब सरकार विकास को बड़े शहरों से आगे बढ़ा कर छोटे व मंझोले शहरों और अंतत: गांवों तक ले जाने में सफल साबित होगी. घर छोड़कर दूर जाने के मुख्य रूप से तीन-चार कारण ही होते हैं- पढ़ाई, कमाई और जिंदगी जीने में आराम. सरकार इन तीन बातों की विश्वस्तरीय व्यवस्था अगर अपने देश में कर दे तो एक सीमा से ज्यादा पलायन रुक सकता है.
आज इन मोर्चों पर हमारी हालत क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है. पढ़ाई एक तो जरूरत से ज्यादा महंगी है और उस पर भी उसका स्तर ऐसा नहीं कि वह आपको एक अच्छा इंसान या प्रोफेशनल के रूप में तैयार करे। हम जिसे अपने यहां का बेहतरीन संस्थान मानते हैं, वह आईआईटी दिल्ली विश्व स्तर की रैंकिंग (क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स) में 150वें नंबर पर आता है. जिंदगी जीने की बात करें तो सुविधा की बात तो छोड़ दीजिए, हम आज देश के हर घर तक पीने का साफ पानी नहीं पहुंचा सके हैं. ये तो बस एक बानगी भर है, यह समझने के लिए हमें कितना कुछ करना है। नहीं कर पाए तो यही समझिए कि बांद्रा स्टेशन पर जो हुआ, वह कुछ भी नहीं है.
Tags: Diwali Celebration, Mumbai News, StampedeFIRST PUBLISHED : October 27, 2024, 15:43 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed