कठिन परिस्थितियों में मिली सफलता जानें रोडवेज के अधिकारी की कहानी

Ballia Roadways Department: बलिया के रोडवेज विभाग के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक ने लोकल 18 से अपने जीवन में आई कठिनाइयों को साझा किया. उन्होंने बताया कि असफलता से कभी निरास नहीं होना चाहिए. क्योंकि सफलता एक दिन जरूर मिलती है.

कठिन परिस्थितियों में मिली सफलता जानें रोडवेज के अधिकारी की कहानी
सनन्दन उपाध्याय/बलिया: कहते हैं कि लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती… कुछ युवा असफलता पाने के बाद प्रयास करना ही बंद कर देते हैं. शायद उनको पता नहीं होता कि अगले पायदान पर सफलता इंतजार कर रही है. ऐसे में युवाओं के लिए बलिया एआरएम की सफल कहानी बड़ी रोचक प्रेरणास्रोत और इमोशनल है. हिम्मत नहीं हारना चाहिए बता दें कि एक तरफ असफलता दूसरी तरफ हताशा और निराशा ,लेकिन हिम्मत में वो शक्ति थी कि सफलता भी कदम चूमने पर मजबूर हो गई. जब सफलता मिली तो पिता का साथ छूट गया. फिर भी हिम्मत नहीं हारी और लोन के सहारे छोटे भाई और माता के साथ अपने बीबी बच्चों का भरण पोषण किया. आइए जानते हैं अपने सफलता को लेकर बलिया एआरएम अजय कुमार ने क्या कुछ कहा. सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक (ARM) बस डिपो बलिया अजय कुमार ने कहा कि वह मूल निवासी लखनऊ के हैं. कभी इंटरव्यू तो कभी परीक्षा में असफल सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक एआरएम अजय कुमार ने कहा कि शुरू से लेकर इंटर तक की पढ़ाई लखनऊ से ही हुई. उन्होंने मेकेनिकल से डिप्लोमा किया. कई बार में प्रयास किया, लेकिन असफलता मिली. जिसके कारण जीवन में हताशा और निराशा रही. मैकेनिक के पद पर भी प्रयास किया, लेकिन असफलता ही हाथ लगी. रोडवेज में फोरमैन की भर्ती निकली तो उन्होंने परीक्षा दिया और इंटरव्यू में सफल हुआ. सन 1989 में पोस्टिंग मिली और मैं नौकरी करने लगा. लगातार 2012 तक मेरा कोई प्रमोशन नहीं हुआ. इसलिए एक बार फिर हताश हुए, लेकिन फिर भी पूरे प्रयास और लगन के साथ नौकरी करते रहे और अंत में अच्छे परिणाम के स्वरूप में एआरएम बन गया. उन्होंने कहा कि मैं अभी तक गाजियाबाद, बुलंदशहर, लखनऊ और कानपुर आदि जगहों पर कार्य कर चूका हूं. अंत 2023 से बलिया में एआरएम के पद पर कार्यरत हूं. मां बाप के सवाल पर भावुक हुए मां बाप के सवाल पर भावुक होते हुए सहायक क्षत्रिय प्रबंधक ने लोकल 18 को बताया कि सफलता मिलने के लगभग 1 साल बाद पिताजी भगवान को प्यारे हो गए. उसके बाद पूरे घर की जिम्मेदारी अपने सर पर आप पड़ी. भाई को पढ़ाना मां का इलाज करना था. इस दौरान फोरमैन के पद पर था. उस समय बहुत ज्यादा सैलरी नहीं हुआ करती थी तो सरकार के योजना के अंतर्गत लोन लेकर अपने दोनों बच्चों को पढ़ाया जो आज नौकरी कर रहे हैं. जीवन में सफलता आती है, इससे निराश नहीं होना चाहिए. प्रयास करने से सफलता जरूर मिलती है. इसका सबसे बड़ा जीता जागता उदाहरण वह हैं. Tags: Ballia news, Local18FIRST PUBLISHED : June 15, 2024, 18:04 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed