भाजपा या लालू किसके साथ नीतीश ज्यादा सहज शाह से नाराजगी पर कल उठेगा पर्दा!
भाजपा या लालू किसके साथ नीतीश ज्यादा सहज शाह से नाराजगी पर कल उठेगा पर्दा!
नीतीश कुमार के भाजपा से नाराज होने की चर्चा मात्र से लालू यादव की बांछें खिल गई हैं. नीतीश के लिए दरवाजे खोल वे उनके आने का इंतजार कर रहे हैं. अमित शाह के बयान से नीतीश के नाराज होने की चर्चा है. शाह भी पांच जनवरी को पटना पहुंच रहे हैं. कथित नाराजगी की असलियत अगले 48 घंटों में उजागर हो जाने की उम्मीद की जानी चाहिए
नीतीश कुमार की भाजपा से कथित नाराजगी की सच्चाई अभी तक सामने नहीं आई है. नीतीश कुमार कहते तो हैं कि वे एनडीए में ही रहेंगे, पर किसी को भरोसा नहीं हो रहा. भरोसा न होने की वजह भी है. पहले भी वे जिस भाजपा के साथ मरते दम तक न जाने की बात कहते रहे, पर अब भाजपा का साथ न छोड़ने की बात कह रहे हैं. पहले की तरह ही उनका इस बार भी कहने का अंदाज है. इसलिए उनकी बातों पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा. सवाल उठता है कि नाराजगी है तो भाजपा के साथ वे क्यों बने रहने की बात बार-बार कह रहे हैं. उनकी नाराजगी की चर्चा मात्र से आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव उत्साहित हैं. उन्हें नीतीश के इंडिया ब्लॉक में लौट आने का बेसब्री से इंतजार है.
भाजपा भरोसेमंद सहयोगी
भाजपा और नीतीश कुमार का साथ समता पार्टी के समय से है. नीतीश को पहली बार सीएम बनने में भाजपा ने ही उनका साथ दिया तो आज भी उनके साथ खड़ी है. नीतीश यह भी जानते हैं कि भाजपा जो कहती है, उस पर कायम रहती है. वर्ष 2020 में चुनाव से पहले भाजपा ने कहा था कि एनडीए को कामयाबी मिली तो नीतीश कुमार ही सीएम बनेंगे. भाजपा ने ऐसा किया भी. जेडीयू जब 43 विधायकों वाली पार्टी बन गया, तब भी अपने 74 विधायक होने के बावजूद भाजपा ने उन्हें सीएम बनाया. हालांकि नीतीश कुमार ने नैतिक आधार पर सीएम बनने से शुरू में मना कर दिया था, लेकिन गठबंधन धर्म का निर्वाह करते हुए भाजपा ने उन्हें इसके लिए मना लिया.
आरजेडी में कहां वैसी बात
बाद में दो साल के लिए नीतीश आरजेडी के साथ चले गए. पर, वहां उन्हें महसूस हुआ कि भाजपा जैसी बात आरजेडी के साथ रहने में नहीं है. उन्हें सीएम की कुर्सी तेजस्वी यादव को सौंपने के लिए जिस तरह मजबूर किया जाने लगा, उसका भी उन्हें एहसास है. दबाव का ही असर था कि नीतीश को नालंदा में यह घोषणा करनी पड़ी कि 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में होगा. लालू यादव अपने बेटे की ताजपोशी के लिए इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहते थे. इसलिए नीतीश को किनारे लगाने के लिए उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में भेजने का ताना-बाना लालू ने बुना.
इंडिया ब्लॉक में हुई फजीहत
नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक बनाने की पहल जरूर की, लेकिन इसके लिए दबाव लालू यादव का था. लालू विपक्षी गठबंधन का अगुआ बना कर नीतीश को बिहार से बाहर भेजना चाहते थे. हड़बड़ी इतनी थी कि सोनिया गांधी से मिलाने के लिए लालू खुद नीतीश को लेकर दिल्ली गए. सोनिया की सलाह पर नीतीश आगे भी बढ़े, लेकिन विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक में ही लालू के दांव के वे शिकार हो गए. पीएम की रेस से तो नीतीश ने पहले ही अपने को बाहर कर लिया था, लालू के कारण वे संयोजक भी नहीं बन पाए.
आरजेडी ने उपेक्षा की
आरजेडी ने नीतीश की उपेक्षा शुरू कर दी. आरजेडी के नेता पहले से ही नीतीश के सीएम पद छोड़ने और तेजस्वी की ताजपोशी की तारीखें बताते रहे थे. जब लोकसभा चुनाव के लिए नीतीश ने टिकट बंटवारे पर जोर देना शुरू किया तो लालू आनाकानी करने लगे. लालू कहने लगे कि चुनाव में अभी समय है, इसलिए टिकट बंटवारे की हड़बड़ी क्यों. दरअसल लालू जेडीयू को सम्मानजनक सीटें देने के मूड में नहीं थे. नीतीश भी ठहरे राजनीति के माहिर खिलाड़ी. उन्होंने आरजेडी की मंशा भांप ली और साथ छोड़ने में ही भलाई समझी. भाजपा के साथ आने पर उन्हें उतनी सीटें आसानी से मिल गईं, जितनी पर जेडीयू पिछली बार जीता था. नीतीश शायद अब भी आरजेडी की उपेक्षा नहीं भूले होंगे.
नाराजगी की खबरें क्यों?
अब सवाल उठता है कि जब एनडीए में नीतीश इतने आराम से हैं तो उनकी नाराजगी की खबरें क्यों आ रही हैं. इसके दो ही तात्कालिक कारण दिखते हैं. पहला यह कि महाराष्ट्र में अपने सहयोगी एकनाथ शिंदे को भाजपा ने दूसरी बार सीएम नहीं बनाया. हालांकि यह कोई उचित कारण नहीं है. भाजपा ने शिंदे की शिवसेना से अधिक उम्मीदवार उनकी सहमति से उतारे थे. इतना ही नहीं, भाजपा के कई नेता शिवसेना के टिकट पर चुनाव भी लड़े. भाजपा ने शिवसेना से अधिक सीटें जीतीं. इसलिए अपना सीएम बनाने का भाजपा को नैतिक हक था. बिहार में वैसे भी जेडीयू भाजपा से अधिक या बराबर सीटों पर लड़ता रहा है. ऐसे में ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी को अपना सीएम बनाने का मौका मिलता है तो इसमें बुराई ही क्या है. वैसे नीतीश को यह मालूम है कि कम सीटों के बावजूद भाजपा ने उन्हें सीएम बनने के लिए मान मनौव्वल किया था. सिर्फ इसलिए कि चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ा गया था.
शाह के बयान से नाराज!
नीतीश कुमार की नाराजगी की कथित खबरों की बाढ़ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का एक बयान है. उन्होंने एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि बिहार में सीएम का निर्णय संसदीय बोर्ड करेगा. व्यावहारिक तौर पर चुनाव जिसके नेतृत्व में होता है, सफलता मिलने पर सीएम भी वही बनता है. नीतीश के नेतृत्व में इस साल का विधानसभा चुनाव होगा, इससे तो किसी का इनकार भी नहीं है. रही बात कामयाब होने पर सीएम की तो संसदीय बोर्ड और विधायक दल का फैसला तकनीकी प्रक्रिया है.
शाह ही साफ करेंगे रुख
अमित शाह दो दिन के बिहार दौरे पर 5 जनवरी को आने वाले हैं. पटना में उनके दो कार्यक्रम हैं. भूतपूर्व भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी की जयंती पर होने वाले कार्यक्रम में वे शामिल होंगे. फिर गुरुद्वारा साहिब जाएंगे. पार्टी नेताओं के साथ बैठक भी करेंगे. संभव है कि वे नीतीश कुमार से भी मिलें. दोनों की मुलाकात हो गई तो संशय के बादल स्वत: छंट जाएंगे. यह भी हो सकता है कि अपने कार्यक्रम के दौरान अमित शाह मीडिया से भी कहीं न कहीं मुखातिब हो जाएं या फिर कार्यक्रम में ही कुछ ऐसा बोल जाएं, जिससे रहस्य से पर्दा हट जाए. हालांकि उन्होंने जो कुछ भी कहा है, उसमें उन्हें सफाई देने की जरूरत नहीं. बहरहाल, अगले 48 घंटे में स्पष्ट हो जाएगा कि नीतीश कुमार सच में नाराज हैं या नाराजगी की खबरें महज मीडिया की उपज हैं.
Tags: Amit shah, CM Nitish KumarFIRST PUBLISHED : January 4, 2025, 10:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed