बिहार में NDA की बनती है सरकार तो महाराष्ट्र फॉर्मूला लागू नहीं कर पाएगी BJP
बिहार में NDA की बनती है सरकार तो महाराष्ट्र फॉर्मूला लागू नहीं कर पाएगी BJP
बिहार में बड़ी पार्टी बन कर भी भाजपा सरकार बनाने के लिए महाराष्ट्र फार्मूला लागू करने की स्थिति में नहीं होगी. यानी नीतीश कुमार की सीएम की कुर्सी अगली बार भी सलामत रहने के पूरे चांस हैं. भाजपा के सामने दूसरा विकल्प नहीं है, जबकि नीतीश कुमार के सामने दूसरे विकल्प के तौर पर लालू यादव की पार्टी आरजेडी के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लाक का रास्ता खुला है.
महाराष्ट्र में तीन दलों की महायुति (NDA) ने चुनाव लड़ा. चुनाव का नेतृत्व शिवसेना प्रमुख और तब सीएम रहे एकनाथ शिंदे ने किया. हालांकि महायुति ने शिंदे को सीएम चेहरा बनाने की बात कभी नहीं कही. भाजपा चुनाव तक सहयोगी की भूमिका में बनी रही. नतीजों में भाजपा महायुति की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. नैतिक आधार पर या भाजपा के दबाव में शिंदे ने सीएम की कुर्सी देवेंद्र फणनवीस के लिए खाली कर दी. बीते विधानसभा चुनाव में बिहार में भाजपा ने ऐसा नहीं किया. कम सीटें मिलने के बावजूद जेडीयू नेता और अपने पुराने सहयोगी नीतीश कुमार को ही सीएम की कुर्सी सौंप दी थी.
बिहार में महाराष्ट्र फार्मूले की चर्चा
अगले साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है. राजनीतिक गलियारे में इन दिनों एक बात की खूब चर्चा हो रही है. कहा जा रहा है कि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत के बाद भाजपा का मनोबल बढ़ा है. इसमें बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा उपचुनावों के परिणामों ने भाजपा का मनोबल बढ़ाने में कैटलिस्ट का काम किया है. इसलिए बिहार में भी भाजपा पहले वाली गलती नहीं करेगी. यानी बीते चुनाव जैसे ही नतीजे आए तो नीतीश कुमार की दो दशक से सुरक्षित रही सीएम की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है.
महाराष्ट्र की तरह सीट शेयरिंग नहीं!
पिछले रिकॉर्ड और मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि नीतीश कुमार भाजपा को अपने से अधिक सीटें देंगे. भाजपा और जेडीयू अभी तक बराबर सीटों पर ही लड़ते रहे हैं या भाजपा को शेयर में जेडीयू से कम सीटें मिली हैं. महाराष्ट्र में भाजपा सर्वाधिक सीटों पर लड़ी तो सर्वाधिक सीटें जीत गई. सहयोगी दोनों दलों को जो सीटें मिलीं, वे भाजपा के मुकाबले कम थीं. भाजपा कुल 288 में अकेले 149 सीटों पर लड़ी. दोनों सहयोगी पार्टियों के हिस्से 139 सीटें आईं. बिहार में ज्यादा नहीं तो बराबरी में भाजपा और जेडीयू चुनाव लड़ते रहे हैं. तब नीतीश कुमार को भाजपा से अधिक सीटें भी मिलती रही हैं. 2020 के नतीजे अपवाद हैं. इसलिए महाराष्ट्र का फार्मूला बिहार में चल पाना असंभव लगता है.
भाजपा हमेशा 100 सीट से नीचे रही
पीछे मुड़ कर देखें तो 2005 से 2020 तक भाजपा की सीटें दूसरे-तीसरे नंबर पर सौ से नीचे ही रही हैं. 2005 में भाजपा और जेडीयू साथ लड़े. जेडीयू 139 सीटों पर लड़ा और 88 पर जीत मिली. भाजपा ने 102 पर लड़कर 54 सीटें जीतीं. 2010 में दोनों साथ लड़े तो जेडीयू ने 115 और भाजपा ने 91 सीटें जीतीं. 2015 में भाजपा 53 सीटें जीत सकी. 2020 में भाजपा की सीटें पिछले मुकाबले बढ़ीं, पर 100 से नीचे 74 पर ही अटक गई. इसलिए ऐसी संभावना कम ही है कि भाजपा बिहार में सरकार बनाने भर की सीटें अकेले जीत जाए. पहले भाजपा या एनडीए का मुकाबला सिर्फ लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन से ही होता रहा है. अब तो नए खिलाड़ी के रूप में जन सुराज के प्रशांत किशोर भी उभर रहे हैं. भाजपा को सरकार बनाने भर सीटें लाने में बाधक बनने का ट्रेलर वे विधानसभा उपचुनाव में दिखा भी चुके हैं.
चिराग के कारण कमजोर पड़े नीतीश
पिछले चुनाव में लोजपा (आर) के नेता चिराग पासवान ने खेल नहीं बिगाड़ा होता तो नीतीश की पार्टी जेडीयू की सीटें दो-ढाई दर्जन जरूर बढ़ गई होतीं. आंकड़े यही बताते हैं. नीतीश को 43 सीटों पर चिराग ने समेट दिया था. इसका दंश अब तक नीतीश कुमार को सालता रहा है. भाजपा विधानसभा में बड़ी पार्टी तो बनी, लेकिन नीतीश कुमार के सहयोग के बिना वह सरकार बनाने का सपना भी नहीं देख सकती थी. भाजपा को यह भी एहसास था कि एनडीए ने चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा था. उनके सेंटीमेंट को भी भाजपा समझ रही थी. नीतीश के अतीत से भाजपा को यह भी अंदाजा था कि सीएम न बनाए जाने पर वे महागठबंधन के साथ का लाभ उठा सकते हैं. बाद में ऐसा हुआ भी.
भाजपा को कबूल है नीतीश का नेतृत्व
भाजपा इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही राग अलाप रही है कि अगला चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही एनडीए लड़ेगा. भाजपा के ऐसा कहने के पीछे उसकी मजबूरी है. केंद्र में नीतीश के 12 सांसदों के सहारे भाजपा सरकार चला रही है. यह स्थिति 2029 तक नहीं बदलने वाली. यानी बीते चुनाव की तरह बिगड़ी स्थिति में भी सीटें पाकर नीतीश की कुर्सी पर कोई खतरा नजर नहीं आता. भाजपा ने महाराष्ट्र फार्मूला लागू करने का सोचा भी तो उसे कामयाबी मिलनी मुश्किल होगी.
नीतीश के लिए ‘इंडिया’ का खुला आफर
महागठबंधन में नीतीश के लौटने के न्यौते समय-समय पर जिस तरह आरजेडी के नेता देते रहते हैं, उससे इतना तो स्पष्ट ही है कि उनके पास विकल्प खुले हैं. गठबंधन बदलने में नीतीश अपने दावों और बातों की नैतिकता जिस तरह भूलते रहे हैं, उसे देख कर यह असंभव भी नहीं दिखता. इसलिए नीतीश की कुर्सी पर कोई खतरा अगली बार भी नजर नहीं आता. हां, भाजपा को मौका तभी यह अवसर मिल सकता है, जब नीतीश खुद इसकी सहमति दे दें.
Tags: BJP, Chief Minister Nitish Kumar, RJD leader Tejaswi YadavFIRST PUBLISHED : December 10, 2024, 06:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed