कोटे में कोटा राजस्थान में क्या है चुनौतियां क्या कहते हैं एक्सपर्ट

Jaipur News : सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण में उप वर्गीकरण करने के फैसले को लेकर राजस्थान में कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं. समता मंच ने इस फैसले को इन समुदायों की पिछड़ी जातियों के लिए कोर्ट का बड़ा उपहार बताया है. जानें राजस्थान में क्या है आरक्षण का गणित.

कोटे में कोटा राजस्थान में क्या है चुनौतियां क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जयपुर. हाल ही में देश के सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच ने फैसला दिया है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी-एसटी) को मिलने वाले आरक्षण के कोटे के भीतर भी कोटा बनाकर आरक्षण दिया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को कोटे के भीतर कोटे की अनुमति दी है. वहीं यह भी साफ किया है राज्य अपनी मनमर्जी या राजनीतिक मंशा से कोई फैसला नहीं ले सकते हैं. यदि ऐसा होता है तो उसका जूडिशियर रिव्यू किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि प्रदेश सरकार किसी जाति विशेष को कोटे के अंदर कोटा देती है तो उसे ऐसा पिछड़ेपन के आधार पर ही करना होगा. यह भी देखा जाएगा कि कहीं शत-प्रतिशत कोटा एक ही जाति को ना मिल जाए. सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय संवैधानिक बैंच ने यह फैसला 6:1 के बहुमत से दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राजस्थान में भी इसे लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं. कुछ इस फैसले की सराहना कर रहे हैं तो कुछ इसे सिरे से नकारना चाहते हैं. दौसा सांसद मुरारीलाल मीणा ने इसके जरिए केंद्र सरकार पर आरक्षण को खत्म करने का आरोप तक लगाया है. वहीं कुछ लोग इसे न्याय संगत भी बता रहे हैं. पिछड़ी जातियों को कोर्ट की तरफ से बड़ा उपहार मिला है समता आंदोलन की शुरुआत करने वाले पारशर नारायण शर्मा कोर्ट के इस फैसले को लेकर कहते हैं कि यह पूरे देश के हित में है. यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति दोनों समुदायों की पिछड़ी जातियों को कोर्ट की तरफ से बड़ा उपहार मिला है. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के लिए रास्ता खोल दिए हैं. पाराशर ने 20 साल पहले समता आंदोनल की शुरुआत कर इसके जरिए आरक्षण के मसले को लेकर कानूनी लड़ाई लड़नी शुरू की थी. वे फरवरी 2005 से इस मंच के जरिए कोर्टों के दरवाजे खटखटा रहे हैं. किसी तरह के जातीय संघर्ष का कोई खतरा नहीं है समता आंदोनल के संस्थापक अध्यक्ष पाराशर नारायण कहते हैं कि यह फैसला क्रिमीलेयर पर नहीं है. यह आरक्षण का उपवर्गीकरण का है. इसमें किसी तरह के जातीय संघर्ष का कोई खतरा नहीं है. हर फैसले के बाद तात्कालिक आक्रोश पैदा होता है. लेकिन पूरी कहानी समझ में आने के बाद वह शांत हो जाता है. बकौल शर्मा शुगनलाल भील की याचिका की राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर बैंच फरवरी 2014 ने फैसला दिया था कि मीणा समुदाय को एसटी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए. वह लागू होना चाहिए. किसका कितना प्रतिनिधित्व है उसे आसानी से देखा जा सकता है ओबीसी में क्रिमीलेयर का जो नोटिफिकेशन केन्द्र और राज्य ने जारी कर रखा है उसे उसी तरह से यहां भी इम्पलीमेंट किया जा सकता है. राजस्थान के मौजूदा हालात में इसे लागू करने में कोई दिक्कत नहीं है. सबकुछ महीनेभर में हो सकता है. शर्मा कहते हैं कि एससी और एसटी में जातिगणना हर जनगणना में रहती है. अंतिम जनगणना 2011 में हुई थी. केन्द्र और राज्यों में सरकारी नौकरियों में जातिगत तौर पर नौकरियों का कितना-कितना प्रतिनिधित्व है उसे आसानी से देखा जा सकता है. पंजाब का फैसला सब पर लागू- मेघवाल महासभा राजस्थान मेघवाल महासभा के प्रदेशाध्यक्ष इंद्रराज मेघवाल कहते हैं हम इस फैसले से सहमत नहीं हैं. इसमें भर्तियां करने वाले विभागों के बेईमानी करने की गुंजाइश बढ़ जाएगी. यह टेक्नीकली भी संभव नहीं है क्योंकि इसका पैमाना क्या होगा कि कौन कितना पिछड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट जरूर किया है लेकिन न्याय नहीं हो पाया है. इस केस में हमें सुना ही नहीं गया. पंजाब के केस पर आया फैसला सभी राज्यों पर कैसे लागू किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत आरक्षण से वंचित एसटी-एसटी समाज संघर्ष समिति राजस्थान के एडवोकेट रामधन सांसी सुप्रीम कोर्ट की इस पहल का स्वागत करते हैं. उनके मुताबिक जो अब हुआ है उसे बहुत पहले हो जाना चाहिए था. अनुसूचित जातियों और जनजातियों में कुल 59 जातियां शामिल हैं. इनमें से आरक्षण का लाभ सालों से सिर्फ 5 या 6 जातियों को ही मिल रहा है. बाकी तकरीबन 52 जातियां आरक्षण का प्रावधान होने के बावजूद वंचित ही रही हैं. संविधान में जिस मकसद से आरक्षण का प्रावधान किया गया था उसके लाभ पूरी तरह से उभरकर सामने नहीं आ पाए. अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच के फैसले से नई आस जगी है. सवालों के घेरे में सरकार की चुप्पी केरल के पूर्व चीफ सेक्रेटरी और रिटायर्ड आईएएस अधिकारी टीकाराम मीणा के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है. देश में किसी भी तरह के कायदे-कानून बनाना संसद का काम है. उनका मत है कि सुप्रीम कोर्ट ने यहां अपने क्षेत्राधिकार को ‘एक्सीड’ किया है. सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को यह डायरेक्शन देना भी विधि सम्मत नहीं है कि वे अपने यहां इसे लागू करें. यह काम केंद्र को करना चाहिए था. सरकार की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है. क्या है कोटे में कोटा? सुप्रीम कोर्ट के सामने राज्यों का तर्क था कि अनुसूचित जातियों में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें आरक्षण के बावजूद अन्य अनुसूचित जातियों की तुलना में कम नुमाइंदगी मिली है. इसी के चलते कोटे में से कोटा यानी उस वर्ग विशेष के कोटे के भीतर विशेष प्रावधान किए जाएं. पंजाब का 49 साल पुराना केस है यह केस पंजाब से सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था. पंजाब में अनुसूचित जातियों को 25 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. इसमें अनुसूचित जाति के कोटे में मजहबी सिखों और वाल्मीकि समाज को खास वरीयता दी गई थी. इसके चलते ही यह विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. मौजूदा फैसला देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया है. इसमें 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया है. उसमें कहा गया था कि एससी और एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है. देश में फिलहाल ‘कोटा’ कितना? फिलहाल पूरे देश में औसत तौर पर अनुसूचित जातियों (एससी) को 15 फीसदी जबकि अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को 7.5 फीसदी आरक्षण सरकारी सेवाओं तथा अन्य सीटों पर मिलता है. यानी दोनों वर्गों को 22.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. राजस्थान में यह है आरक्षण का गणित राजस्थान में वर्तमान में अनुसूचित जनजाति (ST) को 12 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (SC) को 16 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग को 21 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्ग (MBC) गुर्जर, राईका, रैबारी आदि को 5 प्रतिशत और आर्थिक कमजोर वर्ग (EWC) को 10 प्रतिशत आरक्षण देय है. यहां कुल 64 प्रतिशत आरक्षण है. राजस्थान में एसी में 59 और एसटी में 12 जातियां शामिल हैं. केन्द्र के हिसाब से राजस्थान में एसी को 15 प्रतिशत, एसटी को 7.5 फीसदी और ओबीसी को 27 तथा EWC को 10 प्रतिशत आरक्षण देय है. FIRST PUBLISHED : August 5, 2024, 16:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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