Gajra ka Maqbara: महाराजा भगवंत सिंह की अनोखी प्रेम कहानी गजरा को दिया दिल फिर बनवाया ताजमहल
Gajra ka Maqbara: महाराजा भगवंत सिंह की अनोखी प्रेम कहानी गजरा को दिया दिल फिर बनवाया ताजमहल
Gajra ka Maqbara Dholpur: धौलपुर रियासत के महाराजा भगवंत सिंह अपनी प्रेयसी गजरा के लिए एक अमिट प्रेम निशानी बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने 1855 में एक खूबसूरत इमारत बनवाने का निर्णय लिया. इसे धौलपुर का ताजमहल भी कहा जाता है. आइए जानें पूरी कहानी...
रिपोर्ट: दयाशंकर शर्मा
धौलपुर. राजस्थान के धौलपुर शहर के महाराणा स्कूल परिसर में करीब डेढ़ सदी पूर्व गजरा का ताज बना था. इसे अगर धौलपुर का ताजमहल कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. दरअसल इसमें भी ताजमहल की तरह मोहब्बत की चाहत, गहराई, समर्पण और स्थापत्य है. वहीं, इस प्रचलित ऐतिहासिक प्रेम कहानी के किरदार धौलपुर रियासत के महाराजा भगवंत सिंह थे. साल 1836 में धौलपुर रियासत की राजगद्दी पर बैठे सिंह बेहद भावुक प्रवृति के थे. उस समय उनके राज में एक प्रमुख अधिकारी सैयद मुहम्मद थे, जिनकी पुत्री गजरा अत्यंत सुंदर, मोहक और नृत्य कलाओं में पारंगत थी.
कहा जाता है कि महाराजा के दरबार में एक मुजरा का आयोजन रखा गया था. उस समय गजरा को महाराज ने पहली बार देखा. यही वो पल था, जब दोनों एक दूसरे की मोहबत में कैद हुए. भगवंत सिंह और गजरा के बीच पहली नजर का यह इश्क धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया. वह गजरा को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने सैयद मुहम्मद से इजाजत मांगी, जिस पर उन्होंने एक दफा साफ इनकार कर दिया. हालांकि महाराजा भगवंत सिंह के निरंतर प्रयास रंग लाए और दोनों एक हो गए. इसके साथ गजरा महल की शान बन गई. वह बहुत अच्छी नर्तकी होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी थीं. इसी कुशलता के चलते गजरा का राजकाज में भी दखल बढ़ता गया. गजरा का हर फैसला रियासत को मान्य था. दबे पांव धौलपुर रियासत के सरदारों में विरोध की भावना उत्पन्न होने लगी, लेकिन भगवंत सिंह की शख्सियत के आगे किसी की हिम्मत नहीं थी कि विरोध का स्वर बुलंद कर सके. महाराजा गजरा पर पूरी तक आसक्त थे.
और बना दिया ‘गजरा का मकबरा’
इतिहास के जानकार अरविन्द कुमार शर्मा और मुकेश शर्मा बताते हैं कि भगवंत सिंह अपनी प्रेयसी गजरा के लिए एक अमिट प्रेम निशानी बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने जिले के नृसिंह मंदिर के पास 1855 में एक खूबसूरत इमारत बनवाने का निर्णय लिया. ताजमहल का इस इमारत पर प्रभाव पड़ा, इसलिए इसे ताजमहल जैसी शक्ल देने की कोशिश की गई. ताजमहल की तर्ज पर सफेद और लाल पत्थर से बनी इस इमारत में चारों ओर मीनारें, बीच के हिस्से चौकारें, बुलंद दरवाजा, चारों तरफ छोटे-छोटे महराब और मध्य में मकबरा स्थापित किया गया. उस समय बना यह मकबरा आज ‘गजरा का मकबरा’ नाम से प्रसिद्ध है.
वसुंधरा राजे का रहा है रिश्ता
बता दें कि वर्ष 1859 के आसपास गजरा का इंतकाल हो गया. खैर प्यार की यह अनूठी निशानी आज भी एक अमर प्रेम की कहानी बयां करती नजर आती है. खास बात यह है कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस घराने की कुल वधु हैं. इसमें ताजमहल की तरह दो कब्रों का निर्माण कराया गया था, जिसमें एक स्वयं राजा भगवंत सिंह की और दूसरी अपनी प्रेयसी गजरा की बनवाई थी. ‘गजरा का मकबरा’ बनवाने में उस समय करीब 10 लाख रुपयों का खर्चा आया था. फिलहाल अनदेखी के चलते धौलपुर का ताजमहल उजड़ा-उजड़ा नजर आता है.
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Tags: Dholpur news, Rajasthan newsFIRST PUBLISHED : October 21, 2022, 14:02 IST