लाहौर से जान बचाकर 10 साल की उम्र में आये इलाहाबाद यहां बन गए महान वैज्ञानिक

Independence Day 2024: भारत-पाकिस्तान का विभाजन किसी त्रासदी से कम नहीं था. इस त्रासदी दी लाखों लोग विस्थापित हुए. ऐसे में पाकिस्तान के लाहौर से अपनी मां और बहन साथ 10 साल की उम्र में आए एक बालक ने कमाल कर दिया. वह बालक आज भारत के महान वैज्ञानिकों में शामिल हैं.

लाहौर से जान बचाकर 10 साल की उम्र में आये इलाहाबाद यहां बन गए महान वैज्ञानिक
रजनीश यादव/प्रयागराज: भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय लाखों लोग इधर से उधर हुए थे. यह विभाजन किसी त्रासदी से काम नहीं रहा था. जहां लोग अपनी जमीन और अपने लोगों को छोड़कर भारत एवं पाकिस्तान में विस्थापित हुए. इसी विस्थापन से जुड़ी एक काफी उत्साहवर्धक कहानी है, जिसको सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. इस विस्थापन के बाद वह किस प्रकार एक व्यक्ति का जीवन करवट बदलता है. उसके योगदान को कभी चुकाया नहीं जा सकता है. 10 साल की उम्र में आए इलाहाबाद 1947 में जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हो रहा था, इस बंटवारे में मात्र 10 साल की उम्र के एक महान शख्सियत लाहौर से भारत के इलाहाबाद पहुंचे, जिन्होंने भारत में ही रहकर अपनी मेहनत और काबिलियत के बदौलत दुनिया में खूब नाम कमाया. उस शख्सियत का नाम प्रोफेसर केके भूटानी है. उन्होंने लोकल 18 से बात करते हुए अपने उस जीवन के पड़ाव को बताया कि किस प्रकार उन्होंने संघर्ष करते हुए आज इस मुकाम को हासिल किया है . प्रोफेसर केके भूटानी ने बताया कि जब भी वह उस विभाजन की घड़ी को याद करते हैं तो आंखों में आंसू आ जाता है. उन्होंने बताया कि हमारे पिता का देहांत हो जाने के बाद मेरी मां मुझे और मेरी दो बहनों को लेकर लाहौर स्टेशन पर बैठी थी. जहां एक सप्ताह बिना कुछ खाए पिए समय बिताया. वहीं, से एक सैनिकों की ट्रेन भारत के लिए आ रही थी, जिन्होंने हमारी स्थिति को देखकर खाना खिलाया और ट्रेन में बैठा लिया. इस दौरान 15 घंटे की यात्रा के बाद वह लखनऊ स्टेशन पर पहुंचते हैं. जहां उनकी जान पहचान का कोई नहीं था. लखनऊ स्टेशन पर भी हमें लगभग एक सप्ताह का समय बिताना पड़ा. वहां से एक शख्स ने इलाहाबाद जाने की सलाह दी. इलाहाबाद में लगा था रिफ्यूजी कैंप प्रोफेसर केके भूटानी बताते हैं कि इलाहाबाद के रिफ्यूजी कैंप में आने के बाद यहां 2 साल समय बिताना पड़ा. इस कैंप की देखभाल इंदिरा गांधी कर रही थी और जवाहरलाल नेहरू भी कभी-कभी आया करते थे. जवाहरलाल नेहरू हमें उंगली पकड़कर चलाते थे तो वहीं, इंदिरा गांधी हमारी बहन को गोद में उठती थी. यहीं से धीरे-धीरे उनके जीवन की शुरुआत होने लगी. वह पढ़ाई के लिए हम लोगों का एडमिशन कर्नलगंज इंटर कॉलेज में कराए. यहीं से बदली किस्मत कर्नलगंज इंटर कॉलेज से पढ़ाई पूरी होने के बाद उनका दाखिला जीआईसी में करवा दिया गया. जहां हम हाई स्कूल और इंटरमीडिएट दोनों में फर्स्ट डिवीजन पास हुए. तब तक हमारी बहन स्वराज भवन में नौकरी करने लगी थी. फिर हमने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीसीए में एडमिशन लिया. यहीं से कंप्यूटर की पढ़ाई करने के बाद हमारी जर्नी की शुरुआत होती है. देश के लिए दिया यह योगदान प्रोफेसर केके भूटानी आज देश भर के आईआईटी के सदस्य हैं, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कंप्यूटर साइंस विभाग के प्रोफेसर भी रहे. इन्होंने कंप्यूटर के बड़े आकार को छोटा करने में माइक्रोप्रोसेसर कंपनी के साथ हिंदुस्तान में बड़े स्तर पर काम किया. बड़े-बड़े कंप्यूटर से लेकर आज मोबाइल तक लगने वाली माइक्रोप्रोसेसर में इनका योगदान शामिल है. इन्होंने चीन, इटली और अमेरिका सहित कई देशों की यूनिवर्सिटी में लेक्चर दे चुके हैं, जिसके लिए में इन्हें बुलावा भी आता है. ठुकराया चीन की नागरिकता उनके ज्ञान कौशल को देखकर अमेरिका और यूरोप के कई देशों से नागरिकता ग्रहण करने का ऑफर मिला. वहींं चीन ने 3 बार उनको चीन की नागरिकता देने की बात कही, लेकिन उन्होंने बताया कि वह इलाहाबाद को छोड़ना नहीं चाहते. जिस शहर ने उनको पहचान दी है, वह वहीं रहना चाहते हैं. Tags: Allahabad news, Local18, Prayagraj NewsFIRST PUBLISHED : August 15, 2024, 10:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed