इस साल पड़ेगी कड़ाके की ठंड 25 साल का तोड़ेगी रिकॉर्ड वैज्ञानिकों ने बताई वजह
इस साल पड़ेगी कड़ाके की ठंड 25 साल का तोड़ेगी रिकॉर्ड वैज्ञानिकों ने बताई वजह
weather forecast winter 2024: जानकारी देते हुए एएमयू के भूगोल विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सलेहा जमाल कहती हैं कि यह प्रशांत महासागर में ला-नीना का असर है. हमारे यहां तापमान की कमी और हवा के उच्च दबाव के कारण प्रशांत महासागर में ला-नीना असर दिखता है.
वसीम अहमद /अलीगढ़.सोचने वाली बात है कि मूसलाधार बारिश होने के बाद ठंड कितनी बढ़ेगी. तो हर किसी के मन में यह सवाल उठ रहा है. एएमयू के भूगर्भ वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले समय में ठंड परेशान कर सकती है. इसका सीधा असर प्रशांत महासागर के ला-नीना से है. दरअसल अपने यहां तापमान में कमी और हवा के उच्च दबाव के कारण प्रशांत महासागर में ला-नीना पूरे उत्तर भारत पर यह असर दिखाता है. इसी वजह से ठंड कड़ाके की पड़ेगी और पिछले 25 साल का रिकॉर्ड भी टूटेगा.
जानकारी देते हुए एएमयू के भूगोल विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सलेहा जमाल कहती हैं कि यह प्रशांत महासागर में ला-नीना का असर है. हमारे यहां तापमान की कमी और हवा के उच्च दबाव के कारण प्रशांत महासागर में ला-नीना असर दिखता है. जिसका सीधा प्रभाव उत्तर भारत पर होता है.यह एक चक्र है, जिसके परिवर्तन से इस तरह के असर दिखाते हैं. शुरुआत में बारिश कम हुई थी. बाद मे इस बारिश ने रौद्र रूप ले लिया, जिसकी वजह से ठंड का प्रकोप देखने को मिलेगा और आने वाले समय में अधिक ठंड बढ़ने की सम्भावना है.
फसलों पर होगा ठंड का असर
एएमयू प्रोफेसर ने कहा कि इसका सबसे अधिक असर रबी और खरीफ जैसी फसलों पर दिखेगा. मार्च और अप्रैल में गर्म हवाएं और बारिश किसानों को परेशान करेगी. जिसका सीधा असर फसलों पर पड़ेगा क्लाईमिट चेंज होने से फसलों पर प्रभाव पड़ेगा. प्रोफेसर डॉ. सलेहा जमाल कहती हैं कि प्रशांत महासागर से हवाएं भूमध्य रेखा के समानांतर पश्चिम की ओर बहती हैं. ये हवाएं दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर गर्म पानी को ले जाती हैं. अल-नीनो और ला-नीना दो विपरीत प्रभाव हैं. जिनका पूरी दुनिया के मौसम, जंगल की आग और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है.
मौसम में बदलाव
सामान्यत: इन दोनों के संस्करण 9 से 12 महीने तक चलते हैं और कई बार इनका प्रभाव लंबे समय तक रहता है. इनके आने का कोई नियमित क्रम नहीं है. ये हर 2 से 7 साल के बीच आते हैं. हालांकि ला-नीना की तुलना में अल-नीनो ज्यादा आता है. दरअसल दुनिया के हर कोने का मौसम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दूसरी जगहों को किसी न किसी तरह प्रभावित जरूर करता है. लेकिन भारत का मानसून प्रशांत महासागर की जलवायु पर ही आधारित होता है. इसलिए उसके मौसम में बदलाव भारत को सीधे प्रभावित करता है.
Tags: Hindi news, Local18, Weather forecastFIRST PUBLISHED : September 13, 2024, 14:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed