ठुकरा दी अमेरिका की शानदार जिंदगी क्रांतिकारी बन अंग्रेजों के छुड़ाए छक्के
ठुकरा दी अमेरिका की शानदार जिंदगी क्रांतिकारी बन अंग्रेजों के छुड़ाए छक्के
गुलाब कौर अपने पति मान सिंह के साथ अमेरिका के लिए निकली थीं. फिलीपींस में सिख क्रांतिकारियों से मुलाकात के बाद वह इस कदर प्रेरित हुईं कि उन्होंने अमेरिका की अपनी शानोशौकत भरी जिंदगी को ठुकराकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने का फैसला कर लिया.
भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानी: स्वतंत्रता संग्राम में न जाने कितने ही सेनानी ऐसे है, जिनका नाम अतीत की गर्द में धूमिल होता जा रहा है. इन्हीं भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम गुलाब कौर का है. गुलाब कौर एक ऐसी स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने अमेरिका की आलीशान जिंदगी को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनी. उन्होंने विदेशों में रह रहे भारतीयों को न केवल एकजुट किया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया. गुलाब कौर का आखिरी समय लाहौर की शाही जेल में बीता, जहां ब्रिटिश हुकूमत के उत्पीड़न ने उनकी जान ले ली. चलिए आज आपको बताते हैं कौन है गुलाब कौर और स्वाधीनता संग्राम में उनका योगदान कितना अहम रहा है.
गुलाब कौर का जन्म 1890 में संगरूर (पंजाब) जिले के बक्षीवाला गांव में हुआ था. संपन्न परिवार में जन्म होने के चलते उनको सामने कभी किसी चीज की कमी न रही. देखते ही देखते, नन्ही गुलाब ने युवावस्था में कदम रख दिया था. कुछ ही समय में उनकी शादी अमेरिका में रहने वाले मान सिंह से हो गई. शादी के बाद गुलाब को भी अमेरिका जाना था. कुछ दिनों के इंतजार के बाद गुलाब अपने पति मान सिंह के साथ अमेरिका के लिए रवाना हो गई. भारत से अमेरिका के सफर के बीच वे दोनों कुछ दिनों के लिए फिलीपींस में रुके. यहीं पर उनकी मुलाकात गदर पार्टी के कुछ क्रांतिकारियों से हुई. गदर पार्टी की स्थानपा विदेश में रह रहे कुछ सिख क्रांतिकारियों ने की थी.
गदर पार्टी के क्रांतिकारियों से मिलने के बाद गुलाब कौर इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्होंने शानोशौकत से भरे भविष्य को ठुकारा भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में हिस्सा लेने का निश्चय कर लिया. जल्द ही गुलाब ने खुद को देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया और गदर पार्टी का हिस्सा बन गईं. सबसे पहले उन्हें पार्टी के साहित्य के पब्लिकेशन की जिम्मेदारी गई. जल्द ही उनका नाम पानी के जहाजों में देश भक्ति से ओतप्रोत भाषण देने वाली महिला के पहचाने जाना लगा. वह पानी के जहाजों में यात्रा करने वाली भारतीय यात्रियों को स्वतंत्रता से जुड़ा साहित्य देतीं और प्रेरक भाषण देकर गदर पार्टी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करतीं. यह भी पढ़ें:- 6 अगस्त 1947: तिरंगे को लेकर क्यों नाराज हुए महात्मा गांधी, क्या नेहरू ने यूनियन जैक के लिए भरी थी हामी… लाहौर से वापसी की तैयारी कर रहे महात्मा गांधी को जैसे ही भारत के नए राष्ट्रध्वज के बारे में पता चला, वह भड़क गए. वहीं लॉर्ड माउंटबेटन ने यूनियन जैक को लेकर एक अजीब सी शर्त नेहरू के सामने रख दी थी. क्या था पूरा मामला, जानने के लिए क्लिक करें.
इसके बाद, गुलाब ने पार्टी के प्रिंटिंग प्रेस की निगरानी के साथ पत्रकार बनकर क्रांतिकारियों तक हथियार पहुंचाना भी शुरू कर दिया. इस बीच, गुलाब के पति मान सिंह ने उन्हें कई बार अपने साथ अमेरिका ले जाने की कोशिश की. लेकिन वह नहीं मानीं. आखिर में, उनके पति उन्हें मनीला में ही छोड़कर अमेरिका चलते गए. पति के अमेरिका जाने के बाद गुलाब ने पहले कोरिया और फिर सिंगापुर का रुख किया. गुलाब ने वहां रहने वाले भारतीय नागरिकों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा और फिर खुद भारत वापस आ गईं. भारत वापस आने के बाद वह पंजाब के कपूरथला, होशियारपुर और जालंधर में सक्रिय हो गईं.
पंजाब में रहते हुए ऐसे क्रांतिकारियों की फौज खड़ी कर दी, जो हर तरह के हथियार चलाने में निपुण थे. गुलाब और उनके क्रांतिकारी साथियों ने ब्रिटिश हुकूमत को कई गहरी चोटें दीं. दुर्भाग्यवश वह जल्द ही ब्रिेटिश हुकूमत की नजर में आ गईं और उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. पंजाब में गुलाब के प्रभाव को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें लाहौर की शाही जेल भेजने का फैसला कर लिया. वह करीब दो साल तक लाहौर की शाही जेल में रहीं. जेल में गुलाब से साथ दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी गईं. उन्हें इतनी प्रताड़ना दी गई कि 1931 में उनका जेल में ही निधन हो गया. इस तरह, गुलाब कौर ने देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया.
Tags: 15 AugustFIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 15:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed