कमजोर हिमालय में बढ़ती खड़िया खदानें पैतृक भूमि बचाने के लिए संघर्ष आपदा में जान गवांते पहाड़ी लोग
कमजोर हिमालय में बढ़ती खड़िया खदानें पैतृक भूमि बचाने के लिए संघर्ष आपदा में जान गवांते पहाड़ी लोग
देश के सबसे बड़े खड़िया भंडार वाले उत्तराखंड के बागेश्वर क्षेत्र में बेतहाशा खनन के खतरे बढ़ रहे है. इलाके के कई भाग अतिसंवेदनशील है। इन्हीं में से एक किलपारा गांव में वर्ष 1982 में भयंकर भूस्खलन हुआ था. अब यहां भी खान व्यवसायियों की नजर लग गई है. गांव के लोग पैतृक भूमि बचाने के लिए कोर्ट की शरण में जाने की तैयारी में हैं.
रिपोर्ट – सुष्मिता थापा
बागेश्वर. उत्तराखंड का बागेश्वर जिला भारत में खड़िया पत्थर का सबसे समृद्ध भंडार है. जिले में खड़िया की करीब 135 खदानों को खनन की मंजूरी मिल चुकी है. इससे अच्छा खासा राजस्व सरकार को मिल रहा है. हालांकि, पर्यावरण की नजरिए से नाजुक और भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्र में खनन ने कई सवाल खड़े किए हैं. सरकार का दावा है कि सभी मानदंडों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है और खनन पर अच्छी तरह से नजर रखी जा रही है, लेकिन स्थानीय लोग इससे असहमत नज़र आ रहें हैं.
वैसे तो संपूर्ण बागेश्वर के कई क्षेत्रों को अतिसंवेदनशील क्षेत्र का दर्जा प्राप्त है, मगर यहां किलपारा गांव अतिसंवेदनशील क्षेणी में आता है. यहां वर्ष 1982 में भयंकर भूस्खलन हुआ था. अब यहां भी खान व्यवसायियों की नजर लग गई है तथा खड़िया लीज के आवेदन दिए गए हैं. उधर, बढ़ते खनन को लेकर स्थानीय रहवासी चिंतित हैं. उन्होंने अपनी पैतृक भूमि को बचाने के लिए प्रशासन को आपत्ति पत्र दिए हैं, साथ ही मामला कोर्ट तक ले जाने की कार्यवाही भी शुरू कर दी है. लगातार धंस रहा है कुंवारी गांव
किलपारा में वर्ष 1982-83 से गांव में भूस्खलन हुआ था, जिससे कई परिवारों के मकान ध्वस्त हुए. बताया जाता है कि इसका असर कुंवारी गांव में भी पड़ा तथा यह गांव भी लगातार धंस रहा है. पूर्व जिला पंचायत सदस्य भागीरथी देवी ने बताया कि कुछ बाहरी लोग अब गांव की भूमि में खड़िया खनन के लिए लीज लेने के प्रयास में लगे हैं तथा उनके द्वारा ऐसे परिवारों से अनापत्ति पत्र लिए जा रहे हैं. कई रहवासी पूर्व में हुए भूस्खलन के चलते 40- 50 साल पूर्व हल्द्वानी आदि स्थानों में बस चुके हैं. उन्होंने कहा कि अनापत्ति देने वाले ये परिवार गांव में खेती बाड़ी व निवास नहीं करते हैं. उन्होंने बताया कि इसके बाद भी सरकार व प्रशासन ने क्षेत्र में खान व्यवसायी को खनन लीज स्वीकृति प्रदान की तो वे इसके खिलाफ अदालत जाने की तैयारी भी कर रहे हैं. बागेश्वर में बादल फटने व भूस्खलन की बड़ी घटनाएं वर्षगांवमृतकों की संख्या
1957सूडिंग18
1976बगर12
1981भयातकर्मी37
1994कनलगढ़09
2010सुमगढ़18
आपदा को लेकर कोई गंभीर नहीं
इधर कपकोट क्षेत्र में चौड़ास्थल व कर्मी में भी खान की स्वीकृति प्रदान किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं. जिससे गांवों को खतरा बना हुआ है. माना जा रहा है कि यदि कपकोट के इन क्षेत्रों में खनन स्वीकृति मिली तो भविष्य में बागेश्वर समेत अन्य क्षेत्रों में भी इसका कुप्रभाव पड़ेगा. विशेषज्ञ बताते हैं कि हिमालय की ढलान नाजुक हैं और भूस्खलन की आशंका बनती है. यह एक अत्यधिक भूकंपीय क्षेत्र भी है और बार-बार बादल फटने से मानसून के दौरान स्थिति और भी खराब हो जाती है. 2010 में , कपकोट में बादल फटने से बड़े पैमाने पर भूस्खलन के कारण 18 स्कूली बच्चे अकाल मौत का ग्रास बने थे. भूवैज्ञानिक ऐसे इलाके में किसी भी तरह के अनियमित खनन के प्रति आगाह करते हैं. खड़िया खदानों की बढ़ती संख्या देखकर तो लगता है कि यहां आने वाली आपदा से ना सरकार का कोई सरोकार है और ना ही प्रशासन को कोई चिंता. स्थानीय लोगों का कहना है कि बागेश्वर में पर्यावरण को ताक पर खड़िया माइंस की बंदर बांट हो रही है.
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Tags: Himalaya village, Mining on HimalayasFIRST PUBLISHED : July 08, 2022, 14:14 IST