मीलॉर्ड यह मौत से भी बदतर मुझे फांसी दे दी जाए SC ने क्‍या दिया फैसला

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट में आए दिन ऐसे मामले आते रहते हैं, जिसका कानूनी और संविधानिक तौर पर काफी महत्‍व होता है. ऐसे मुकदमों में दिए गए फैसलों के दूरगामी असर होते हैं.

मीलॉर्ड यह मौत से भी बदतर मुझे फांसी दे दी जाए SC ने क्‍या दिया फैसला
नई दिल्ली. पत्नी की हत्या के लिए 30 साल से जेल में बंद व्यक्ति के जीवन पर्यंत आजीवन कारावास को मृत्युदंड से कहीं अधिक बदतर बताने पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि आप चाहते हैं कि आपकी सजा को फांसी में बदल दिया जाए. स्वामी श्रद्धानंद उर्फ ​​मुरली मनोहर मिश्रा (84) ने रिहाई का अनुरोध करते हुए कहा कि वह बिना किसी पैरोल या छूट के लगातार कारावास में हैं और जेल में रहने के दौरान उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल मामला दर्ज नहीं किया गया है. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने जेल से रिहाई के अनुरोध वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया. हालांकि, पीठ सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2008 के फैसले की समीक्षा के लिए उसकी अलग याचिका पर सुनवाई करने को सहमत हो गई, जिसमें निर्देश दिया गया था कि उसे उसके शेष जीवन तक जेल से रिहा नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘आप चाहते हैं कि इसे फांसी में बदल दिया जाए?’ दोषी के वकील ने कहा कि यदि संभव हो तो आज की तारीख में फांसी बेहतर स्थिति हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या आपने अपने मुवक्किल से बात की है? वकील ने जवाब दिया, ‘मैंने उनसे बात नहीं की है.’ उन्होंने दलील दी कि श्रद्धानंद को दी गई ऐसी सजा, तत्कालीन भारतीय दंड संहिता के तहत प्रदान नहीं की गई थी. ‘कोर्ट उचित सजा देगी’ दोषी की ओर से पेश वकील वरुण ठाकुर ने कहा कि इस मामले में कनविक्‍शन न्यायिक स्वीकारोक्ति पर आधारित थी. पीठ ने हैरत जताते हुए कहा कि अब क्या हमें मुकदमे को फिर से खोलना चाहिए? पीठ ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने भी कनविक्‍शन को बरकरार रखा. बेंच ने कहा, ‘किसी भी आरोपी को दोषसिद्धि के आधार पर मौत की सजा मांगने का अधिकार नहीं है. आप अपनी जान नहीं ले सकते; आत्महत्या का प्रयास करना भी एक अपराध है, इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि अदालत को मृत्युदंड देना होगा. कोर्ट उचित सजा देगी. दोषी के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई सजा IPC की धारा 432 के तहत समय से पहले रिहाई के लिए अर्जी दाखिल करने के श्रद्धानंद के अधिकार को बाधित करती है. पीठ ने कहा यह (जीवन पर्यंत आजीवन कारावास की) सजा आपको फांसी से बचाने के लिए दी गई थी. संगीन है मामला पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान श्रद्धानंद के वकील ने कहा कि जेल में रहने के दौरान उसके खिलाफ कोई खराब रिपोर्ट नहीं है और उसे सर्वश्रेष्ठ कैदी के लिए 5 पुरस्कार भी मिले हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि क्या मैं (मुवक्किल) अब भी वही व्यक्ति हूं…जो अपराध के समय था. सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए कर्नाटक राज्य और अन्य से जवाब मांगा है. पीठ ने याचिका पर सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की है. श्रद्धानंद की पत्नी शकेरेह मैसूर की तत्कालीन रियासत के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती थीं. उनकी शादी अप्रैल 1986 में हुई थी और मई 1991 के अंत में शकेरेह अचानक गायब हो गयी थीं. मार्च 1994 में केंद्रीय अपराध शाखा, बेंगलुरु ने लापता शकेरेह के बारे में शिकायत की जांच अपने हाथ में ली. गहन पूछताछ के दौरान श्रद्धानंद ने पत्नी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. शकेरेह के शव को कब्र से निकाला गया और मामले में श्रद्धानंद को गिरफ्तार कर लिया गया. Tags: National News, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : September 11, 2024, 21:04 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed