क्यों मनमोहन के लिए 91 नंबर था खास 1991 में खोला देश की किस्मत का ताला
क्यों मनमोहन के लिए 91 नंबर था खास 1991 में खोला देश की किस्मत का ताला
ManMohan Singh No More: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन नहीं रहे. 92 साल की उम्र में उनका एम्स में निधन हो गया. हालांकि 91 नंबर उनके लिए बहुत खास था, क्योंकि ये नंबर देश का टर्निंग नंबर भी था.
हाइलाइट्स जीवन के 91 साल होने के बाद सियासत से रिटायरमेंट लिया पिछले साल ही राज्यसभा से हुए थे रिटायर 1991 में देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कई बड़े फैसले लिए थे
देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्हें आज शाम को ही अचानक तबीयत बिगड़ने पर एम्स में दाखिल किया गया था. उन्होंने पिछले साल राज्यसभा में अपनी 33 साल लंबी संसदीय पारी समाप्त करते सियासत से रिटायरमेंट ले लिया था. ये 1991 का साल था. वैसे 91 का नंबर मनमोहन सिंह के लिए काफी मायने रखता था.
पूर्व प्रधानमंत्री सिंह के जीवन में अंक 91 की बड़ी अहमियत रही है. वह अक्टूबर 1991 में पहली बार संसद के उच्च सदन के सदस्य बने थे. इसी दौरान वह 1991-96 तक पूर्व पीएम नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहे. यही नहीं, उन्होंने 91 वर्ष की उम्र में 3 अप्रैल 2024 को राज्यसभा से रिटायरमेंट ले लिया. अपने राजनीतिक सफर में वह 2004 से 2014 के बीच 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे. वित्त मंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में देश की आर्थिक और औद्योगिक नीतियों की घोषणा करते हुए आर्थिक सुधारों की शुरुआत की.
मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाने पर उठे थे सवाल
पूर्व वित्त मंत्री सिंह के प्रयासों के चलते 1991 भारत के लिए बदलाव का साल साबित हुआ था. उनकी लाई हुई आर्थिक नीतियों के सहारे देश में तेजी से बदलाव शुरू हुआ और अर्थव्यवस्था मजबूत होती चली गई. जब 1991 में पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया तो सवाल उठे कि भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर रहे शख्स को वित्त मंत्री बनाकर क्या हासिल होगा. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दौर में वित्त मंत्री एक आर्थिक विशेषज्ञ थे. इसके बाद कांग्रेस के खांटी नेता ही वित्त मंत्रालय संभालते आए थे. जब 1991 में पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया तो सवाल उठे
पूर्व पीएम नरसिम्हा राव ने की नेताओं की अनदेखी
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समकालीन कई दिग्गज कांग्रेसी नेता पहले वित्त मंत्री रह चुके थे. लेकिन, राव ने उन सभी की अनदेखी करके डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया. पार्टी में इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी. हालांकि, नरसिम्हा राव ने डॉ. सिंह को वित्त मंत्री बनाकर संकेत दे दिया था कि वह देश के आर्थिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव चाहते हैं, जो कांग्रेस की सोच से अलग हो सकता है. समय के साथ ये साबित भी हुआ कि नरसिम्हा राव अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए बड़े बदलाव चाहते थे.
किसे दिया जाना चाहिए नई आर्थिक नीति का श्रेय
देश में जब उदारीकरण के बाद अर्थतंत्र की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी तो कई बार सवाल पूछे जाते थे कि नई आर्थिक नीति लागू करने का असली श्रेय नरसिम्हा राव और डॉ. सिंह में से किसे दिया जाना चाहिए. डॉ. मनमोहन सिंह के प्रेस सलाहकार रहे संजय बारू ने 2015 में एक बैठक के दौरान अचानक लोगों से पूछ लिया कि आप सभी के लिए 1991 का क्या मतलब है? ज्यादातर लोगों ने जवाब दिया कि इसी साल सरकार ने नई आर्थिक नीति लागू की और भारतीय अर्थव्यवस्था को खोल दिया था. इसके बाद बारू ने सवाल किया कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? लोगों ने बिना किसी संकोच या संशय के सीधे डॉ. मनमोहन सिंह का नाम लिया.
वित्त मंत्री मनमोहन सिंह का पहला बजट भाषण
नेहरू जैकेट और आसमानी पगड़ी बांधे डॉ. मनमोहन सिंह 24 जुलाई 1991 को बजट भाषण देने खड़े हुए तो पूरे देश की निगाहें उन पर टिकी थीं. उनके भाषण में उस परिवार का बार-बार जिक्र आ रहा था, जिसकी नीतियों को वो सिरे से खारिज कर रहे थे. हालांकि, इससे पहले 70 के दशक में कम-से-कम 7 बजट तैयार करने में मनमोहन सिंह की अहम भूमिका रही थी. फिर भी 1991 में पहला बजट था, जिसे न सिर्फ उन्होंने अंतिम रूप दिया था, बल्कि इसका बड़ा हिस्सा अपने हाथों से लिखा था. साथ ही वह संसद में पेश भी खुद ही कर रहे थे. पूर्व पीएम नरसिम्हा राव चाहते थे कि वित्त मंत्री मनमोहन सिंह बेहद सुधारवादी बजट बनाएं.
राव चाहते थे सुधारवादी बजट बनाएं मनमोहन सिंह
लेखक विनय सीतापति ने नरसिम्हा राव की जीवनी ‘हाफ लायन’ में लिखा है कि डॉ. मनमोहन सिंह जुलाई के मध्य में अपने बजट का मसौदा लेकर नरसिम्हा राव के पास गए. उस समय एक वरिष्ठ अधिकारी और एक राजनयिक भी नरसिम्हा राव के पास बैठे थे. उन्हें याद है कि जब डॉ. सिंह ने एक पेज में बजट का सारांश रखा तो राव ने उसे बहुत ध्यान से पढ़ा था. इस बीच मनमोहन सिंह खड़े ही रहे. फिर राव ने मनमोहन सिंह की तरफ देखकर कहा कि अगर मैं यही बजट चाहता तो आपको ही क्यों चुना होता? दरअसल, राव चाहते थे कि मनमोहन सिंह इस बजट में दिलेरी दिखाएं. कहा जाता है कि मनमोहन सिंह के बजट का पहला मसौदा उतना सुधारवादी नहीं था, जितना वो बाद में सामने आया.
घटाई उर्वरक सब्सिडी, बढ़ाए एलपीजी के दाम
डॉ. मनमोहन सिंह के 18,000 शब्दों के बजट भाषण की सबसे खास बात थी कि वह बजटीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 8.4 फीसदी से घटाकर 5.9 फीसदी पर ले आए थे. बजटीय घाटे को करीब ढाई फीसदी कम करने का मतलब था, सरकारी खर्चों में बेइंतहा कमी करना. उन्होंने अपने बजट में ना सिर्फ जीवंत पूंजी बाजार की नींव रखी, बल्कि उर्वरक पर दी जाने वाली सब्सिडी को 40 फीसदी घटा दिया. चीनी और एलपीजी सिलेंडर के दामों में भी बढ़ोतरी कर दी. भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है. दुनिया में भारत का एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उदय ऐसा ही विचार है. पूरी दुनिया सुन ले कि भारत जाग चुका है.
कांग्रेस सांसदों ने खूब जताया बजट पर गुस्सा
मनमोहन सिंह के सुधारवादी बजट को लेकर कांग्रेस सांसदों में जबरदस्त गुस्सा था. कांग्रेस संसदीय दल की 1 अगस्त 1991 को बैठक बुलाई गई. इसमें वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने अपने बजट का बचाव किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव इस बैठक से दूर रहे. उन्होंने मनमोहन सिंह को अपने बल पर सांसदों का गुस्सा झेलने दिया. फिर राव ने धीरे-धीरे पार्टी को समझा दिया कि ये बदलाव समय की मांग है, जिससे अब भागा नहीं जा सकता है. कुल मिलाकर साल 1991 देश की अर्थव्यवस्था और डॉ. मनमोहन सिंह दोनों के लिए बेहद साबित हुआ. इसके बाद देश तेजी से आर्थिक विकास की पटरी पर दौड़ा.
Tags: Dr. manmohan singh, Manmohan singhFIRST PUBLISHED : December 26, 2024, 23:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed