कौन थे मिर्जा इस्माइल जिनके नाम पर जयपुर में बनी रोड का हो रहा विरोध

जयपुर की एक रोड है एमआई रोड. ये इस शहर की सबसे प्रमुख रोड है. इसका नाम सर मिर्जा इस्माइल के नाम पर रखा गया है. अब इस रोड के नाम को बदलने की मांग हो रही है.

कौन थे मिर्जा इस्माइल जिनके नाम पर जयपुर में बनी रोड का हो रहा विरोध
हाइलाइट्स मिर्जा इस्माइल राजा सवाई मानसिंह के समय में जयपुर रियासत में प्रधानमंत्री थे उन्होंने जयपुर में कई काम कराए थे, खासकर सड़कों का काम मिर्जा इस्माइल ने बेंगुलरु के सौंदर्यीकरण के लिए भी काफी काम किया जयपुर में बीजेपी विधायक ने राजधानी की फेमस एमआई रोड का नाम बदलने की मांग की है. एमआई रोड का मतलब मिर्जा इस्माइल रोड. इस रोड को जयपुर का दिल भी कहा जाता है, क्योंकि यहां की कई प्रमुख सड़कें इसी एमआई रोड पर आकर मिलती हैं. कौन थे मिर्जा इस्माइल जिनके नाम पर इस रोड का नामकरण हुआ. वह कभी जयपुर के प्रधानमंत्री थे. इस शहर ‘गुलाबी शहर’ को बनाने में उनका भी योगदान कहा जाता है. मिर्जा इस्माइल भारतीय राजनेता थे. उन्होंने मैसूर और हैदराबाद के दीवान के तौर पर भी काम किया था. मैसूर से लेकर बेंगलुरु तक की जानी-मानी हस्तियां उनके काम की तारीफ करती रही हैं. त्रावणकोर के दीवान सर चेतपुट पट्टाभिरामन रामास्वामी अय्यर ने उन्हें “भारत के सबसे चतुर व्यक्तियों में एक” कहा. नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी सर सी.वी. रमन ने उन्हें “मानव और सांस्कृतिक मूल्यों की गहरी समझ” वाला महान प्रशासक बताया. मिर्ज़ा की जड़ें फ़ारस से थीं. उनके दादा अली असकर एक फ़ारसी व्यापारी थे जो ईरान से भागकर 1824 में भारत पहुंचे. उन्होंने मैसूर के महाराजा के अधीन शरण ली. शाही परिवार के अस्तबलों को घोड़े उपलब्ध कराए. इस फलते-फूलते व्यापार ने उन्हें बेंगलुरु में ज़मीन खरीदने में मदद की. उन्होंने शहर के चारों ओर बड़ी-बड़ी संपत्तियां बनवाईं. मैसूर के राजा के दोस्त थे 24 अक्टूबर 1883 को जन्मे मिर्ज़ा बेंगलुरु में पले-बढ़े. उन्होंने बेंगलुरु के सेंट पैट्रिक और वेस्लेयन स्कूल में पढ़ाई की. बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया. मिर्ज़ा और मैसूर राज्य के चौबीसवें महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ कॉलेज में साथ पढ़े. उनके बीच अच्छी दोस्ती थी. उन्हें मैसूर का दीवान नियुक्त किया गया. मिर्जा इस्माइल जयपुर में प्रधानमंत्री थे. उस दौरान उन्होंने सड़क और संरचना से जुड़े कई काम किए. (wiki commons) वर्ष 1926 में 43 वर्ष की आयु में मिर्जा ने ये महत्वपूर्ण पद हासिल किया. महाराजा के साथ मिलकर कई परियोजनाएं शुरू कीं. जिससे वहां विकास का दौर शुरू हुआ. उद्योगों की शुरुआत हुई. बेंगलुरु शहर को चमकाने में योगदान बेंगलुरु का प्रतिष्ठित टाउन हॉल, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, ग्लास फैक्ट्री और पोर्सिलेन फैक्ट्री सभी मैसूर के दीवान के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान बेंगलुरु (तब बैंगलोर) में स्थापित किए गए. उन्होंने कई उद्योग स्थापित किए. नगर नियोजन और शहर के सौंदर्यीकरण में गहरी दिलचस्पी ली. कई कालोनियां विकसित कीं. उन्होंने इसे खूबसूरत शहर बनाया अगर मैसूर के दीवान (1912-19) के रूप में एम विश्वेश्वरैया ने बैंगलोर (अब बेंगलुरु) को एक औद्योगिक शहर बनाया, तो मिर्ज़ा इस्माइल ने इसे एक खूबसूरत शहर बनाया, जिसमें लालबाग और सड़कें झूमर लैंप पोस्ट से जगमगाती थीं. उनके बारे में एक दिलचस्प कहानी यह है कि वे सिर्फ़ यह देखने के लिए इधर-उधर नहीं देखते थे कि सब कुछ ठीक है या नहीं – वे कालीन का कोना उठाकर देखते थे कि फर्श साफ हुआ है या नहीं.” मिर्ज़ा के काम की खूब तारीफ हुई. इस दौरान उन्हें कई सम्मान मिले. भारत के लिए उनकी सेवाओं के लिए उन्हें 1922 में ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर (OBE) का अधिकारी नियुक्त किया गया. उन्हें 1930 में नाइट की उपाधि दी गई. 1936 में उन्हें नाइट कमांडर (KCIE) नियुक्त किया गया. बेंगलुरु का प्रतिष्ठित टाउन हॉल सर मिर्ज़ा इस्माइल द्वारा बनाया गया था, इसे मिर्जा हाल भी कहा जाता है. 1940 में कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ के निधन के बाद भी वे उनके उत्तराधिकारी जयाचामराज वोडेयार के अधीन काम करते रहे. हालांकि मतभेदों के कारण उन्होंने 1941 में इस्तीफा दे दिया. फिर जयपुर पहुंचे और प्रधानमंत्री बने 1942 में मिर्जा प्रधानमंत्री बनने के उद्देश्य से उत्तर की ओर लगभग 2000 किलोमीटर की यात्रा कर राजस्थान के ‘गुलाबी नगर’ पहुंचे. उन्होंने महाराजा सवाई जय सिंह द्वारा 1774 में निर्मित चारदीवारी से घिरे शहर से आगे जाकर स्कूलों और विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों जैसे शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण का कार्य शुरू किया. जयपुर में हुए विकास कार्यों के चलते जयपुर में एक सड़क का नाम सर मिर्जा इस्माइल के नाम पर रखा गया. शहर का प्रसिद्ध घंटाघर इसी सड़क के पास है. चारदीवारी वाला शहर रेलवे स्टेशन से अच्छी तरह जुड़ा नहीं था. प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने चारदीवारी वाले शहर को सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं से जोड़ने वाली सड़क के निर्माण का आदेश दिया. जयपुर के एमआई रोड पर घंटाघर, ये सड़क मिर्जा इस्माइल ने बनवाई. उसका नामकरण महाराजा सवाई मान सिंह ने उन्हीं के नाम पर कर दिया. एमआई सड़क नामकरण के पीछे दिलचस्प कहानी एमआई सड़क के नामकरण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. सड़क बनने के बाद मिर्जा ने महाराजा सवाई मान सिंह को एक पत्र लिखा. प्रस्ताव रखा कि इस सड़क का नाम हिज हाइनेस सवाई मान सिंह हाईवे रखा जाए. हालांकि तब वह चकित रह गए, जब उन्हें ये जवाब मिला: “अगर आप सहमत हों तो मैं आपके नाम पर एक सड़क का नाम रखना चाहूंगा, क्योंकि मुझे लगता है कि जयपुर आपके द्वारा किए जा रहे सभी सुधारों के लिए आपका बहुत आभारी है, हालांकि आने वाले समय में आपका नाम अन्य संबंधों से भी जुड़ा होगा लेकिन शहर का सुधार पहले से ही व्यापक रूप से जाना जाता है और ये आपसे जुड़ा हुआ है. मैं सड़क का नाम आपके नाम पर रखना चाहूंगा.” फिर हैदराबाद के दीवान बने 1945 में उन्होंने जयपुर में पद संभाला. एक साल बाद 1946 में मीर उस्मान अली खान के प्रस्ताव पर वे हैदराबाद के दीवान बन गए. इस दौरान भारत के बंटवारे पर चर्चा हो रही थी. वे इसके पूरी तरह खिलाफ थे. जब उन्होंने अपनी नई भूमिका संभाली, तो उन्होंने हैदराबाद रियासत के साथ भारत सरकार के साथ स्टैंडस्टिल समझौते पर बातचीत करने की पूरी कोशिश की. हैदराबाद रियासत में दीवान के रूप में मिर्जा इस्माइल (फाइल फोटो) निजाम से टकराहट पर इस्तीफा दे दिया स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट एक ऐसा दस्तावेज़ था जिस पर भारत सरकार में शामिल होने के लिए रियासतों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने की आवश्यकता थी. हालांकि, निज़ाम मीर उस्मान खान भारत में शामिल होने के पूरी तरह से खिलाफ थे. यह इस्माइल के रुख से टकराया. इसके परिणामस्वरूप उन्होंने 1947 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया. मिर्ज़ा की शादी ज़ीबुंदे बेगम शिराज़ी से हुई. यह शादी उनके माता-पिता द्वारा तय की गई. ज़ीबुंदे बेगुन ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने 1926 में स्टेट वूमेन कॉन्फ्रेंस की स्थापना की. मैसूर साम्राज्य में महिला आंदोलन का नेतृत्व किया. उनके पोते अकबर मिर्ज़ा खलीली ने उनके पदचिन्हों पर चलते हुए प्रशासक बनकर भारतीय विदेश सेवा में सफलता प्राप्त की. 1959 से 1994 के बीच सेवा की. 5 जनवरी 1959 को 75 वर्ष की आयु में मिर्ज़ा का निधन बेंगलुरु में हुआ. अपने पूरे जीवन मिर्ज़ा इस्माइल ने ये दिखाया कि सत्ता के पदों का इस्तेमाल समाज की बेहतरी के लिए कैसे किया जा सकता है. Tags: Jaipur metro, Jaipur newsFIRST PUBLISHED : December 4, 2024, 17:25 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed