युधिष्ठिर जब महाभारत का युद्ध जीतकर राजा बने तो किसे दी कौन सी मिनिस्ट्री
युधिष्ठिर जब महाभारत का युद्ध जीतकर राजा बने तो किसे दी कौन सी मिनिस्ट्री
Mahabharat Katha : महाभारत के युद्ध के कुछ दिनों बाद युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने. क्या आप जानते हैं कि उन्होंने इस मौके पर राज्य को चलाने के लिए किसको कौन सा मंत्रालय यानि भूमिका दी.
हाइलाइट्स महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद शुरू में युधिष्ठिर कतई राजा नहीं बनना चाहते थे वह कृष्ण, भीष्म और अपने भाइयों के समझाने के बाद खुद को राजा बनने के लिए तैयार कर पाए जब उनका राजतिलक हुआ तो उन्होंने प्रमुख लोगों को राज्य को चलाने के लिए खास भूमिकाएं सौंपीं
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला. इसके बाद जब युद्ध का अंत हुआ तो दोनों ओर से काफी बड़ी संख्या में सैनिक और बड़े बड़े योद्धा मारे गए. युद्ध खत्म होने के बाद युधिष्ठिर राजा ही नहीं बनना चाहते थे. कृष्ण, भीष्म और उनके भाइयों ने विचलित युधिष्ठिर को राजा बनने के लिए तैयार किया. जब उन्होंने राजा का पद ग्रहण किया तो राजकाज चलाने के लिए मंत्रालयों का भी गठन किया. अलग अलग जिम्मेदारियों के लिए मंत्री नियुक्त किए.
युद्ध के कुछ दिनों बाद तक युधिष्ठिर इस बात को लेकर विचलित थे कि इतने विनाशक युद्ध के बाद जब सबकुछ खत्म हो गया है तो वो राजा क्यों बनें. इस पर ना केवल कृष्ण ने उन्हें राजधर्म की शिक्षा दी बल्कि बाणशैया पर लेटे भीष्म पितामह ने भी उन्हें कई दिनों तक राजधर्म को लेकर ज्ञान दिया. मन को संतुलित कर राजा का आसन ग्रहण करने को कहा.
जब युधिष्ठिर का राजतिलक हुआ
जब युधिष्ठिर तैयार हो गए तो उनका राजतिलक किया गया और उन्हें हस्तिनापुर का राजा बनाया गया. उन्होंने अपने शासन के दौरान न्याय और धर्म का पालन किया. 36 वर्षों तक शासन किया. इसके बाद पोते परीक्षित को राजपाट सौंपकर भाइयों के साथ प्राण छोड़ने के लिए हिमालय की ओर कूच कर गए. क्या आपको मालूम है कि युधिष्ठिर जब राजा बने तो राजकाज चलाने के लिए उन्होंने किस तरह मंत्रालय बनाये और किसको कौन सा जिम्मा दिया.
महाभारत के युद्ध में कितनी जानें गईं
ये जानने से पहले जान लेते हैं कि महाभारत युद्ध में कितने लोगों की जान गई थी, जिसने युधिष्ठिर को विचलित कर दिया था. महाभारत के युद्ध में दोनों पक्षों की सेनाओं की कुल संख्या 18 अक्षोहिणी थी, जिसमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिणी सेनाएं शामिल थीं. युद्ध के अंत में केवल 18 योद्धा जीवित बचे थे. महाभारत के युद्ध के बाद जब राजतिलक हुआ तो भगवान कृष्ण समेत सभी पांडव और प्रमुख लोग वहां मौजूद रहे. (image generated by leonardo ai)
अक्षोहिणी एक प्राचीन भारतीय सेना की माप है, जिसका उपयोग महाभारत के युद्ध में किया गया था। यह एक पूर्ण चतुरंगिणी सेना का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें चार प्रमुख अंग होते हैं: पैदल सैनिक, घुड़सवार, रथी और हाथी.
एक अक्षोहिणी में निम्नलिखित सैनिक होते हैं:
पैदल सैनिक: 21,870
घोड़े: 21,870
रथ: 21,870
हाथी: 21,870
इस प्रकार एक अक्षोहिणी में कुल लगभग 109,350 सैनिक होते हैं.
राजतिलक में कौन कहां बैठा
जब युधिष्ठिर का राजतिलक हुआ तब सोने के सिंहासन पर बैठे. सिंहासन के दोनों ओर भीम और अर्जुन खड़े हुए जबकि कृष्ण व सात्यकि उनके सामने खड़े हुए. नकुल-सहदेव और कुंती उसके बगल में सोने से सज्जित हाथी दांत से बने आसन पर बैठे. गांधारी, युयुत्सु व संजय ने धृतराष्ट्र के समीप बैठे हुए थे.
उस समय खास होम और पूजा-पाठ हुए. नगाड़े बजने लगे। शंखनाद हुआ. युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों को काफी दक्षिणा दी. इस तरह युधिष्ठिर ने राजा का कार्यभार ग्रहण किया. अब उनका अगला काम था राज्य को चलाने के लिए मंत्रालय गठित करके काम सौंपना.
भीम को क्या बनाया गया
इसमें उन्होंने भीम को युवराज घोषित किया यानि उनकी गैरमौजूदगी में भीम राज्य के प्रमुख रहेंगे साथ ही राज के काम में सभी तरह की मंत्रणा और कामों में राजा की मदद करेंगे. कहा जा सकता है कि भीम उनके गृह मंत्री भी थे.
विदुर, नकुल और अर्जुन क्या बने
राजा युधिष्ठिर ने विदुर को मंत्रणा व संधिविग्रहादि का मंत्रालय सौंपा. संजय को कर्तव्य और आय-व्यय निरूपण का भार सौंपा यानि वो उनके वित्तमंत्री बने. नकुल को सेना का भार दिया गया, वह रक्षा मंत्री बने. अर्जुन को शत्रुराज्य के अवरोध व दुष्टदमन का भार दिया गया, कहा जा सकता है उनकी भूमिका विदेश मंत्री और कानून मंत्री की थी और युद्ध होने पर सेना की अगुवाई करने की भी.
सहदेव को क्या भूमिका मिली
पुरोहित धौम्य को देवता-ब्राह्मणादि की सेवा का भार दिया गया. युधिष्ठिर के आदेश पर सहदेव उनके हमेशा करीब रहकर उनकी रक्षा करने का काम दिया गया. विदुर, संजय व युयुत्सु को राजा धृतराष्ट्र से जुड़े सभी कामों में मदद करने के लिए कहा गया.,
किसे कौन सा महल दिया गया
इस मौके पर युधिष्ठिर ने अलग महलों को भी भाइयों को दिया. धृतराष्ट्र की अनुमति से उन्होंने भीम को दुर्योधन का भवन दिया तो अर्जुन को दुःशासन, नकुल को दुर्मर्षण और सहदेव को दुर्मुख का भवन दिया.
राजकाज में क्या सुधार किया
युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर में शासन करते समय कई महत्वपूर्ण कानूनी और सामाजिक सुधार किए.
न्याय पर आधारित शासन- युधिष्ठिर ने अपने शासन में धर्म और न्याय को प्राथमिकता दी. वे एक न्यायप्रिय राजा के रूप में जाने जाते थे. अपने निर्णयों में हमेशा धर्म का पालन करते थे. उनका उद्देश्य राज्य में शांति और समृद्धि स्थापित करना था.
छल-कपट का त्याग – युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने छल-कपट का त्याग करके सभी लोगों के साथ प्रेम का व्यवहार करने का संकल्प लिया. उन्होंने युद्ध के नियमों का भी पालन किया.
सामाजिक सुधार – राज्य में शांति और समृद्धि स्थापित करने के लिए धर्म के मार्गदर्शन का अनुसरण किया. शासन में सभी वर्गों के कल्याण का ध्यान रखा. उन्होंने किसी भी वर्ग या जाति के प्रति भेदभाव नहीं किया. सभी नागरिकों को समान अधिकार दिया.
शिक्षा का प्रसार – युधिष्ठिर ने अपने शासन में शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया. उन्होंने ब्राह्मणों और विद्वानों को प्रोत्साहित किया. उन्हें विशेष सुविधाएं दीं.
Tags: Hastinapur Assembly Seat History, Lord krishna, MahabharatFIRST PUBLISHED : August 28, 2024, 12:34 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed