ट्रेन में मिलने वाले कंबल धुलते हैं कितने दिनों बाद इनसे क्या बीमारियां

हम सभी रेल में यात्रा करते हैं. जाड़े के समय में रिजर्वेशन बोगियों में यात्रियों को कंबल भी दिए जाते हैं, जिनके गंदे होने की शिकायतें आम होती हैं. इन्हें कितने दिनों में धोया जाता है. कितने दिनों में धोया जाना चाहिए. क्या हैं नियम

ट्रेन में मिलने वाले कंबल धुलते हैं कितने दिनों बाद इनसे क्या बीमारियां
हाइलाइट्स रेलवे में रोज कितने कंबलों का इस्तेमाल गंदे कंबलों से होती हैं कौन सी बीमारियां अन्य देशों की रेलों में क्या ऐसी सुविधाएं क्या आपको मालूम है कि भारतीय रेलवे कितने दिनों बाद अपने कंबलों को धोता है. रेलवे की रिजर्वेशन बोगियों में रात की जर्नी में यात्रियों को जो कंबल दिया जाता है, उसकी सफाई को लेकर बहुत सी शिकायतें रहती आई हैं. एक ही कंबल रोज अलग अलग लोगों को दिए जाते हैं. इनका हाइजीन बड़ा सवाल है. शोध कहते हैं कि गंदें कंबलों से स्किन से लेकर सांस तक की कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में बताया, ट्रेन यात्रियों द्वारा इस्तेमाल किए गए कंबल महीने में कम से कम एक बार धुलवाए जाते हैं. इन्हें मशीनीकृत लॉन्ड्रियों और लिनन की धुलाई के लिए मानक मशीनों और तय रसायनों का उपयोग करके धोया जाता है. किनसे खरीदे जाते हैं ये भारतीय रेलवे द्वारा ट्रेन में यात्रियों को दिए जाने वाले कंबल विभिन्न रेलवे ज़ोन द्वारा अधिकृत वेंडरों या स्थानीय स्तर पर चयनित सप्लायर्स से खरीदे जाते हैं. ये कंबल आमतौर पर रेलवे के मानकों और विशिष्टताओं के अनुसार बनाए जाते हैं. जो देश में टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में बनाए जाते हैं. इन्हें लेकर क्या होती है यात्रियों की शिकायत कंबलों की सफाई को यात्री ज्यादा इनकी गुणवत्ता और स्वच्छता पर सवाल उठाते हैं. क्योंकि ये कंबल रोज अलग अलग यात्रियों को दिए जाते हैं. लिहाजा उनके साथ कई तरह के गंदगी, कीटाणु भी इन कंबंलों पर इकट्ठा होते जाते हैं. हालांकि रेलवे का कहना है कि अगर आपको ट्रेन में दिए गए कंबल की स्वच्छता पर शक हो, तो आप इसकी सूचना ट्रेन अटेंडेंट या रेलवे हेल्पलाइन को दे सकते हैं. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में बताया, ट्रेन यात्रियों द्वारा इस्तेमाल किए गए कंबल महीने में कम से कम एक बार धुलवाए जाते हैं. इन्हें मशीनीकृत लॉन्ड्रियों मानक मशीनों और रसायनों के जरिए धोकर सुखाया जाता है. इन कंबलों को कितने दिनों बाद नष्ट कर देना चाहिए रेलवे के मानकों के अनुसार कंबलों का उपयोग 2 से 3 साल तक किया जा सकता है. यदि कंबल खराब हो जाता है, काफी गंदा हो जाता है या उपयोग के लायक नहीं रहता तो तो इसे निर्धारित समय से पहले भी हटा दिया जा सकता है. कंबल की स्थिति की समय-समय पर जांच की जाती है. जिन कंबलों में छेद, फटे हुए हिस्से, या अत्यधिक गंदगी पाई जाती है, उन्हें हटा दिया जाता है. रेलवे रोज कितने कंबलों का इस्तेमाल करती है भारतीय रेलवे के दैनिक संचालन के दौरान कंबलों का उपयोग यात्रियों की संख्या और ट्रेनों की प्रकृति पर निर्भर करता है. विशेष रूप से वातानुकूलित (AC) डिब्बों में यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए कंबलों की आपूर्ति की जाती है. भारतीय रेलवे में AC 1st Class, AC 2nd Tier, और AC 3rd Tier डिब्बों वाले हजारों ट्रेनें चलती हैं. एक अनुमान के अनुसार, भारतीय रेलवे में हर दिन 3,000 से अधिक ट्रेनों में वातानुकूलित कोच शामिल होते हैं. हर दिन रेलवे से 10-12 लाख यात्री AC डिब्बों में यात्रा करते हैं. प्रत्येक यात्री को आमतौर पर एक कंबल, दो चादरें, एक तकिया, और एक तौलिया दिया जाता है. आजकल रेलवे के बहुत से रीजन में तौलिया देना बंद कर दिया गया है. इस लिहाज से रेलवे औसतन हर दिन करीब 10-12 लाख कंबलों का उपयोग करता है. हर यात्री को यात्रा के दौरान कंबल उपलब्ध कराया जाता है. वैसे कहना चाहिए कि भारतीय रेलवे सफाई और गुणवत्ता के मामले में, भारत अभी भी यूरोप, जापान और अमेरिका जैसे देशों से पीछे है एक ही कंबल का इस्तेमाल कई लोगों द्वारा करने पर बीमारियां इस तरह के कंबल बैक्टीरिया, वायरस, या फंगस के वाहक बन सकते हैं. यात्रियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों का खतरा हो सकता है. गंदे कंबलों में धूल के कण, फंगस, या डस्ट माइट हो सकते हैं, जो त्वचा पर एलर्जी, खुजली, या रैशेज पैदा कर सकते हैं – यदि कंबल में नमी रहती है या इसे ठीक से नहीं सुखाया जाता, तो फंगस पनप सकता है, जिससे त्वचा संक्रमण हो सकता है. – गंदे कंबल में धूल और फंगस से एलर्जिक राइनाइटिस या अस्थमा जैसी समस्याएं हो सकती हैं. – वायरस या बैक्टीरिया से संक्रमित कंबल से सामान्य सर्दी, खांसी, या गले में खराश हो सकती है. अगर कंबल का इस्तेमाल किसी बीमार ने किया हो तो… यदि कंबल का उपयोग पहले किसी बीमार व्यक्ति ने किया हो तो इससे फ्लू या अन्य वायरल संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है. गंदगी या बैक्टीरिया वाले कंबल से फोड़े-फुंसी या अन्य संक्रमण हो सकते हैं. क्या हैं रेलवे में कंबलों की सफाई के नियम रेलवे के नियमों के अनुसार, कंबलों को हर 15 से 30 दिन में एक बार धोया जाना चाहिए. बिस्तर के अन्य सामान, जैसे चादर और तकिए के कवर प्रत्येक यात्रा के बाद धोए जाते हैं. लेकिन कंबल के साथ ऐसा नहीं होता. रेलवे के नियमों के अनुसार, कंबलों को हर 15 से 30 दिन में एक बार धोया जाना चाहिए. बिस्तर के अन्य सामान, जैसे चादर और तकिए के कवर प्रत्येक यात्रा के बाद धोए जाते हैं. कंबल को बड़े आकार की औद्योगिक वाशिंग मशीनों में डिटर्जेंट और गर्म पानी का उपयोग करके धोया जाता है. गर्म पानी बैक्टीरिया और फंगस को मारने में मदद करता है. सफाई के बाद कंबलों को स्टरलाइज किया जाता है ताकि किसी भी प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया या वायरस का उन्मूलन हो सके. कुछ रेलवे ज़ोन अल्ट्रावायलेट (UV) स्टरलाइजेशन जैसी आधुनिक तकनीक का भी उपयोग करते हैं. धोने के बाद कंबलों को औद्योगिक ड्रायर या धूप में सुखाया जाता है ताकि उनमें नमी न रहे. क्या रेलवे इनकी सफाई खुद करता है या करवाता है रेलवे के पास प्रमुख स्टेशनों पर मशीनीकृत लॉन्ड्री सुविधाएं हैं, जैसे दिल्ली, मुंबई, और चेन्नई. कुछ रेलवे ज़ोन ने थर्ड-पार्टी लॉन्ड्री सर्विस का भी उपयोग शुरू किया है ताकि सफाई प्रक्रिया तेज और प्रभावी हो सके. कंबंल सफाई की चुनौतियां क्या होती हैं – पर्याप्त सफाई नहीं होना – कंबलों को रोजाना धोने का नियम नहीं है, जिससे उनकी सफाई में कमी रह सकती है. – बड़ी संख्या में कंबलों को साफ करना चुनौतीपूर्ण होता है, जिससे समय पर सफाई सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है – कई बार निर्धारित प्रक्रिया का पूरी तरह पालन नहीं किया जाता, जिससे सफाई का स्तर प्रभावित होता है। दुनिया के बाकी देशों की रेलवे क्या करती हैं दुनिया के कई देशों में लंबी दूरी और प्रीमियम रेलवे सेवाओं में यात्रियों को कंबल, चादर और अन्य बेडरोल आइटम दिए जाते हैं. यूरोप – यूरोपीय में Nightjet (ऑस्ट्रिया), TGV (फ्रांस), और यूरोस्टार जैसी ट्रेन सेवाएं प्रीमियम कैबिन और स्लीपर कोच में बिस्तर और कंबल देती हैं. यहां दिए जाने वाले कंबल और चादरें उच्च गुणवत्ता और स्वच्छता मानकों के अनुरूप होती हैं. यूरोपीय देशों में हर यात्रा के बाद कंबल को साफ किया जाता है. कुछ देशों में डिस्पोजेबल चादरें और कंबल की सुविधा दी जाती है. अमेरिका – अमेरिका में Amtrak की लंबी दूरी की ट्रेनों, जैसे California Zephyr और Empire Builder, में स्लीपर कोच यात्रियों को कंबल, तकिए और तौलिया दिए जाते हैं. कंबल और अन्य सामग्री साफ और व्यक्तिगत रूप से पैक की जाती है. प्रीमियम सेवा के लिए डिस्पोजेबल और साफ कंबल दिए जाते हैं. जापान – जापान की शिंकानसेन (Shinkansen) बुलेट ट्रेनें आमतौर पर बहुत कम समय की यात्रा के लिए होती हैं, इसलिए कंबल या बेडरोल की आवश्यकता नहीं होती. हालांकि, लंबी दूरी की नाइट ट्रेनों में (जैसे Sunrise Izumo) कंबल और चादरें दी जाती हैं. जापान में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. कंबल उच्च गुणवत्ता के होते हैं. इन्हें नियमित रूप से धोया जाता है. चीन – चीन की स्लीपर ट्रेनों में यात्रियों को कंबल, चादर, और तकिए प्रदान किए जाते हैं. इन कंबलों को हर यात्रा के बाद बदला और साफ किया जाता है. चीनी रेलवे अपने कंबलों की सफाई के लिए कड़े नियमों का पालन करता है. ऑस्ट्रेलिया – The Ghan और Indian Pacific की लंबी दूरी की ट्रेनों में स्लीपर क्लास यात्रियों को कंबल और चादरें दी जाती हैं. यात्रा के बाद इन्हें लॉन्ड्री में भेजा जाता है. मध्य पूर्व और खाड़ी देश – प्रीमियम ट्रेनों, जैसे Etihad Rail (UAE) या Saudi Railways की प्रीमियम सेवाओं में यात्रियों को आरामदायक कंबल और बेडरोल दिए जाते हैं. यहां दिए जाने वाले कंबल न केवल साफ होते हैं, बल्कि इनके डिज़ाइन भी उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं. रूस –रूस की लंबी दूरी की ट्रेनों, जैसे Trans-Siberian Railway, में यात्रियों को साफ कंबल और चादरें दी जाती हैं. दक्षिण अफ्रीका- Blue Train और Rovos Rail जैसी लक्जरी ट्रेनों में बेडरोल और कंबल शामिल हैं. Tags: Ashwini vaishnav, Cleanliness campaign, Cleanliness Drive, Indian railway, Indian Railway news, Indian RailwaysFIRST PUBLISHED : November 28, 2024, 19:04 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed