दास्तान-गो : किशोर कुमार ने जब मिलवाया अपने बचपन जवानी और बुढ़ापे से!
दास्तान-गो : किशोर कुमार ने जब मिलवाया अपने बचपन जवानी और बुढ़ापे से!
Daastaan-Go ; Kishore Kumar Rare Interview : ‘मी लॉर्ड, मैंने जब-जब गाना चाहा, तो मेरे बड़े भाई अशोक कुमार ने कहा- अरे जा जा, तू क्या गाएगा, पहले आवाज़ को ठीक कर, माइक के सामने गाना बच्चों का खेल नहीं’. ‘हूं.. यानी अशोक कुमार, उर्फ़ तेरे बड़े भाई ने तुझे डिस्करेज़ किया’. ‘नईं, हां.. नईं भी और हां भी, उनका यही डिस्करेजमेंट मेरे लिए सबसे ज़्यादा एनकरेज़मेंट बन गया, मैंने ठान लिया कि मैं और अच्छा गाऊंगा, और अच्छा गाऊंगा
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, ये 1970 की दहाई की बात है. ऑल इंडिया रेडियो पर उन दिनों एक प्रोग्राम आया करता था, ‘सेरीडॉन के साथी’. मशहूर अनाउंसर अमीन सयानी उसे पेश किया करते थे. हिन्दुस्तान के रेडियो पर यह पहला स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम था. इसमें सयानी साहब मशहूर शख़्सियतों के इंटरव्यू वग़ैरा लिया करते थे. इस प्रोग्राम का आख़िरी एपीसोड जब आया, तो वह बड़ा धमाकेदार और दिलचस्प बन पड़ा. जानते हैं क्यों? क्योंकि उसमें किशोर कुमार आए थे. हिन्दी फिल्मों के मशहूर गुलूकार, जिनकी आज तक लोग नक़लें किया करते हैं. अलबत्ता, ‘नक़ल हमेशा होती है, बराबरी कभी नहीं’. क्योंकि किशोर-दा एक ही थे, एक ही हैं, एक ही रहने वाले हैं. तो जनाब, उस प्रोग्राम में किशोर-दा ने चाहने वालों को अपने ख़ास अंदाज़ में ख़ुद के ही बचपन, जवानी और बुढ़ापे से मिलवाया था. आज किशोर-दा का जन्म दिन (चार अगस्त 1929 की पैदाइश) है. तो दास्तान-गो ने सोचा कि क्यूं न उनका वह इंटरव्यू सुन लिया जाए. सुना, तो जस का तस पढ़वाने की इच्छा हो गई. तो पढ़िए…
अमीन सयानी : बहनो और भाईयो, आज इस प्रोग्राम में आप सब से मिलने आए हैं, वो सरगमी जादूग़र, जिनकी आवाज़ आज हर संगीत प्रेमी के सीने में दिल बनकर धड़कती है.
(किशोर कुमार की ख़ास यूडलिंग)
अमीन सयानी : सुना आपने, सुना आपने बहनो और भाईयो. वो आ गए, जिसका इंतिज़ार था, वो आ गए. और ये हैं आपके, मेरे और हम सबके फेवरिट गायक किशोर कुमार.
किशोर-दा : हा, हा, हा, हा. अमीन भाई! जो तुमने मेरे बारे में कहा, वो मैंने सुना. और जो कुछ भी कहा, वो काफ़ी से ज़्यादा कहा.
अमीन सयानी : मतलब ये दादा, आप बाहर खड़े-खड़े वो सब-कुछ सुन रहे थे, जो मैं कह रहा था.
किशोर-दा : अरे भई, सुन भी रहा था और बोर भी हो रहा था. अमीन भाई, तुम बहुत, बहुत, बहुत बोर करने लगे हो.
अमीन सयानी : ओ हो, हो, हो. किशोर दा..
किशोर-दा : भला इसी में है कि तुम चुप हो जाओ. और मैं सबको बोर करूं.
अमीन सयानी : अरे, रे, रे. कैसी बात कर रहे हैं आप किशोर-दा. आप कहां बोर करेंगे. देखिए आप जो भी कहेंगे, लोग बहुत मज़ा लेकर सुनेंगे. और इतने अरसे से मैं इंतिज़ार कर रहा था कि आप हमारे प्रोग्राम में आएं.
किशोर-दा : अच्छा तो फिर सुनो.
अमीन सयानी : सुनाइए.
किशोर-दा : क्या सुनाऊं?
अमीन सयानी : अपने साथियों के बारे में कुछ सुनाइए किशोर-दा.
किशोर-दा : साथियों के बारे में. अरे अमीन भाई! इस कारोबारी दुनिया में कौन किसका साथी है? जैसा कि मेरे गुरु सहगल (केएल सहगल) साहब का गीत है न, वो क्या याद आता है- न मैं किसी का, न कोई मेरा. छाया चारों ओर अंधेरा. अच्छा तो अमीन भाई, गुडनाइट.
अमीन सयानी : अरे, रे, रे किशोर भाई! ये क्या कह रहे हैं आप? गुड नाइट! अभी तो आप आए हैं.
किशोर-दा : ओह हां. सॉरी, सॉरी. मैं तो भूल ही गया था कि मैं आया हूं.
अमीन सयानी : हां, और आप कुछ बोलेंगे नहीं, तो हमारे सुनने वाले जो हैं, करोड़ों, जो अपने रेडियो सैट पर कान लगाए बैठे हैं, दिल लगाए बैठे हैं, वो निराश हो जाएंगे.
किशोर-दा : नईं, नईं, नईं, नईं. उनको निराश नहीं करूंगा. उन्हें अपने साथियों के बारे में ज़रूर बताऊंगा. हां तो, हुं, हुं, हुं. आवाज़ की दुनिया के दोस्तो! अगर आपको मैं बताऊं कि मेरी ज़िंदगी के तीन साथी कौन हैं, तो आप चौंक पड़ेंगे. क्योंकि ये तीनों साथी आपके भी साथी हैं. हं, हं! मेरा मतलब है, मेरा पहला साथी- (नवजात बच्चे की तरह रोने की आवाज़), हा, हा. बचपन. हूं, समझ गए न? और दूसरा साथी- (फिल्मी गाना- ये जवानी, है दीवानी, रुक…) दूसरा साथी- जवानी.
अमीन सयानी : अच्छा, अच्छा जवानी.
किशोर-दा : और क्या, हां. और तीसरा साथी- बुड्ढों की तरह खांसने की आवाज़
अमीन सयानी : क्या हो गया, किशोर-दा?
किशोर-दा : पानी, पानी…, मेरा तीसरा साथी है- बुढ़ापा.
अमीन सयानी : वाह, वाह, वाह. यानी बचपन, जवानी और बुढ़ापा, वाह. किशोर-दा, बड़े अच्छे साथी चुने हैं आपने. तो मिलवाइए हमें इनसे.
किशोर-दा : अरे, अरे, अरे. मगर कैसे मिलाऊं?
अमीन सयानी : मेरा ख़्याल है…
किशोर-दा : आ हां, हां, हां, हां… एक आइडिया आया. आइडिया. मैं ख़ुद तीनों साथियों से बातें करता हूं.
अमीन सयानी : वाह, वाह. वैरी गुड किशोर-दा, वैरी गुड.
किशोर-दा : क्या वैरी गुड? मुझे बेवकूफ़ समझ लिया है?
अमीन सयानी : क्यों दा?
किशोर-दा : कहीं मुझे अपने आप से बातें करते हुए लोग ये तो नहीं समझ लेंगे कि मैं पागल हो गया हूं? जैसा कि मेरे बारे में दुनिया कहती है.
अमीन सयानी : नहीं, नहीं दादा. आपको जो पागल कहे तो ख़ुद पागल.
किशोर-दा : अच्छा, ऐसा? तो ठीक है. सुनो, बच्चे किशोर से बातचीत. कौन कर रहा है? किशोर के पिताजी (कुंजालाल गांगुली जी)… ‘अरे किशोर, अरे किशोर!’. ‘क्या है बाबा’. ‘मेरे कुछ वकील दोस्त लोग आए हैं, इन सबको नमस्ते करो बेटा’. ‘नमस्ते! अच्चा, मैं जाऊं’. ‘अरे, अरे जाता कहां है?, एक गाना तो सुना दे’. ‘अच्चा, तो पैले बोलो- किसका गाना छुनोगे, मेले गुलुजी छहगल साब का? या मेले बले भाई अछोक कुमाल का? तुमको लेट मालूम है न? छहगल छाब के गाने का एक लुपया और दादा मुनि के गाने की चवन्नी’. ‘तो, तो तू फिर चवन्नी ही सुना इन लोगों को, सस्ते में काम बन जाएगा’. ‘नईं, नईं, मैं एक लुपया सुनाऊंगा, काका जी लोग, आप बोलिए न बाबा को’. ‘हां, हां, बेटे तू सहगल-साहब का ही गाना सुना’. ‘तो मैं एक साथ छहगल छाब के पांच गाने सुनाऊंगा, बाबा, बाबा, निकालो न पांच लुपए’. ‘अरे बाप रे’. ‘ऊं, निकालो न पांच लुपए, एडवांस’. ‘नहीं, नहीं, तू एक ही सुना’. ‘बाबा, तुम इतने कंजूस, मक्खीचूस क्यों बनते हो?’ ‘चुप, कंजूस के बच्चे, सुनाता है या नहीं? सुना, एक गाना अशोक का और एक गाना सहगल का, और फिर जल्दी से फूट’. ‘अच्छा, हां तो अभी, अभी, अभी, अभी छुनो अछोक कुमाल का गाना, फिलिम ‘किस्मत’ का- धीले धीले आ ले बादल, धीले धीले आ ले बादल, धीले धीले जा, मेला बुलबुल छो लहा है, शोरगुल न मचा, धीले धीले- निकालिए चवन्नी, अच्छा अभी न, अभी मैं आपको छहगल छाब का गाना सुनाऊंगा, मेले गुलुजी का, आं, अच्छा- छुनो- एक राजे का बेटा लेकर उड़ने वाला घोड़ा, देश, देश की सैर की ख़ातिर अपने घर से निकला- निकालिए एक लुपया’. ‘हा, हा, हा, बहुत अच्छे’.
किशोर-दा : तो अमीन भाई, ये था मेरा पहला साथी बचपन. आ हा, हा, क्या दिन थे वो भी. ‘बार-बार आती है मुझको, मधुर याद बचपन तेरी, गया ले गया जीवन की तू सबसे मस्त खुशी मेरी’. अच्छा, तो अब मैं आपको ले चलता हूं, अपने दूसरे साथी जवानी से मिलने. तो चलें.
अमीन सयानी : हां, हां, ज़रूर
किशोर-दा : तो आओ. (गाना- आ चल के तुझे मैं ले के चलूं, एक ऐसे गगन के तले, जहां ग़म भी न हों, आंसूं भी न हों, बस, प्यार ही प्यार पले) लेकिन अमीन भाई, हक़ीक़त ये है कि जवानी में प्यार कम मिलता है, और मुसीबतें ज़्यादा.
अमीन सयानी : वो कैसे किशोर-दा.
किशोर-दा : वो ऐसे कि मेरी जवानी ने चाहा कि मैं बहुत बड़ा क्लासिकल सिंगर यानी शास्त्रीय गायक बनूं. मगर चूंकि मेरे पिता जी वकील थे और उनकी कचहरी में संगीत का कोई स्थान नहीं था, इसीलिए मैं संगीत की कोई शिक्षा नहीं ले पाया.
अमीन सयानी : वो तो ठीक है किशोर-दा. लेकिन आपने फ़रमाया था कि आप अपनी जवानी से बातें कराएंगे. उसका क्या हुआ?
किशोर-दा : अरे भई, ये तो सिर्फ़ एक ट्रेलर था.
अमीन सयानी : अच्छा, अच्छा.
किशोर-दा : बातचीत के लिए आ रहे हैं एक हाईकोर्ट के जज साहब.
अमीन सयानी : कौन जज साहब?
किशोर-दा : डरो मत, डरो मत. जज किशोर कुमार खंडवा वाला, जो मेरे दिल में हमेशा बसते हैं… ‘होशियार, ख़बरदार, किशोर कुमार खंडवा जज की सवारी आ रही है‘. ‘ऑर्डर, ऑर्डर’. ‘मी लॉर्ड, मेरा कोई क़ुसूर नहीं’. ‘क़ुसूर के बारे में तुझसे किसने पूछा बे?’. ‘तो क्या पूछा?’ ‘ये पूछा कि तूने ये क्यों कहा कि जवानी तेरे लिए मुसीबत बन गई बे?’. ‘इसलिए कि बन गई’. ‘काइंडली एक्सप्लेन, बात समझ में नहीं आई, साफ़-साफ़ बता’. ‘मी लॉर्ड, मैंने जब-जब गाना चाहा, तो मेरे बड़े भाई अशोक कुमार ने कहा- अरे जा जा, तू क्या गाएगा, पहले आवाज़ को ठीक कर, माइक के सामने गाना बच्चों का खेल नहीं’. ‘हूं.. यानी अशोक कुमार, उर्फ़ तेरे बड़े भाई ने तुझे डिस्करेज़ किया’. ‘नईं, हां.. नईं भी और हां भी, उनका यही डिस्करेजमेंट मेरे लिए सबसे ज़्यादा एनकरेज़मेंट बन गया, मैंने ठान लिया कि मैं और अच्छा गाऊंगा, और अच्छा गाऊंगा और यही ठानकर मैंने फिल्मी स्टूडियो के चक्कर लगाने शुरू कर दिए’. ‘फिर क्या हुआ बे?’. ‘फिर क्या, चक्कर लगाते, लगाते, लगाते, लगाते, मैं मशहूर म्यूज़िक डायरेक्टर खेमचंद प्रकाश जी से मिल गया’. ‘खेमचंद प्रकाश, अच्छा उन्होंने तेरी आवाज़ सुनी?’ ‘सुनी, और फिल्म ‘ज़िद्दी’ में एक गाना भी गवाया- मरने की दुआएं क्यूं मांगूं, जीने की तमन्ना कौन करे, कौन करे’. ‘ऑर्डर, ऑर्डर, गाना बंद, ये महफ़िल नहीं, कचहरी है, कचहरी’. ‘सॉरी माइ लॉर्ड’. ‘ये बता कि खेमचंद प्रकाश के अलावा तूने किस-किस म्यूज़िक डायरेक्टर को चक्कर दिया?’. ‘चक्कर?, क्या कह रहे हैं जज साहब? आपका भेजा तो ठिकाने है?’. ‘ब, ब, ब, बको मत?’ ‘माफ़ करना जज साहब, मैंने किसी म्यूज़िक डायरेक्टर को चक्कर नहीं दिया, बल्कि उनके चक्कर में पड़कर मेरा भाग्य चक्र चल पड़ा, ये म्यूज़िक डायरेक्टर थे श्री अनिल बिस्वास- मोहब्बत की बस्ती बसाएंगे हम- और दूसरे थे, एसडी बर्मन- जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को और दे जाते हैं यादें तनहाई में तड़पाने को’. ‘हूं समझा, मगर फिर तुझे एक्टिंग शुरू करने की क्या ज़रूरत थी पगले?’. ‘हुं, हुं, हुं, इसके लिए भी आप मेरे बड़े भाई पर केस कीजिए, उन्होंने मुझे ज़बर्दस्ती पकड़कर फिल्म ‘क़नीज़’ में एक छोटा सा रोल दिलवा दिया, और वो रोल ही, ही, ही, ही, वो रोल ही, ही, ही, ही, वो रोल भी क्या? पागल का, जिसमें मैंने आधी मूंछ लगाकर एक गीत भी गाया है’. ‘हूं, तो वो गाना अदालत को सुनाया जाए, हम अपने कान बंद कर लेते हैं, गाओ’. ‘बम, बम, चिक, बम चिक, चिक बम चिक, बम चिक, बम चिक, बम चिक बम बम, बम चिक बम बम, ऐ…’. ‘बंद करो, बंद करो ये भेड़ों की हुंकार, मत भूलो कि ये अदालत है’. ‘सॉरी मी लॉर्ड, मगर आपने तो कान बंद कर रखे थे’. ‘ग़लत, ग़लत मैं एक कान खोलकर सुन रहा था’. ‘ओह’. ‘फिर क्या हुआ?’ ‘हुक्का हुआ’. ‘हुक्का हुआ?’ ‘मेरा मतलब है, ज़िंदगी में जवानी की राहों पर कई चढ़ाव आए और कई उतार भी, और ऐसे उतार कि, ऐसे उतार कि…’. ‘कि क्या?’. ‘कि पीछे पड़ गया इनकम टैक्सम, पीछे पड़ गया इनकम टैक्सम, जय गोविंदम, जय गोपालम, अरे अब क्या नाचे किशोर कुमारम, पीछे पड़ गया इनकम टैक्सम, जय गोविंदम, जय गोपालम, बम कु, बम बम कु, बम कु, बम बम कु’. ‘बंद करो, अब तुम्हारा दर्द मुझसे देखा नहीं जाता, सुना नहीं जाता बे, जवानी की अदालत बर्ख़ास्त की जाती है, सब अपने-अपने घर जाएं’. तो अमीन भाई, अब मैं भी घर चला.
अमीन सयानी : अरे, अभी किशोर-दा, अभी कहां. अभी तो आपका तीसरा साथी बाकी है. जिससे आपने अब तक हमें मिलवाया नहीं. और वो साथी है बुढ़ापा.
किशोर-दा : बुढ़ापा?
अमीन सयानी : हां.
किशोर-दा : कौन सा बुढ़ापा, किसका बुढ़ापा? अमीन भाई, वो तो अभी बहुत दूर है मुझसे. वो जब आएगा तो मैं उससे बातें करूंगा. तब तक मैं बुढ़ापे के बारे में बस, यही कहकर भागूंगा कि… खों, खों, खों, आय हाय रे बुढ़ापा, हाय हाय रे बुढ़ापा, आय हाय से बुढ़ापा, हाय हाय रे बुढ़ापा, ये झुकती क़मर देखो, कमज़ोर नज़र देखो, ये शोख़ हसीनाएं, जो पास कभी आएं तो कहती हैं दादा, दादा, दादा, हाय हाय रे बुढ़ा… पा, आय हाय रे बुढ़ा… पा, हाय हाय रे बुढ़ा… पा, आय हाय रे बुढ़ा… पा. सा रे ग म प ध नी सां. ऐ ए इ ई, ऐ ए इ ई, ऐ ए इ ईईईईई.
अमीन सयानी : वाह, वाह, भई. कितने ख़ुशनसीब हैं हम कि आज रेडियो के इतिहास में पहली बार कि हमने ख़ुद किशोर कुमार से बातचीत की. और इसी बातचीत के साथ ख़त्म होता है ये कार्यक्रम.
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Tags: Birth anniversary, Kishore kumar, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : August 04, 2022, 14:37 IST