रुपौली रिजल्ट: विनिंग कॉम्बिनेशन बन गया डिफीट फैक्टर RJD के लिए अल्टीमेटम!

Rupauli Bypolls Result: रुपौली विधानसभा उपचुनाव के नतीजे बिहार की पॉलिटिक्स के लिए एक खास मैसेज लेकर आया है. रुपौली में जहां जातीय गोलबंदी बिखर गई, वहीं राजद का माय समीकरण भी ध्वस्त हो गया. आखिर रुपौली की राजनीति में ऐसा क्या हुआ जो एक साथ नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की राजनीति धराशायी हो गई? आइये जानते हैं शंकर सिंह की जीत में पप्पू फैक्टर का क्या रोल है?

रुपौली रिजल्ट: विनिंग कॉम्बिनेशन बन गया डिफीट फैक्टर RJD के लिए अल्टीमेटम!
हाइलाइट्स लालू यादव और नीतीश कुमार के सियासी समीकरण में सेंध! एनडीए और इंडिया के लिए रुपौली सीट पर हार बड़ा झटका! निर्दलीय शंकर सिंह की जीत में पप्पू फैक्टर की अहम भूमिका. पूर्णिया. रुपौली विधानसभा उपचुनाव परिणाम ने बड़ा उलटफेर कर दिया है. यहां न तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दांव चला, न ही लालू प्रसाद यादव की रणनीति का प्रभाव पड़ा और न तो तेजस्वी यादव मतदाताओं को गोलबंद कर पाए. खास बात यह भी कि यहां की जनता ने किसी पार्टी पर विश्वास न करते हुए निर्दलीय शंकर सिंह पर अपना भरोसा जताया है. उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जेडीयू उम्मीदवार कलाधर मंडल को कड़ी टक्कर देते हुए जीत दर्ज की है. आरजेडी उम्मीदवार और इस सीट से पूर्व विधायक रहीं बीमा भारती तीसरे नंबर पर चली गईं. लोकसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा उपचुनाव में भी पूर्णिया की जनता ने निर्दलीय उम्मीदवार को अपना आशीर्वाद दिया है. इन नतीजों के बीच रूपौली के मतदाताओं ने सियासी दलों को अपना संदेश भी दे दिया है. खास तौर पर लालू प्रसाद यादव की राजद के लिए तो यह परिणाम अल्टीमेटम जैसा है. बता दें कि रुपौली विधानसभा उपचुनाव फाइनल राउंड की मतगणना के बाद निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह को 67, 779 वोट मिले जबकि जदयू प्रत्याशी कलाधर मंडल ने 59, 568 मत प्राप्त किये. सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि राजद प्रत्याशी बीमा भारती के पक्ष में केवल 30,108 वोट पड़े. जाहिर है कड़े मुकाबले में 8, 211 वोटों की इस जीत से निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह के खेमे में खुशी है, लेकिन दूसरी ओर जदयू और राजद खेमे में मायूसी छाई हुई है. खास तौर पर रुपौली में शंकर सिंह की जीत ने राजद के अपने वोट बैंक (मुस्लिम-यादव) की गोलबंदी के दावे की पोल खोलकर रख दी है. जबकि, रुपौली विधानसभा उपचुनाव का नतीजे में जदयू ने अपनी परंपरागत सीट गंवा दी है. बता दें कि बीमा भारती इस क्षेत्र की बड़ी नेता मानी जाती रहीं और इसी रुपौली सीट से पांच बार की विधायक रही हैं. उन्होंने पहली जीत 2000 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में प्राप्त की थी. 2005 के फरवरी वाले चुनाव में लोजपा के शंकर सिंह के सामने पराजित हो गई थीं. लेकिन, उसी साल अक्टूबर में हुए चुनाव में वह राजद के टिकट पर जीत गईं. वर्ष 2010 में वह जदयू में आ गईं और इस साल जीत हासिल की. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू टिकट पर जीतीं. इस साल 12 फरवरी को जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा में विश्वासमत से जुड़े विवादों के बाद वह चर्चा में आ गईं. मन बदला, पाला बदला मगर नहीं मिली जीत नीतीश कुमार के विश्वासमत के बाद उनका मन बदला तो उन्होंने पाला भी बदल लिया और लालू प्रसाद की राजद में शामिल हो गईं. इसके बाद उन्हें पूर्णिया लोकसभा सीट से टिकट भी मिल गया, लेकिन पप्पू यादव के आगे वह पानी मांगती नजर आईं और चुनाव परिणाम में तीसरे स्थान पर रहीं. हालांकि, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने उनपर भरोसा कायम रखा और राजद ने उन्हें फिर रुपौली से विधानसभा का टिकट दे दिया, लेकिन यहां भी वह तीसरे स्थान पर ही रहीं. लेकिन, सवाल यह कि मजबूत सामाजिक आधार वाले राजद के टिकट पर बीमा भारती क्यों और कैसे हार गईं? पूर्णिया चुनाव में इस इक्वेशन का टूटा मिथक राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि रुपौली में भी राजद का माय यानी (मुस्लिम-यादव) समीकरण पूरी तरह ध्वस्त हो गया. जिस तरह पूर्णिया लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने पप्पू यादव का समर्थन किया था, इसी प्रकार रूपौली विधानसभा में मुस्लिम मतदाताओं ने इस बार राजद का साथ छोड़कर शंकर सिंह को अपना भरपूर समर्थन दिया और रुपौली से पांच बार विधायक रहीं बीमा भारती को हरा दिया. जाहिर है रुपौली विधानसभा और पूर्णिया लोकसभा के चुनाव परिणाम ने राजद के वोट बैंक के दावे को आईना दिखा दिया है, क्योंकि रुपौली विधानसभा के सामाजिक और जातिगत समीकरण जदयू के कलाधर मंडल और राजद की बीमा भारती को सूट करने वाला था. रुपौली की जीत के जश्न हैं तो जख्म भी हैं! बता दें कि बीमा भारती और कलाधर मंडल गंगोता जाति से आती हैं और इस क्षेत्र में इस जाति के मतदाताओं की आबादी सबसे अधिक है. गंगोता समुदाय की आबादी 50 हजार से अधिक, वहीं कुर्मी और कोयरी यानी लव-कुश समुदाय के मतदाता 35 हजार के करीब हैं. मुस्लिम-यादव (M-Y समीकरण) के करीब 50 हजार मतदाता हैं. ये विनिंग फैक्टर के तौर पर देखे जा रहे थे. इसके अतिरिक्त वैश्य मतदाताओं की संख्या 25 हजार और जबकि सवर्ण वोटरों की तादाद भी 25 हजार के करीब है. लेकिन, चुनावी नतीजों में ये समीकरण पूरी तरह से तहस-नहस हो गए और निर्दलीय शंकर सिंह के पक्ष में जमकर वोट पड़े और उनकी जीत हुई. पप्पू फैक्टर से बदला चुनावी समीकरण कहा जा रहा है कि शंकर सिंह की जीत में पप्पू यादव फैक्टर अहम है. दरअसल, पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने मुसलमानों से खुलकर अपील करते हुए कहा कि- ”मैं रुपौली के मुसलमान भाइयों से हाथ जोड़कर आग्रह करता हूं, पैर पकड़ता हूं, रुपौली को चारागाह बनने से रोकिए. पूर्णिया के लिए एक ही काफी है. खासकर पिछड़ी जातियों से भी आग्रह करता हूं रुपौली में एक पर ही भरोसा रखिए. पप्पू यादव ने आगे कहा था कि मैं रुपौली के सभी लोगों से कहता हूं गलत लोगों को मत चुनिएगा. आप 9 महीने के लिए चुनो या 6 महीने के लिए चुनो, लेकिन अपने स्वतंत्र विचार को मत खोइएगा. आप भावनाओं में मत बहिएगा. रुपौली में 40 साल से विकास नहीं हुआ है.” पप्पू यादव की इस अपील के गहरे सियासी मायने थे. पप्पू यादव की ‘खास’ अपील काम कर गई राजनीति के जानकार बताते हैं कि पप्पू यादव की इस अपील में दो बातें सीधे तौर पर समझी जा सकती हैं. पहला-रुपौली को चारागाह बनने से रोकिये… इसे सीधे तौर पर लालू यादव की पार्टी को नहीं जिताने की अपील के तौर पर समझा गया. वहीं, दूसरी ओर उन्होंने यह भी कहा कि- अपने स्वतंत्र विचार मत खोइएगा… इसे निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह के पक्ष में वोट देने का संदेश समझा गया. इसके साथ ही पप्पू यादव ने भावुक अपील करते हुए कहा कि शरीर बेचकर मैं रुपौली का विकास करूंगा. पुल मैं बनाऊंगा, रेल क्रॉस करेगी,एनएच मैं बनाऊंगा. आपको भरोसा है पप्पू यादव पर. जो लोग हमारे पीठ में खंजर भोंक रहे हैं, जिंदगी मेरी जब तक रहेगी, तब तक वैसे लोग मेरे दरवाजे पर नहीं आ पाएंगे. वोटिंग के दिन यही पैटर्न दिखा भी और मुसलमानों ने एकमुश्त शंकर सिंह के पक्ष में जमकर वोट किया. ईबीसी-ओबीसी के बिखराव का लाभ मिला मुस्लिम मतदाताओं की शंकर सिंह के पक्ष में गोलबंदी के बीच दूसरी ओर पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के वोट बीमा भारती और कलाधर मंडल के बीच बंट गए. शंकर सिंह को पप्पू यादव के प्रभाव वाले मुसलमान और अन्य वोटरों के साथ वैश्य और सवर्ण मतदाताओं का खुलकर साथ मिला और उनकी जीत की राह आसान हो गई. बता दें कि पूर्णिया लोकसभा चुनाव में राजद नेता तेजस्वी यादव ने राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को वोट नहीं देने की अपील तक अपने समर्थकों से की थी, लेकिन पप्पू यादव सफल हो गए और तेजस्वी यादव उन्होंने जदयू के संतोष कुमार कुशवाहा को हराया. राजद प्रत्याशी बीमा भारती को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा था. पप्पू यादव ने शंकर सिंह की मदद क्यों की? बताया जा रहा है कि शंकर सिंह जदयू की विधायक लेसी सिंह के विरोधी गुट के कहे जाते हैं और वे पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह के करीबी भी हैं. पूर्णिया संसदीय चुनाव में पप्पू यादव की जीत में शंकर सिंह के समर्थन की बड़ी भूमिका रही है. बता दें कि पप्पू यादव ने पप्पू सिंह से मिलकर अपने लिए समर्थन की अपील की थी. राजपूत मतदाताओं के साथ ही अन्य सवर्ण मतदाताओं का अच्छा समर्थन रखने वाले पप्पू सिंह ने पप्पू यादव की अप्रत्यक्ष तौर पर मदद की थी. वहीं, इसमें शंकर सिंह की भूमिका भी काफी रही थी. ऐसे में शंकर सिंह की जीत में पप्पू यादव की राजनीतिक भूमिका को देखा जा रहा है. Tags: Assembly by election, Assembly bypoll, Bihar News, Bihar politicsFIRST PUBLISHED : July 13, 2024, 18:47 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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