लू-भयंकर गर्मी का सेहदमंद जवाब है चने का सत्तू जानें बनाने और पीने का तरीका
लू-भयंकर गर्मी का सेहदमंद जवाब है चने का सत्तू जानें बनाने और पीने का तरीका
लू और भयंकर गर्मी से भिंडने के लिए बहुत से लोग कोल्ड डिंक्स, आइसक्रीम की मदद लेते हैं. लेकिन इससे बेहतर उपाय है चने का सत्तू. चने का सत्तू ठंढे पानी में घोल कर पीना ज्यादातर लोगों को भाता है. बहुत से लोग भुने चने का पाउडर बना कर उसे सत्तू के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ये पाउडर सत्तू नहीं है.
गर्मी अपने उरूज पर है. लग रहा है हवाएं लपट लेकर चल रही हैं. लेकिन इस बेरहम मौसम में काम पर निकलना ज्यादातर लोगों की मजबूरी है. ऐसे में लू लगने का अंदेशा बना ही रहता है. इससे निपटने के बहुत से उपाय सुझाए बताए जा रहे हैं. इसमें एक सरल और सस्ता उपाय है सत्तू का पतला घोल पीना. सत्तू अब हिंदी भाषी लोगों के लिए अपरचित नहीं रह गया है. उत्तर भारत के तकरीबन सभी राज्यों में लोग इससे परिचित हो गए हैं. बहुत से लोग सत्तू के नाम पर भुने चने का पाउडर बना कर उसे ही पीते हैं. वैसे तो ये किसी तरह से नुकसानदेह नहीं है लेकिन सत्तू का असली स्वाद सत्तू में ही आता है.
कैसे तैयार होता है सत्तू
दरअसल, सत्तू बनाने की एक प्रक्रिया है. सत्तू बनाने के लिए देशी चने को पहले कम से आधे से एक घंटे तक भिगोया जाता है. फिर उसे निकाल कर रात भर वैसे ही रख दिया जाता है. अगले दिन चने को भाड़ में भूना जाता रहा है. यहां ये खास बात है कि बिहार और पूरबी उत्तर प्रदेश में ये चना गर्म किए जा रहे बालू में भुना जाता है. नमक में नहीं. चने की भूनाई इतनी होनी चाहिए कि चना जले भी न, और उसमें एक सोंधापन आ जाय. अब भुनने वाले ही उसे रगड़ कर छिलका और चने में चिपके बालू को बहुत ही सफाई से अलग कर देते रहे हैं. बालू चने में कत्तई नहीं लगा रहना चाहिए. इसके बाद रिवायती तौर पर तो इसे हांथ से चलाने वाली चक्की, जिसे पूरबी बोलियों में जांत या जांता कहा जाता है, उसमें पीसा जाता था.
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कहने की जरूरत नहीं है कि अगर बालू का एक भी कण उसमें रह गया तो सारा सत्तू खराब हो जाएगा. मशीनी चक्की में उसे तभी पिसाया जा सकता है जब चक्की को खोल कर उसके पत्थर के पाट पूरी तरह साफ किए गए हों. अगर चक्की के पाटों में जरा भी आटा लगा रह जाएगा तो सत्तू का स्वाद बिगड़ जाएगा. इसी वजह से सामान्य चक्कियों में सत्तू की पिसाई नहीं की जा सकती.
घोलें और पी ले
अब ये खाने या पीने के लिए तैयार है. खाने की रिवायत को भोजपुरी इलाकों में खूब रही है. इसके लिए सत्तू में नमक वगैरह मिला कर इसे आटे की तरह सान कर चटनी, अचार और प्याज, मिर्च के साथ खाया जाता रहा है. लेकिन पानी में घोल कर इसे पीना पिछले कुछ समय में ज्यादा लोकप्रिय हुआ है. यहां तक कि सत्तू के घोल को सत्तू की लस्सी के नाम से बेचते हुए महानगरों तक में ठेले वाले दिख जाएंगे. वैद्य पं. अच्युत त्रिपाठी
वैद्य जी की राय
सत्तू का घोल बनाने के लिए पानी में सत्तू को मिला कर उसमें बारीक कटी प्याज, भुना जीरा, पकाए गए हरे आम और पुदीना की चटनी, नमक वगैरह मिलाया जाता है. बहुत से लोग पानी और सत्तू में मीठा मिला कर भी पीते हैं. दोनों तरीके से ये फायदेमंद है. वैद्य और राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ के वरिष्ठ गुरु पंडित अच्युत त्रिपाठी का कहना है सत्तू में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होता है. अगर उसमें छिलके भी हों तो कैल्शियम भी मिलेगा. साथ में आम पुदीने में लू से बचाव का गुण होता है. अगर किसी को हाइपरटेंसन वगैरह न हो तो नमक के साथ इन सब को मिला कर पीने से बार-बार पानी पीने की इच्छा होगी और पानी का आधिक्य लू से बचाएगा. उनका ये भी कहना है कि अगर किसी को डाइबिटिज न हो और वो सत्तू में मीठा मिला कर पीता है तो उसे भी फायदा ही होगा. उनका कहना है कि बहुत से लोग इसमें जौ का सत्तू भी मिला कर पीते हैं. जौ पचने में आसान है, इसलिए उससे भी लाभ है. उनका खास जोर है कि घोल पतला ही बनाना चाहिए. गर्मी से बचने के लिए वे छाछ का सेवन करने पर भी जोर देते हैं.
सत्तू का प्रचार प्रसार भोजपुरी भाषियों के बाद सबसे ज्यादा बंगाल में हुआ. बंगाल के कई ब्रांड इस कदर लोकप्रिय हैं कि उनकी बिक्री देश भर में होती है. हालांकि शुद्धता के लिए बहुत से लोग चने का पाउडर बना कर उसे पीते हैं. इससे कोई नुकसान नहीं है लेकिन वो सत्तू नहीं बल्कि सत्तू का विकल्प है. खादी ग्रामोद्योग भी सत्तू तैयार करा कर अपनी दुकानों पर बेचता है. उनका सत्तू ज्यादातर शुद्ध और स्वादिष्ट होता है.
Tags: Health benefit, Lifestyle, Patna City, Summer FoodFIRST PUBLISHED : May 24, 2024, 14:56 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed