1800 ग्राम जहर से कमाया 236 करोड़ मुनाफा इरुला जनजाति फिर भी गरीबी से बदहाल

Snake Venom Extraction: तमिलनाडु की इरुला जनजाति देश में सांपों के काटने से लोगों की जिंदगी बचाने में एक बड़ी भूमिका निभा रही है. यह देश में 80 फीसदी स्नेक एंटी वेनम की सप्लाई करती है. इरुला लोगों की सहकारी समिति ने एक साल में 1800 ग्राम सांपों का जहर बेचकर 2.36 करोड़ मुनाफा कमाया है. मगर समुदाय अब भी गरीब है.

1800 ग्राम जहर से कमाया 236 करोड़ मुनाफा इरुला जनजाति फिर भी गरीबी से बदहाल
चेन्नई. तमिलनाडु की एक जनजाति इरुला देश में सांपों के काटने का इलाज करने के लिए 80 स्नेक एंटी वेनम की सप्लाई करती है. जिसके कारण देश में हजारों लोगों की जान बचाई जा रही है. मगर यह जनजाति गरीबी का इलाज खोजने के लिए लगातार जूझ रही है. पिछले 3 साल में 1800 ग्राम सांपों का जहर निकालकर और बेचकर इरुला जनजातियों की सहकारी संस्था ने 2.36 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है. इसके कारण पूरी दुनिया की निगाहें इस संस्था की ओर गई हैं. तमाम सफलताओं के बावजूद चेन्नई के बाहरी इलाके में मौजूद इरुला आदिवासियों की यह सहकारी समिति अनिश्चित भविष्य का सामना कर रही है. अपनी सफलताओं की तमाम कहानी के बावजूद इरुला आदिवासी जहर निकालने की एक पुरानी तरकीब का उपयोग करते हैं. इस बीच उनके विशेष के जहर की मांग बढ़ रही है. साथ ही उन्नत एंटी-स्नेक वेनम सीरम के प्रोडक्शन में पूरी दुनिया में वैज्ञानिक प्रगति हो रही है. तमिलनाडु का इरुला समुदाय, सांपों और जहरीले जानवरों को पकड़ने में अपने अनूठे कौशल के लिए मशहूर है. भारत में इरुला समुदाय सांपों के जहर को बेअसर करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले लगभग 80 फीसदी विष की सप्लाई करके पब्लिक हेल्थ में बड़ी भूमिका निभाता है. पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल उनकी पारंपरिक प्रथा, इरुला स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसाइटी के जरिये 46 साल से चली आ रही है. 2021 की तमिल फिल्म जय भीम के बाद उनके तरीके को अधिक बड़े पैमाने पर जाने जाने लगा. जिसमें उनके सांप पकड़ने के कौशल और अधिकारियों और पुलिस से उन्हें मिलने वाली चुनौतियों को दिखाया गया था. हाल ही में इरुला समुदाय के दो लोगों को पद्म श्री पुरस्कार से उनके कौशल की मान्यता मिली. इसके बावजूद, इरुला जनजाति को सांप के जहर निकालने के अपने पारंपरिक तरीकों को बनाए रखने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. दिल्ली का वह मेडिकल कॉलेज-अस्पताल, रात छोड़ दीजिए…दिन में ही बन जाता ‘मयखाना’, डर के साये में जीती हैं लेडी डॉक्टर्स सांपों का जहर निकालने में ऑटोमेटिक तरीके बढ़े सांपों के जहर को बाहर निकालने के तौर-तरीकों में ऑटोमेटिक तरीकों को बढ़ने और क्रूरता-मुक्त टेस्ट की ओर बदलाव ने भी इरुला समाज को बदलावों के लिए तैयार नहीं किया है. इसके अलावा इरुला समुदाय को वन विभाग से दुश्मनी का सामना करना पड़ रहा है, जो सांपों को वन्यजीव मानता है. देश में सांप के काटने से होने वाली मौतों की संख्या देश में औसतन सालाना 50,000 से ज्यादा है. लगभग इरुला जनजाति के 350 लोग कांचीपुरम, चेंगलपट्टू और तिरुवल्लूर जिलों में और उसके आसपास के खेतों से ‘बड़े चार’ सांपों-रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर, कॉमन क्रेट और स्पेक्टेक्लेड कोबरा को पकड़ते हैं. इरुला हर सांप से तीन से चार बार जहर निकालते हैं और 21 दिनों के बाद उसे वापस जंगल में छोड़ देते हैं. Tags: Cobra snake, Snake rescue team, Snake Venom, Tribal CultureFIRST PUBLISHED : September 12, 2024, 16:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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