Kanchanjunga Express Accident: क्या होता है टी/ए 912 जिसकी हो रही है चर्चा
Kanchanjunga Express Accident: क्या होता है टी/ए 912 जिसकी हो रही है चर्चा
Kanchanjunga Express Train Accident: सिग्लन सिस्टम खराब होने की वजह से स्टेशन मास्टर द्वारा मालगाड़ी के लोकोपायलट को टी/ए 912 निर्देश गए थे. यह क्या होता है और इससे ट्रेनों का संचालन कैसे होता है, बता रहे हैं रेलवे बोर्ड के रिटायर मेम्बर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदीप कुमार-
नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर के करीब एक दिन पूर्व हुई कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे की वजह अभी सामने नहीं आयी है. यह मानवीय भूल है या तकनीकी चूक, रेलवे इसकी जांच करा रहा है. सिग्लन सिस्टम खराब होने की वजह से स्टेशन मास्टर द्वारा मालगाड़ी के लोकोपायलट को टी/ए 912 निर्देश गए थे. इसे लेकर चर्चा हो रही है. यह क्या होता है और इससे ट्रेनों का संचालन कैसे होता है, बता रहे हैं रेलवे बोर्ड के रिटायर मेम्बर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदीप कुमार-
रेल मंत्रालय के अनुसार इस रूट पर सुबह करीब 5.50 बजे ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम खराब हो गया था. आम लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि जब सिग्नल सिस्टम खराब हो गया था, तो ट्रेनों का संचालन कैसे होता है?
रेलवे बोर्ड के रिटायर मेम्बर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदीप कुमार बताते हैं कि इन स्थितियों में मैनुअल सिस्टम को ऑपरेट किया जाता है और इसके लिए टी/ए जारी किया जाता है. हादसे में मालगाड़ी के लोकोपायलट को टी/ए 912 जारी किया गया है. इसका नंबर अलग-अलग जोनों में अलग-अलग होता है.
स्टेशन मास्टर ने जारी किया था टी/ए 912
कंचनजंगा रेल दुर्घटना में रंगापानी रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर ने टी/ए 912 यानी To pass traffic the defective signal in को जारी किया था. प्रदीप कुमार ने बताया कि जब किसी रूट पर ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम खराब पर होता है तो टी/ए जारी होता है और चालक को मैनुअल सिस्टम के तहत ही गाड़ी चलानी होती है.
सिग्लन पार करने का अधिकार दिया जाता है
रेलवे बोर्ड के रिटायर मेम्बर के अनुसार टी/ए 912 एक लिखित प्राधिकार है. जिससे के तहत लोकोपायलट को सिग्नल पार करने के लिए अधिकृत किया गया था. यह ट्रेन नंबर 13174 (सियालदह कंचनजंगा एक्सप्रेस) रंगापानी स्टेशन और छत्तरहाट के लिए जारी किया गया. ऐसा ही टी/ए 912 मालगाड़ी को भी रंगापानी रेलवे स्टेशन और छत्तरहाट के बीच के लिए जारी किया गया था.
यहां पर टी/ए 912 के उल्लंघन की आशंका
रेलवे बोर्ड की चेयरपर्सन ने लोकोपायलट द्वारा सिग्नल के उल्लंघन की बात कही है. इस संबंध में यह जानना जरूरी है कि रेलवे के नियमों अनुसार जब लोकोपायलट को टी/ए 912 दिया जाता है और उसे जब रेड सिग्नल को पार करना होता है, तो 10 किमी प्रति घंटे की स्पीड होनी चाहिए. इसके बाद सिग्नल के पहले रुकना होता है. दिन के समय सिग्नल पर 1 मिनट और रात के समय 2 मिनट रुकना होता है, आगे ट्रैक देखें और फिर 10 किमी प्रति घंटे की स्पीड से दोबारा चलाएं.
दूरी बनाए रखने के हैं नियम
साथ ही लोकोपायलट को यह सुनिश्चित करना होता है कि सिग्नल पार करने के बाद उसकी ट्रेन और पिछली ट्रेन या लाइन पर किसी रुकावट के बीच कम से कम 150 मीटर या दो स्पष्ट ओएचई स्पैन (Over Head equipment) की दूरी बनी रहे.
ग्रीन सिग्लन पर भी रुकना होता है
रेलवे मैनुअल के अनुसार जिस ट्रेन को टी/ए 912 दिया गया है. उसे सभी सिग्लनों पर रुकना होता है. भले ही बीच में ग्रीन सिग्लन क्यों न दिख रहा हो. यह निर्देश उस स्टेशन तक पड़ने वाले सिग्लन के लिए हैं, जहां तक का टी/ए 912 दिया गया है. इस बीच आटोमैटिक सिस्टम काम भी करने लगता हो तो भी उसे टी/ए 912 के तहत जारी रेल मैनुअल का पालन करना होता है.
दो तरह के सिग्नलिंग सिस्टम
ट्रेनों के बीच की दूरी तय करने के लिए दो तरह के सिस्टम काम कर रहे हैं. पहला एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम और दूसरा ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम है. भारतीय रेलवे धीरे-धीरे ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम में शिफ्ट हो रहा है. एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम पुराना है. हालांकि अभी भी तमाम जगह चल रहा है.
क्या है एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम
एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम के तहत ट्रेनों के बीच की दूरी स्टेशनों के बीच की दूरी पर निर्भर करती है. उदाहरण के लिए जब एक ट्रेन अगले स्टेशन को पार कर जाती है तो पहले स्टेशन पर खड़ी ट्रेन को सिग्लन मिलता है. इस सिस्टम में स्टेशनों के बीच दूरी चाहे एक किमी. हो, या कई किमी., इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. इस तरह दो स्टेशनों के बीच कोई ट्रेन नहीं होती है..
क्या है ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम
इस सिस्टम के तहत दो स्टेशनों के बीच में भी कई सिग्नल लगे होते हैं. ये सिग्लन ऑटोमैटिक काम करते हैं. इनकी दूरी तय रहती है लेकिन अलग-अलग सेक्शन में जरूरत के अनुसार होती है. जहां पर ट्रेनों का ट्रैफिक अधिक है और किसी तरह की कोई तकनीकी समस्या नहीं है तो कम दूरी के अंतराल में सिग्लन लगे हैं और जहां ऐसी कोई समस्या है तो अधिक दूरी पर सिग्लन लगे हुए हैं. इस हादसे में ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम खराब हो गया था और एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम के तहत मैनुअल चलाया जा रहा था.
इसलिए लगाए जाते हैं अंतिम कोच पर ब्लिंकर
आमतौर पर ट्रेन के सबसे पीछे लगे बोगी में ब्लिंकर बल्ब लगाए जाते हैं जिससे कि मौसम खराब होने की स्थिति अथवा रात में भी यदि कोई ट्रेन खड़ी है तो दूर से दिख जाए. जिस ट्रैक पर यह हादसा हुआ है वह ट्रैक पूरी तरह से कमोबेश सीधी ट्रैक है.
Tags: Indian railway, Indian Railway news, Train accidentFIRST PUBLISHED : June 18, 2024, 16:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed