ग्रामीण भारत नौकरी ही नहीं पढ़ाई के लिए भी विदेश जाने की होड़ में शामिल लेकिन क्यों जानें

भारतीय छात्रों के लिए यूके और अमेरिका की तुलना में कनाडा में स्नातक के बाद काम और निवास कार्यक्रम ज्यादा लचीला है. यही वजह है कि कनाडा के विश्वविद्यालय भारत के ग्रामीण इलाकों में विदेशी शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अप्लाई बोर्ड और आईडीपी जैसी अंतरराष्ट्रीय सलाहकार कंपनियों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं.

ग्रामीण भारत नौकरी ही नहीं पढ़ाई के लिए भी विदेश जाने की होड़ में शामिल लेकिन क्यों जानें
कभी खुशी कभी ग़म फिल्म में जॉनी लीवर उसकी पत्नी और बेटा एक जगह संयोग से रितिक रोशन को मिलते हैं, वह उनसे जानना चाहता है कि क्या उसके बड़े भाई का उन्हें कुछ पता है. काफी देर मशक्कत करने के बाद भी जब जॉनी लीवर और उसकी पत्नी मुंह नहीं खोलते हैं तो उनका बेटा बोलता है, वह लोग अमेरिका में हैं, और आगे कहता है कि मैं भी एक दिन जाऊंगा. विदेश जाना, वहां पर बसना, पढ़ना अधिकांश भारतीयों का सपना रहा है, लेकिन पहले यह सिर्फ चंद लोगों तक ही सीमित था, क्योंकि विदेश जाकर पढ़ना और वहां का खर्च वहन करना हर किसी के बस की बात नहीं होती थी. लेकिन हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि अब ग्रामीण भारत के लोग भी अपना सब कुछ दांव पर लगाकर बच्चों को विदेश पढ़ने भेज रहे हैं. इसके पीछे जो सबसे अहम वजह है, वह है भारत में दाखिले से लेकर रोजगार तक कम होती संभावनाएं. पंजाब तो विदेश जाने वालों का गढ़ रहा है. पहले यहां से लोग काम पर जाते थे, लेकिन अब पढाई करने के लिए भी जा रहे हैं. खास बात यह है कि इसमें वह लोग शामिल हैं, जो किसी संपन्न परिवार से नहीं है. यही वजह है कि दिल्ली से महज 250 किमी की दूरी पर मौजूद अंबाला में दर्जनों वीजा सलाहकारों का व्यवसाय पनप गया है. कई बच्चे ऐसे होते हैं जिनके परीक्षा में ग्रेड कम आते हैं तो उन्हें किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिल पाता है. दिल्ली का हाल तो सभी को पता है, यहां तो यह आलम है कि कई कॉलेज की कट ऑफ लिस्ट 100 तक गई है. ऐसे में सामान्य नंबर हासिल करने वाले छात्रों के पास विकल्प के नाम पर कुछ नहीं बचता है. इसके अलावा भले ही विदेश जाकर पढ़ाई में बहुत खर्च आता हो, लेकिन ज्यादातर छात्रों को यह भरोसा रहता है कि वहां पर पार्टटाइम काम करके वह उस खर्चे की भरपाई पढ़ाई के दौरान ही कर लेंगे. कई देशों में कोविड पाबंदी हटाए जाने के बाद से ही, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूके, आयरलैंड और न्यूजीलैंड जैसे देशों में 2022 की शुरूआत में जाने वाले छात्रों की संख्या करीब 10 लाख थी, जो सरकारी और औद्योगिक अनुमान के हिसाब से महामारी से पूर्व की तुलना में दोगुनी है. ऐसे में कई कंसलटेंसी हैं, जो इंग्लिश में प्रवीणता परीक्षण, पाठ्यक्रम चयन की सेवा, वीजा आवेदन प्रक्रिया, यात्रा और यहां तक की पार्ट-टाइम काम के लिए प्लेसमेंट की व्यवस्था भी करती है. रॉयटर्स के मुताबिक सिडनी में केटरियोना जैक्सन जो ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय की कार्यकारी अधिकारी हैं, उनका कहना है कि वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया में 76000 छात्र अध्ययनरत हैं, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद इसकी संख्या बढ़ने की उम्मीद है. कई लोग देश में घटते रोज़गार और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वीजा प्रक्रिया में ढील दिए जाने की वजह से छोटे कोर्स में आवेदन कर रहे हैं. विदेशों में शिक्षा का बाज़ार एक अनुमान के मुताबिक 30 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 तक 80 बिलियन डॉलर तक जा सकता है. इस मामले में वीजा कंस्लटेंट का कहना है कि भारत में निजी शिक्षा के दाम में बढ़ोतरी, नौकरी की घटती संभावनाओं ने हजारों परिवार अपनी संपत्ति गिरवी रखकर और लोन लेकर बच्चों को विदेश पढ़ने भेज रहे हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि इस साल डॉलर के मुकाबले रुपए में 7 फीसद की गिरावट आने के बाद बावजूद परिवार बच्चों को बाहर भेजने की हिम्मत कर रहे हैं. लुभावनी उम्मीद कई विदेशी विश्वविद्यालय अपने स्थानीय साझेदारों के साथ मिलकर महंगे पांच सितारा होटलों में शिक्षा मेला आयोजित कर रहे हैं, इसके साथ ही वर्चुअल सत्रों के जरिए भी छात्रों को लुभाया जा रहा है. रिपोर्ट बताती है कि ऐसे ही एक शिक्षा मेले में चंडीगढ़ के एक महंगे होटल में ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से आए 40 विश्वविद्यालयों में संभावनाएं तलाशने के लिए करीब 500 से ज्यादा छात्र इकट्ठा हुए थे. इंटरनेट की सुविधा बढ़ जाने की वजह से वीजा कंसलटेंसी भी ग्रामीण क्षेत्रों में नई संभावनाएं तलाश रही हैं. और अब पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत में करीब 30 करोड़ छात्र स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और एक बड़ी संख्या उच्च शिक्षा प्राप्त करने की दिशा में है. वहीं भारत में सभी युवाओं को शिक्षा मुहैया कराने के लिए पर्याप्त कॉलेज नहीं है, साथ ही रोज़गार की कमी भी एक बड़ी समस्या है. छात्रों के आकर्षित होने की वजह कोविड के बाद से ही चीनी छात्रों की संख्या में कमी आई है, जिस वजह से भारत की ओर सभी का ध्यान जा रहा है और यह बात यहां के छात्रों के लिए भी एक सुनहरा अवसर है. इसके साथ ही भारतीय छात्रों के लिए यूके और अमेरिका की तुलना में कनाडा में स्नातक के बाद काम और निवास कार्यक्रम ज्यादा लचीला है. यही वजह है कि कनाडा के विश्वविद्यालय भारत के ग्रामीण इलाकों में विदेशी शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अप्लाई बोर्ड और आईडीपी जैसी अंतरराष्ट्रीय सलाहकार कंपनियों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं. यह एजेंसी साल भर में करीब 8 से 10 मेलों का आयोजन करती हैं, जिसमें सितंबर में होने वाला एक बड़ा सम्मेलन और मई के लिए एक बड़ा सम्मेलन शामिल है. यही नहीं कनाडा जाने की एक वजह यह भी है कि यहां के शिक्षा संस्थान यूके, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की तुलना में काफी सस्ते भी हैं. कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्नातक ट्यूशन फीस औसतन 20 लाख रू सालाना होती है. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Aatmanirbhar Bharat, Canada, EducationFIRST PUBLISHED : September 07, 2022, 14:32 IST