दुर्घटना मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इसका निर्धारण करना बहुत कठिन
दुर्घटना मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इसका निर्धारण करना बहुत कठिन
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि गंभीर चोटों के परिणामस्वरूप स्थायी अपंगता वाली दुर्घटना के मामलों में मुआवजा निर्धारण करना बेहद कठिन है. यह कभी भी सटीक विज्ञान नहीं हो सकता. व्यक्ति के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसके लिए मुआवजे की संभावना को बाहर रखने का कोई औचित्य नहीं है.
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को कहा कि गंभीर चोटों के परिणामस्वरूप स्थायी अपंगता वाली दुर्घटना के मामलों में व्यक्ति के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसके लिए मुआवजे की संभावना को बाहर रखने का कोई औचित्य नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत द्वारा मुआवजे के निर्धारण की प्रक्रिया अनिवार्य रूप से ‘बहुत कठिन कार्य’ है और यह कभी भी सटीक विज्ञान नहीं हो सकता है. अदालत ने कहा कि विशेष रूप से चोट और विकलांगता के दावों में पूर्ण मुआवजा शायद ही संभव है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने जुलाई 2012 में कर्नाटक में एक सड़क दुर्घटना के कारण 45 प्रतिशत तक स्थायी अपंगता का सामना करने वाले एक व्यक्ति को दिए गए मुआवजे को बढ़ाकर 21,78,600 रुपये कर दिया.
पीठ ने 71 पन्नों के अपने फैसले में कहा, ‘हमने विभिन्न न्यायाधिकरणों के कई आदेशों पर गौर किया है और दुर्भाग्य से विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा इसकी पुष्टि की गई है, यह देखते हुए कि दावेदार गंभीर चोटों के परिणामस्वरूप स्थानीय अपंगता वाली दुर्घटना के मामलों में भविष्य की संभावनाओं के लिए मुआवजे का हकदार नहीं है. यह कानून की सही स्थिति नहीं है.’ पीठ ने कहा, ‘इस तरह की संकीर्ण व्याख्या अतार्किक है क्योंकि यह दुर्घटना के मामलों में जीवित बचे पीड़ित के जीवन में आगे बढ़ने की संभावना को पूरी तरह से नकारती है-और पीड़ित की मृत्यु के मामले में भविष्य की संभावनाओं की ऐसी संभावना को स्वीकार करती है.’
मुआवजे को 3,13,800 रुपये बढ़ाकर 9,26,800 रुपये कर दिया था
शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के अप्रैल 2018 के फैसले के खिलाफ सिदराम नामक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाया, जिसने बेलगाम में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए मुआवजे को 3,13,800 रुपये बढ़ाकर 9,26,800 रुपये कर दिया था. पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण ने याचिका दायर करने की तारीख से भुगतान की प्राप्ति की तारीख तक छह प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 6,13,000 रुपये का मुआवजा दिया था. उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए, अपीलकर्ता ने मामले में मुआवजे को और बढ़ाने का आग्रह किया. पीठ ने कहा कि मोटर वाहन मुआवजे के दावों का आकलन करने में शीर्ष अदालत द्वारा हमेशा सिद्धांत का पालन किया जाता है ताकि पीड़ित को सुविधाओं और अन्य भुगतानों के नुकसान के लिए अन्य क्षतिपूर्ति निर्देशों के साथ दुर्घटना से पहले की स्थिति में रखा जा सके. पीठ ने कहा, ‘गंभीर चोटों वाली दुर्घटना के मामलों में स्थायी अपंगता के परिणामस्वरूप भविष्य को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की संभावना को बाहर करने का कोई औचित्य नहीं है.’
दर्द और पीड़ा को गैर-आर्थिक नुकसान के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा
पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से संकेत मिलता है कि दुर्घटना के कारण अपीलकर्ता शरीर के निचले हिस्से में पक्षाघात का शिकार हुआ. अदालत ने यह भी कहा कि दुर्घटना के समय अपीलकर्ता 19 वर्ष का था. पीठ ने शीर्ष अदालत के पूर्व के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उसका मानना है कि पीड़ित की काल्पनिक आय को साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी सबूत पेश करना जरूरी नहीं है और अदालत उनकी अनुपस्थिति में भी ऐसा कर सकती है. पीठ ने कहा कि दर्द और पीड़ा को गैर-आर्थिक नुकसान के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा क्योंकि यह अंकगणितीय रूप से गणना करने में अक्षम है.
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Tags: Compensation, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : November 16, 2022, 23:24 IST