Opinion: प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी सेवा के अभूतपूर्व 21 साल
Opinion: प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी सेवा के अभूतपूर्व 21 साल
Narendra Modi: आज से ठीक 21 साल पहले यानि 7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. उसके बाद 21 साल तक देश की राजनीति में जो हुआ वो अपने आप में इतिहास बन चुका है.
आज से ठीक 21 साल पहले यानि 7 अक्टूबर 2001 को नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. उसके बाद 21 साल तक देश की राजनीति में जो हुआ वो अपने आप में इतिहास बन चुका है. 4 अक्टूबर को नरेंद्र मोदी सर्वसम्मति से बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गए. तत्कालिन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल पद छोड़ने को तैयार नहीं थे, लेकिन तब बीजेपी आलाकमान का मानना था कि भूंकप और राहत के मुश्किल दौर से निपटने में सफल नहीं रहे थे. इसलिए पहले बीजेपी महासचिव नरेंद्र मोदी को राहत और पुनर्वास के लिए बनी संचालन समिति का अध्यक्ष बना कर गुजरात भेजा गया, जहां उन्होंने पूरी अनहोनी और आम आदमी की मुश्किलों को करीब देखा, जाना और उन्हें उबारने में भी लगे रहे. प्रचारक के तौर पर लोकप्रिय तो थे ही, लेकिन जब मुश्किल की घड़ी आयी तो सीधे जनता के बीच जाकर उनकी मुश्किलों का समाधान ढूंढने की कला आलाकमान को भा गई और उन पर गुजरात सीएम की जिम्मेदारी सौंप दी गई.
वैसे एक पुरानी बात याद दिला दें कि कैसे उनकी राह मुश्किल बनाने की कोशिश की गई? कैसे उनके खिलाफ बगावत के बिगुल बजे? कैसे उनकी छवि बिगाडने की कोशिश की गयी? कैसे अपने पहले विधानसभा चुनावों में अपनी पसंद की सीट छोड़ कर राजकोट-2 पर जाना पड़ा था? ये सीट भी सीएम मोदी के लिए वजुभाई वला ने खाली की थी. कहानी बहुत ही लंबी है, उसमे जाने से बेहतर ये होगा कि हम इस बात की चर्चा करें कि तमाम मुश्किलों और बाधाओं के बीच कैसे जनसेवा की सीधी राह पकड़ कर सीएम मोदी आगे बढते चले गए. ये विरोधियों को तब आभास हुआ होगा जब बतौर पीएम पद के दावेदार उनकी अपार लोकप्रियता रैलियों और रोड शो में नजर आने लगी थी, लेकिन जो करीब से जानते थे उन्होंने तो सीएम मोदी को तिनका तिनका जोड़ कर जनता से जुड़ते देखा था. पहले गुजरात के सवा पांच करोड़ जनता के लिए और अब 130 करोड़ भारतीयों के लिए जब वो अपने समर्पण दिखाते हैं तो दूर दूर तक कोई विकल्प नजर नहीं आता है. लोकप्रियता का आलम ये है कि ये चुनाव दर चुनाव बढ़ती ही जा रही है.
मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद सीएम मोदी ने अपनी पूरी बाबूशाही को अपनी तरह टेक-सेवी बनाने की प्रक्रिया शुरु कर दी. शपथ लेने के बाद पहले ही दिन उन्होंने 10 जिला कलेक्टरों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग की. पहली बार ऐसा हुआ कि उनका किसी मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह भी वेब पर लाईव गया था. 7 अक्टूबर 2022 को भारतीय लोकतंत्र की चुनावी राजनीति में पीएम मोदी ने 21 साल पूरे कर लिए. इन दो दशकों की खास बात ये है कि इनमें मोदी के विचार यानि आइडिया ऑफ मोदी का विस्तार हुआ है. 130 करोड़ भारतीयों की सेवा को समर्पित 21 साल की इस महत्वपूर्ण यात्रा को समझने के लिए ये जान लेना जरुरी है, कि मोदी मैजिक क्या है और वो कैसे सफलता के नए नए पैमाने स्थापित करता जा रहा है.
2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से ठीक पहले वाराणसी की एक ठंढ के मौसम की आधी रात को रेलवे स्टेशन पर ठिठुरते यात्री अपनी ट्रेनों का इंतजार कर रहे थे, तब उन्होंने जो देखा, उन्हें तो यकीन तक करना मुश्किल हो रहा था. दरअसल वाराणसी के दौरे पर वहां रुके पीएम मोदी आधी रात को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ पैदल स्टेशन पर चले आ रहे थे. एक शख्स अपने छोटे बच्चे को गोद में लिए ट्रेन का इंतजार कर रहा था जब पीएम मोदी ने उसे अपने पास बुलाया और उस बच्चे से चुहल की. पीएम मोदी ने छोटे बच्चे से पुछा कि तुम रात को सोते नहीं क्या? यही सवाल तो देश की जनता के मन में भी कौंध रहा है कि आखिर हमारा ये पीएम भी कब सोता है? आखिर दिन पर के कार्यक्रमों को देर शाम तक गंगा आरती में बीजेपी के शीर्ष नेताओं और मुख्यमंत्रियों के साथ शामिल हुए तो किसी ने सपने में भी नहीं सोंचा होगा कि पीएम के लिए रात अभी बाकी थी. वाराणसी में हुए विकास कार्यों का जायजा भी लेना था जो कि दिन में वहां की जनता को मुश्किल में डालता. इसलिए निकल पड़े रात बारह बजे वाराणसी की सड़कों पर पैदल.
एक और बाकया याद आ रहा है कि साल 2014 में लोकसभा चुनावों के ठीक पहले मैं अहमदाबाद में उनका इंटरव्यू कर रहा था तो मेरा पहला सवाल ही यही था कि सिर्फ 4 घंटे में अपनी नींद पूरी कर लेना आसान नहीं होता. आखिर इतनी शक्ति और उर्जा वो कहां से लाते हैं? उन्होने एक छोटा सा ही जवाब दिया था कि जब जनता को हक दिलाने की चिंता हो और देश को विकास की राह पर डालने का लक्ष्य तो दिन के 24 घंटे भी कम ही पड़ते हैं. यही संवाद जाहिर कर देता है पीएम मोदी पूरे मिशन का मकसद क्या है.
गरीबों और वंचित शोषित समाज के पिछड़े वर्गों को प्राथमिकता
संवैधानिक पद पर बैठने की शुरुआत से ही कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए नरेन्द्र मोदी ने कमर कस ली थी. उज्जवला योजना के तहत गैस सिलिंडर, जनधन योजना के तहत गरीबों और किसानों के खासे में सीधा पैसा, पीएम आवास योजना में पक्के घर, स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहरों और गांवों के घरों में पक्के शौचालय बनाना, 100 से ज्यादा अति पिछड़े एसपिरेशनल जिलों के विकास की योजना तैयार करना, देश के हर नागरिक के घर में बिजली का बल्ब जलाना-ये सूची अंतहीन है. खास बात ये है कि योजनाओं का ऐलान भी हो रहा है और इसी कार्यकाल में पूरा भी किया जा रहा है. दलित राष्ट्रपति चुना फिर आदिवासी महिला को राष्ट्रपति के लिए चुन कर देश दुनिया के वंचित समाज को संदेश भी दिया. तभी तो दलित हो या आदिवासी या फिर गरीब जनता उनकी लोकप्रियता कहीं से घटती नजर नहीं आ रही है.
महिलाएं बनीं पीएम की साइलेंट वोटर
गांव में अपनी मां, बहनों को धुएं वाले चुल्हे पर खाना बनाते देख देश भर की महिलाओं की सेहत और सहुलियत के लिए पीएम मोदी ने उज्जवला योजना शुरु की. मुफ्त सीलिंडर देने की योजना इतनी सफल रही की कई चुनावों मे इसे गेम चेंजर माना गया. जन धन योजना के तहत गरीब महिलाओं के खाते खोले गए. बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा बुलंद किया. अल्पसंख्यक महिलाओं को तीन तलाक जैसे अभिशाप से मुक्ति दिलायी. सेना से लेकर सरकारी नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी बढायी गई. अब तक महिलाओं के लिए बंद दरवाजे भी खोल दिए गए, ताकि देश की आबादी का 50 फीसदी हिस्सा भी मुख्यधारा में भागीदारी कर सके. तभी तो बिहार विधानसभा चुनावों में जीत के बाद पीएम ने अपने साइलेंट वोटरों को बधाई दी थी तो इशारा साफ था कि वो बात महिला वोटरों की ही कर रहे थे.
बच्चों से सीधा संवाद और मन की बात
8 सालों में शायद ही कोई शिक्षक दिवस गुजरा हो जब पीएम मोदी ने देश भर के बच्चों से संवाद नहीं किया हो. परीक्षा पर चर्चा और परीक्षा में तनाव को दूर कैसे रखें पर लिखी उनकी किताब खूब भायी. पीएम जानते हैं कि ये बच्चे की देश का कल हैं, इसलिए उन्हें सही रास्ते पर ले जाना सरकार का कर्तव्य है. स्वच्छ भारत अभियान में इन्ही बच्चों की भागीदारी रंग लायी थी. पीएम मोदी को मौका मिलता है तो बच्चों से संवाद करने में पीछे नहीं रहते. पीएम मोदी उन पहले नेताओं में हैं जिन्होंने रेडियो की शक्ति को पहचाना और मन की बात के माध्यम से देश की हर गली और हर नुक्कड़ पर खड़ी जनता को अपनी बातें सुनने को मजबूर कर दिया. पीएम मोदी ने विकास की बात की. समाज में अच्छा काम करने वालों की बात की, कुछ नया करने की सोच रहे लोगों की बात की, सरकार की योजनाओं के बारे में जनता से संवाद किया. नतीजा ये हुआ कि जहां न पहुंचे टीवी, वहां पहुंची रेडियो से उनके मन की बात.
सेना का मनोबल ऊंचा
यूपीए के दौर में पाकिस्तान के सैनिक सीमा के घुस कर हमारे सैनिकों की गर्दन काट कर ले गए थे और हम करारा जवाब नहीं दे पाए थे, लेकिन अब सीमा पर कमांडरों को पाकिस्तान को जवाब देने के लिए दिल्ली से निर्देश लेने की जरुरत ही नहीं पड़ती. पाकिस्तान के हौसले पस्त हो चुके हैं तो गलवान की घटना के बाद चीन को भी मानना पड़ा की भारत अब आंख में आंख डाल कर बात करता है. सेना, नेवी, एयरफोर्स की हर जरुरत को पूरा करने का बीड़ा मोदी सरकार ने उठाया है और पीएम मोदी खुद त्योहारों या फिर नए साल पर देश की किसी सीमा पर जवानों के साथ वक्त जरुर बिताते हैं. इंडिया गेट पर बना नेशनल वॉर मेमोरियल गवाह है आजादी के बाद अब तक देश के लिए शहीद हुए जवानों की शहादत का. हर नाम वहां अंकित है. अमर जवान ज्योति की ज्वाला अब नेशनल वॉर मेमोरियल में मिला दी गयी है.
दुनिया भर में भारतीयों को गर्व करना सिखाया
कभी विदेश मंत्रालय ऐसे आइरन कर्टेन के पीछे बसता था जहां आम आदमी की सुनवाई ही नहीं हो पाती थी. बीजा के लिए धक्के खाना तो दूर पासपोर्ट बनने के भी लाले पड़े रहते थे. अगर विदेश में कहीं फंस गए तो फिर भगवान ही मालिक होता था, लेकिन स्थितियां बदल चुकी हैं. पासपोर्ट बनाने का काम इतना आसान बना दिया गया है कि आम आदमी को मुश्किल नहीं आती. विदेशों मे फंसे तो विदेश मंत्रालय का मदद पोर्टल आपकी सुनेगा नहीं तो मोदी सरकार खुद अपने लोगों को बचाने सामने आएगी. पीएम मोदी खुद अपने विदेश दौरे में भारतीय समुदाय से रुबरु होना नहीं भूलते हैं. आलम ये है कि दुनिया भर में भारतीयों का आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि अब अपनी संस्कृति पर गर्व करने में वो एक कदम आगे बढ जाते हैं, आखिर भरोसा जो है कि मोदी सरकार उनके साथ खड़ी है.
मोदी इफेक्ट! पिघलने लगा है स्टील प्रेम
भारतीय प्रशासनिक सेवा कभी ब्रिटिश सम्राज्य का स्टील फ्रेम मानी जाती थी. इन्ही के दम पर ब्रिटिश राज फला फूला. अंग्रेज तो चले गए थे, लेकिन उनकी विरासत से बाहर निकलने में इस सिविल सेवा को 70 साल लग गए. दिल्ली में सत्ता संभालने के बाद पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि बतौर सी शुरुआत में उन्हें इन अधिकारियों से डर लगता था. उन्होंने सुना था कि दिल्ली के अधिकारी न तो कार्यालय समय पर आते हैं और अगर आ भी गए तो अपनी सीटों पर नजर नहीं आते हैं. संदेश साफ था कि जो काम करेंगे वो आगे बढेंगे और जो नहीं करना चाहते वो रेस से बाहर भी होने लगे हैं, लेकिन अपनी टफ टास्कमास्टर की छवि से अलग इन अधिकारियों को पीएम मोदी का एक और रंग नजर आया और वो था घर के बड़े बुजुर्ग का. मोदी 1.0 में उन्होने अधिकारियों से अनौपचारिक मुलाकातें शुरु कीं. 100 के बैच में सभी स्तर के अधिकारियों को बारी बारी से पीएम आवास पर निमंत्रित किया गया. ये ऐसा फोरम था जहां पीएम बोलते कम सुनते ज्यादा थे. एक बैठक में एक डायरेक्टर स्तर के अधिकारी ने पूछा कि बड़े बड़े फैसले वो आनन फानन में कैसे ले लेते हैं तो पलट कर जवाब आया कि अगर आपका कोई छिपा जेंडा नहीं है और आपको लगता है कि आप सही राह पर हैं तो फैसले लेने में देर नहीं लगती. अब तो स्टील प्रेम पिघल रहा है और अधिकारी भी पीएम मोदी की कमीटमेंट और जानकारी के कायल हो चुके हैं.
21 साल में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जो साबित करते हैं कि मोदी की लोकप्रियता लगातार बढती क्यों जा रही है. लेकिन फिलहाल इतना कह कर विराम लगाना चाहूंगा कि पीएम मोदी को बस एक ही धुन सवार है कि देश को बदलना है. इसके लिए हर सरकारी कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जन भागीदारी उनका मुख्य लक्ष्य होता है. पुरानी यादों का ये सिलसिला मैने इसलिए नहीं लिखा कि उनकी काम की तारीफ करनी है बल्कि इसलिए की वो आम आदमी के पीएम हैं, जिनकी उनकी स्टाइल में कह सकते हैं कि सीएम (कॉमन मैन) के पीएम हैं. यह साफ है कि उनकी लोकप्रियता का राज उनकी राजनीति में नहीं बल्कि उनकी शख्सियत में छुपा है.
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Tags: Gujarat news, Narendra modi, New Delhi news, PoliticsFIRST PUBLISHED : November 07, 2022, 19:46 IST