मंगलुरु की रहने वाली बहु-प्रतिभाशाली आदि स्वरूपा ने कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की है. लेकिन 16 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने नाम कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय रिकॉर्ड दर्ज किए हैं. न्यूज 18 से बातचीत करते हुए आदि कहती हैं कि उनके माता-पिता का मानना है कि ‘कन्वेन्शनल स्कूलिंग’ व्यक्ति के विकास को काफ़ी सीमित कर देती है, इसलिए उन्हें कभी स्कूल नहीं भेजा गया. उन्हें बचपन से ही सेल्फ स्टडी का महत्व समझाया गया है. उनके माता-पिता एक रिसर्च सेंटर चलाते हैं और आदि ने अपनी सारी तालीम वहीं से हासिल की है.
वह भले ही कभी स्कूल ना गई हों पर वह हाल ही में कर्नाटक बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में बैठी थीं जिसमें उन्हें 91 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए. आपको बता दें कि अक्सर जिस उम्र में युवक-युवती बोर्ड की परीक्षा पास करने को ही अपनी सबसे बड़ी सफलता मानते हैं उस उम्र में आदि स्वरूपा ने चार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड दर्ज किए हैं.
दर्ज किए कई रिकॉर्ड
आदि ने 13 वर्ष की आयु में सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ी थी. उन्होंने रुबिक क्यूब से मोज़ेइक बनाकर ‘गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में अपना नाम दर्ज किया. उसके बाद 15 साल की उम्र में दोनों हाथों से एक साथ एक मिनट में 175 अक्षर लिखकर ‘एक्स्क्लूसिव वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज कराया. 15 वर्ष की आयु में ही उन्हें ‘अतुलनीय विजुअल मेमोरी आर्टिस्ट’ के खिताब से भी नवाज़ा गया. यह खिताब उन्हें दसवीं कक्षा के पूरे सिलेबस को एक पेंटिंग के माध्यम से दर्शाने के लिए मिला था. उस पेंटिंग का शीर्षक था ‘the trapped education’. इस पेंटिंग के माध्यम से उन्होंने यह मैसेज देने का प्रयास किया कि किस प्रकार कन्वेन्शनल स्कूलिंग व्यक्ति के विकास में बाधा डालती है. हाल ही में दोनों हाथों से एक साथ एक मिनट में साठ शब्द लिखकर उन्होंने अपना ही पूर्व रिकॉर्ड तोड़ा और साथ ही ‘हार्वर्ड बुक्स ऑफ रिकॉर्ड’ में अपना स्थान बनाया.
माता-पिता का रिसर्च सेंटर
वह कहती हैं कि उन्होंने जो भी प्रशिक्षण हासिल किया है वो अपने माता-पिता से ही किया है. उनके माता-पिता ‘स्वरूपा एजुकेशन’ नामक एक रिसर्च सेंटर चलाते हैं. उनके पिता इस सेंटर के डायरेक्टर हैं और उनकी माता इस सेंटर की प्रिंसिपल हैं. वह बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ यहां आया करती थीं और अन्य बच्चों के साथ वक़्त बिताती थीं. उनके माता-पिता ने ये सेंटर कन्वेन्शनल स्कूलिंग से ध्यान हटाने और सेल्फ स्टडी को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया था. आदि का मानना है कि इतनी कम उम्र में 4 रिकॉर्ड दर्ज करने के पीछे का एक मुख्य कारण ये भी है कि वह कभी स्कूल नहीं गईं. क्योंकि स्कूल में एक स्टूडेंट की प्रतिभा केवल पढ़ाए जाने वाले 6 विषयों से मापी जाती है और उनकी क्षमताओं को उन्ही विषयों तक सीमित कर दिया जाता है. उनके मुताबिक एक स्टूडेंट असंख्य प्रतिभाओं का सागर होता है और उसे बस अपने हुनर को पहचानने और दिशा देने की आवश्यकता होती है.
आदि में हैं और भी कई सारे टेलेंट
मेमोरी आर्टिस्ट के तौर पर अपनी पहचान बनाने के बाद अब वह मिमिक्री, पेंटिंग और बीट बॉक्सिंग में नया मुकाम हासिल करना चाहती हैं. उन्हें पेंटिंग का भी बहुत शौक है और वह कहती हैं कि वह एक मिमिक्री आर्टिस्ट बनने की ख्वाहिश रखती हैं. इसी के साथ उनमें एक ही वक़्त पर कम से कम 16 गतिविधियों में भाग लेने की काबिलियत है. वह एक मिनट में हज़ार से भी अधिक शब्द याद कर सकती हैं. उनका लक्ष्य कम से कम दस रिकॉर्ड दर्ज करने का है. वह कहती हैं कि वह मिमिक्री और बीट बॉक्सिंग में भी कुछ नायाब करके रिकॉर्ड दर्ज करना चाहती हैं. अपनी कला के बारे में बताते हुए वह कहती हैं कि वर्षों की कड़ी मेहनत और लगातार अभ्यास के बाद उन्हें रिकॉर्ड दर्ज करने में सफ़लता हासिल हुई.
1600 आयोजनों मे भाग लिया
आदि ने अब तक 1600 से भी अधिक आयोजनों में हिस्सा लिया है जिसमें से ज़्यादातर कार्यक्रम कर्नाटक में हुए थे. उनके मुताबिक उनके माता-पिता ने हमेशा उन्हें नए कार्यक्रमों में हिस्सा लेने और नई-नई कला सीखने के लिए प्रोत्साहित किया है.
जितने अवसर मिलेंगे प्रतिभा उतनी ही बढ़ेगी
उनकी मां सुमंगला, ‘स्वरूपा एजुकेशन सेंटर’ की प्रिंसिपल हैं. न्यूज 18 से बात करते हुए वह कहती हैं कि कन्वेन्शनल स्कूलिंग के माध्यम से मानव क्षमता का उपयोग और प्रतिभा का पोषण नहीं किया जाता है और ये कन्वेन्शनल स्कूलिंग द्वारा संभव भी नहीं है. हमारे रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए अनुसंधान से हमें ये मालूम हुआ कि स्टूडेंट्स को जितने ज़्यादा अवसर प्रदान किए जाएंगे, उनकी प्रतिभा उतनी ही और बढ़ेगी. हम स्वरूपा में उन्हें खुद को डिस्कवर करने का अवसर प्रदान करते हैं. हमारा मानना है कि हर स्टूडेंट में कुछ अलग करने की काबिलियत है बस उसे खुद को तलाशने और तराशने के अवसर और सहयोग की आवश्यकता है. वह कहती हैं कि एक स्टूडेंट गीली मिट्टी की तरह होता है, कुम्हार उसे जो आकार देता है वह उसी आकार में ढल जाता है.
वह आगे बताती हैं कि आदि ने बचपन में बहुत कम आयु से ही सेंटर के अन्य बच्चों को देखकर पढ़ना और लिखना शुरू कर दिया था. वह ढाई साल की उम्र में अच्छी तरह लिखना सीख गई थी. जब उन्होंने अपनी बेटी को स्कूल ना भेजने का फैसला लिया था तो काफ़ी लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया था. पर आज आदि ने साबित कर दिया कि पढ़ने के लिए कन्वेन्शनल स्कूलिंग ज़रूरी नहीं है.
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