1932 का खतियान झारखंड में आखिर क्यों बना हुआ है अंधों का हाथी जानें वजह
1932 का खतियान झारखंड में आखिर क्यों बना हुआ है अंधों का हाथी जानें वजह
Khatian Katha: 5 सितंबर को झारखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दिए गए बयान के बाद विपक्षी दल बीजेपी के साथ साथ आदिवासी संगठनों ने भी उसके मायने निकालने शुरू कर दिए हैं. राज्य के तमाम आदिवासी संगठन मुख्यमंत्री के उस बयान को अपनी-अपनी जानकारी के हिसाब से टटोलने में जुटे हैं कि आखिर 1932 का खतियान महज एक सियासी जुमला है या जमीन पर उसकी कोई सचाई भी है.
हाइलाइट्सडॉ. करमा उरांव के मुताबिक, 1932 का खतियान बड़े पैमाने पर किए गए सर्वे का आधिकारिक दस्तावेज है. प्रेमशाही के मुताबिक, 1932 से पहले भी 1908 में सर्वे हुआ है. लिहाजा 1932 को ही मानक क्यों माना जाए.
रांची. झारखंड में 1932 के खतियान पर सियासी घमासान चाहे जितना मचा हो, पर अबतक की बयानबाजी से यह बात लगती है कि इसे समझने की कोशिश कुछ वैसे ही की जा रही है जैसे शरद जोशी के अंधे पात्रों ने हाथी को अपने-अपने ढंग से समझने की कोशिश की थी.
5 सितंबर को झारखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दिए गए बयान के बाद विपक्षी दल बीजेपी के साथ साथ आदिवासी संगठनों ने भी उसके मायने निकालने शुरू कर दिए हैं. राज्य के तमाम आदिवासी संगठन मुख्यमंत्री के उस बयान को अपनी-अपनी जानकारी के हिसाब से टटोलने में जुटे हैं कि आखिर 1932 का खतियान महज एक सियासी जुमला है या जमीन पर उसकी कोई सचाई भी है. दरअसल राज्य में आधिकारिक तौर पर जमीन की मिल्कियत को लेकर पहला सर्वे 1908 को किया गया था, जिसमें जमीन की मिल्कियत, गृहस्वामी, जमीन का नक्शा, उसकी चौहद्दी का पूरा ब्योरा दर्ज किया गया था.
आदिवासी मूलवासी संयुक्त मोर्चा के अगुआ डॉ. करमा उरांव के मुताबिक, 1932 का खतियान बड़े पैमाने पर किए गए एक सर्वे का आधिकारिक दस्तावेज है. इसके आधार पर ही नियोजन नीति और दूसरी चीजें तय होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 1932 का कट ऑफ डेट सभी को मान्य भी होगा.
डॉ. करमा उरांव की बात को आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुंडा नकारते हैं. प्रेमशाही के मुताबिक, 1932 से पहले भी 1908 में सर्वे हुआ है. लिहाजा 1932 को ही मानक क्यों माना जाए. हालांकि वे जरूर कहते हैं कि 1932 के साथ दूसरे जिलों में किए गए सर्वे को भी ध्यान में रखकर खतियान की बात की जानी चाहिए.
आदिवासी लोहरा समाज के अभय भुट कुंवर और केंद्रीय सरना संघर्ष समिति के शिवा कच्छप 1932 के पक्ष में ही खड़े नजर आते हैं. उनकी मानें तो ईमानदारी के साथ ही इस दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बोलने के बजाय इस दिशा में जल्द कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.
दरअसल 1932 में बड़े पैमाने पर राज्य भर में सर्वे कर पुराने सर्वे का निरीक्षण किया गया. उस दौरान जो क्षेत्र छूट गए, वहां 1964 में सर्वे का काम किया गया. इन तमाम सर्वे को विलेज नक्शा के नाम से भी जाना जाता है. इसके अलावा भी कुछ जिलों में जमीन की मिल्कियत को लेकर अलग-अलग सालों में अलग-अलग सर्वे किए गए. इसी को लेकर आदिवासी संगठनों में भी एक विरोधाभास नजर आ रहा है.
वैसे बता दें कि झारखंड में बात सर्वे की जब भी आती है, तब अलग-अलग साल में किए गए 3 सर्वे का जिक्र सामने आता है.
पहला सर्वे 1908 में हुआ था. जिसमें राज्यभर में भूखंडों के स्वामी और उनकी मिल्कियत से संबंधित जानकारी को लेकर सर्वे किया गया था.दूसरा सर्वे साल 1932 में किया गया था. जिसमें पुराने सर्वे का रिवीजन किया गया. 1932 में सर्वे का काम बड़े पैमाने पर किया गया. इसे ही आधिकारिक माना जाता है.तीसरा सर्वे का काम 1964 में पूरा किया गया. इसमें 1932 में जो हिस्से छूट गए थे. उन्हें शामिल किया गया था. हालांकि 1955 में सिंहभूम में अलग से सर्वे किया गया था.
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Tags: CM Hemant Soren, Jharkhand news, Trending newsFIRST PUBLISHED : September 07, 2022, 20:20 IST