आस्था और विश्वास का अटूट केंद्र है यूपी का कोईल मर्याद भवानी धाम

स्थानीय निवासी और मंदिर के कोषाध्यक्ष राजेश राय बताते हैं कि बहुत समय पहले इस मंदिर को औरंजेब ने तोड़वाने की कोशिश की थी. उस समय मूर्ति सोने की थी. परंतु तोड़वाने के प्रयास की वजह से यह मूर्ति काले की रंग की हो गई. राजेश राय बताते हैं कि भगवान शंकर ने माता पार्वती को कोयल रूप में आने का श्राप दिया था. इस रूप में माता पार्वती ने यहां पर तपस्या की थी. इसी वजह से माता जी का नाम कोयल मर्याद भवानी पड़ा.

आस्था और विश्वास का अटूट केंद्र है यूपी का कोईल मर्याद भवानी धाम
सुशील सिंह/मऊ: जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर अमिला लाटघाट मार्ग पर स्थित मादी बाजार के पास कोयल मर्याद भवानी माता का मंदिर आस्था और विश्वास का अटूट केंद्र है. लगभग 1200 साल पुराने इस मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस मंदिर में मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत संस्कार से लेकर शादी विवाह तक होते हैं। श्रद्धालुओं की आस्था के इस केंद्र पर पूड़ी हलूवे के रूप में चढ़ावा चढ़ाया जाता है. स्थानीय निवासी और मंदिर के कोषाध्यक्ष राजेश राय बताते हैं कि बहुत समय पहले इस मंदिर को औरंजेब ने तोड़वाने की कोशिश की थी. उस समय मूर्ति सोने की थी. परंतु तोड़वाने के प्रयास की वजह से यह मूर्ति काले की रंग की हो गई. राजेश राय बताते हैं कि भगवान शंकर ने माता पार्वती को कोयल रूप में आने का श्राप दिया था. इस रूप में माता पार्वती ने यहां पर तपस्या की थी. इसी वजह से माता जी का नाम कोयल मर्याद भवानी पड़ा. मूर्ति चोर-चोर चिल्लाती थी बताया जाता है कि बहुत समय पहले यहां पर कोल भील निवासी रहते थे. इस लिए इस स्थान को कोइलिया माई कहते थे. जो कालांतर में कोयल मर्याद के नाम से प्रसिद्ध हुआ. बताते है कि हिंदू धर्म में खंडित मूर्ति की पूजा नहीं की जाती परंतु यह मंदिर इस बात का अपवाद है. इस मंदिर में खंडित मूर्ति की पूजा होती है. इस बारे में राजेश राय बताते हैं कि यह इलाका सुनसान था. चोर जब चोरी करके आते थे तो धन का बंटवारा यहीं करते थे. इस पर यह मूर्ति चोर-चोर चिल्लाती थी. परेशान होकर चोर इस मूर्ति को उठाकर ले जाने लगे. जैसे ही वो कुछ दूर पहुंचे उनको दिखाई देना बंद हो गया. इस चक्कर में मूर्ति खंडित हो गई. सभी मुराद होती है पूरी चोर परेशान होकर माता से मन्नतें मांगने लगे, पूजा के बाद उनको दिखाई देने लगा. इसके बाद चोर मूर्ति को वहीं छोड़कर भाग निकले. इस मूर्ति का धड़ वहीं पास के रेयांव गांव में रह गया. कालांतर में स्थानीय लोग यहां मंदिर बना का पूजा करने लगे. इनको \”दिदोरिया\” माई के नाम से जाना जाता है. वहीं सिर को ले आकर पुनः उसी स्थान पर स्थापित कर दिया गया और इन्हें \”कोयल मर्याद भवानी माई\” के नाम से पूजते हैं. राहुल सांकृत्यायन ने भी इस मंदिर का जिक्र अपनी पुस्तक \”कनैला की कथा\” में किया है. दूर दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा करने आते हैं. बताते हैं कि यहां पर सभी की मुरादें पूरी होती है. Tags: Hindu Temple, Local18, Mau news, UP newsFIRST PUBLISHED : June 10, 2024, 16:21 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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