चुनाव में बसपा का बुरा हाल वोट प्रतिशत 10 प्रतिशत से भी नीचे क्या रही वजह

UP Chunav Result 2024: 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन के बाद मायावती के नेतृत्व पर सवाल खड़े हो रहे हैं. बसपा का इस बार का प्रदर्शन कई सियासी समीकरणों की तरफ भी इशारा कर रहा है.

चुनाव में बसपा का बुरा हाल वोट प्रतिशत 10 प्रतिशत से भी नीचे क्या रही वजह
हाइलाइट्स लोकसभा का ऐसा चुनाव हुआ है जिसके नतीजे सभी पार्टियों के लिए उत्साहजनक रहे लेकिन, सिर्फ एक ही पार्टी के खेमे में मायूसी फैली है और वो है बसपा, जिसे करारी हार मिली लखनऊ. बड़े सालों बाद लोकसभा का ऐसा चुनाव हुआ है जिसके नतीजे सभी पार्टियों के लिए उत्साहजनक रहे, सिर्फ बसपा को छोड़कर. भाजपा इसलिए खुश है, क्योंकि उसकी सरकार तीसरी बार बनती दिख रही है. सपा खुश है क्योंकि उसके सांसदों की संख्या में बड़ी बढ़ोतरी हुई और वह कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी. कांग्रेस भी खुश है क्योंकि वो यूपी में एक सीट से 6 सीटों वाली पार्टी बन गई. लेकिन, सिर्फ एक ही पार्टी के खेमे में मायूसी फैली है और वो बसपा. बहुजन समाज पार्टी के लिए लोकसभा के नतीजे विधानसभा चुनाव 2022 से भी खराब रहे. विधानसभा में तो कम से कम पार्टी को एक सीट मिल गयी थी. लेकिन, लोकसभा के चुनाव में तो उसका खाता खुलना तो छोड़िए एक भी उम्मीद्वार ऐसा नहीं है जो दूसरे नंबर पर भी हो. ऐसी बुरी गत पार्टी ने पहले नहीं देखी थी. हाल ये है कि यूपी की सभी 80 सीटों में से हर जगह बसपा या तो तीसरे नंबर पर रही या चौथे नंबर पर. वोटरों ने पार्टी का वो हाल कर दिया कि बसपा शायद ही किसी सीट पर अपनी जमानत बचा पाई. 9.38 फीसदी वोट शेयर पर सिमटी बसपा ये हाल उस पार्टी का है जिसने पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. उसने 10 सीटें जीती थीं लेकिन, पांच साल के बाद उसे एक भी सीट नसीब नहीं हुई. बसपा को 10 फीसदी भी वोट नहीं मिले. 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा को 12.88 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 9.38 फीसदी वोट ही मिले। तो आखिर ऐसे क्या कारण हैं जिसकी वजह से पार्टी की ऐसी दुर्गति गयी. अकेले चुनाव लड़ने का फैसला घातक सबसे बड़ी वजह तो यही मानी जा रही है कि गठबंधन के दौर में मायावती ने अकेले लड़ने का फैसला किया. उनके इस फैसले के बाद से ही कहा जा रहा था कि मायावती हारी हुई बाजी लड़ रही है. विधानसभा चुनाव 2022 के रिजल्ट के बाद ये तो तय हो ही गया था कि बसपा यूपी में भाजपा और सपा से काफी पीछे हो गयी है. ऐसे में इस लोकसभा चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कुव्वत पार्टी में तो थी नहीं. मायावती को लगा होगा कि यदि त्रिकोणीय मुकाबला हुआ तो पार्टी को कुछ सीटें मिल जायेंगी. नतीजे से पता चलता कि मुकाबला द्विपक्षीय हुआ. ऐसे में बसपा कहीं की नहीं रही. बीजेपी की बी टीम का लेवल लंबे समय से ये कहा जा रहा था मायावती भाजपा को जिताने के लिए चुनाव लड़ेंगी. चुनाव के शुरुआती दिनों में यही भावना जनमानस में फैली हुई थी. हालांकि टिकट बटवारे के बाद इस सोच में थोड़ा बदलाव तो आया लेकिन, भाजपा की बी टीम के लेवल से पार्टी उबर नहीं पायी. अब बी टीम को कौन वोट देना चाहेगा. चंद्रशेखर आजाद नए दलित चेहरा बनकर उभरे इसी वजह से ये माना जा रहा है कि दलित वोटबैंक में बड़ी टूट हुई है. वैसे तो ये टूट पहले से चली आ रही है लेकिन, ऐसा माना जा रहा है कि बसपा का मूल जाटव वोटरों में भी टूट हुई है. बसपा से वे टूटकर भाजपा और सपा की ओर गये लेकिन, बड़ा हिस्सा सपा और कांग्रेस की ओर जाता दिखा. जाटवों के टूटने की स्थिति में और भी दलित जातियों ने पार्टी से मुंह मोड़ लिया. नगीना और सहारनपुर की सीट इसका बढ़िया उदाहरण है. नगीना में आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद जीते. उन्हें 5 लाख से ज्यादा वोट मिले. इसका साफ मतलब है कि दलित वोटरों ने बसपा को छोड़ आजाद को वोट किया. बसपा इस सीट पर चौथी पोजिशन पर है. उसे 15 हजार भी वोट मिलता नहीं दिखा. सहारनपुर में भी ऐसा ही हुआ है. यहां बसपा तीसरे नंबर पर है. माजिद अली को डेढ़ लाख से थोड़े ज्यादा वोट मिले. इसमें बड़ी संख्या मुसलमानों की मानी जा रही है. यानी दलित वोटबैंक कांग्रेस के इमरान मसूद की ओर गया. इसी वोट की कमी के कारण मसूद कई चुनाव हारे और अब इसे पाकर वे जीत गए. आरक्षण के मुद्दे पर मायावती की चुप्पी चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियां ये नैरेटिव कायम कर पाने में सफल हो पायीं कि भाजपा आरक्षण और संविधान को खत्म करने पर अमादा है. इसे कांग्रेस और सपा ने जोर-शोर से उठाया लेकिन, आरक्षण और संविधान को लेकर सबसे आगे रहने वाली बसपा के नेता ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी. दलित वोटबैंक में ये संदेश गया कि वाकयी में अब मायावती बहुजन आंदोलन से दूर हो गयी है. आकाश आनन्द को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते समय पुराने बहुजन नेताओं ने दबी जुबान यही बातें की थीं. आकाश आनंद फैक्टर चुनाव के ऐन पहले आकाश आनन्द को उत्तराधिकारी घोषित करना भी बसपा के लिए घातक ही हुआ माना जा रहा है. बहुजन नेताओं ने अपने काडर को ऐसा कोई संदेश कभी नहीं दिया था. लिहाजा सीनियर लीडर्स और काडर में अंदर ही अंदर नाराजगी थी. खैर, चुनाव में आकाश आनन्द ने अपने भाषणों से माहौल तो खड़ा कर लिया था लेकिन एकाएक मायावती ने उन्हें पीछे खींच लिया. इससे जुड़े कार्यकर्ता भी हताश हो गये. अब उनके पास दूसरी पार्टी की तरफ जाने के अलावा कोई रास्ता न दिखा. चुनाव दर चुनाव बसपा टूटती चली जा रही इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव दर चुनाव बसपा टूटती चली जा रही है. चौंकाने वाली बात तो ये है कि अब से पहले ये कभी नहीं कहा गया कि जाटव वोटबैंक में टूट हुई लेकिन, इस बार के चुनाव में वो भी देखने को मिला. जाहिर है, 2027 में होने वाला यूपी का अगला विधानसभा भी बसपा के लिए निराशाजनक ही रह सकता है. संभव है कि चन्द्रशेखर आजाद के इर्द गिर्द बहुजन जमात सिमटने लगे. Tags: 2024 Loksabha Election, BSP chief Mayawati, Loksabha Election 2024FIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 09:19 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed