जून के अंतिम सप्ताह में बंजर जमीन पर करें इस मटन की खेती
जून के अंतिम सप्ताह में बंजर जमीन पर करें इस मटन की खेती
सूरन की फसल गर्म जलवायु में 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के बीच होती है. सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है. इसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. सूरन का उत्पादन लागत 3 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर तथा आय लगभग 12 लाख रुपये है. सूरन आमतौर पर 6 से 8 माह में तैयार होने वाली फसल है.
रायबरेली: जिमीकंद या सूरन की सब्जी को “शाकाहारी लोगों का मटन” या पंडितों का मटन कहा जाता है. शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र सभी जगह के लोगों कि यह एक लोकप्रिय सब्जी के रूप में जाना जाता है. कृषि एक्सपर्ट के अनुसार किसान इसकी खेती करके मालामाल हो सकते हैं. क्योंकि यह बंजर जमीन में भी आसानी से उगने वाला पौधा होता है. साथ ही कम लागत में अधिक मुनाफा देता है .
गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली यह फसल धार्मिक रूप से भी अपना एक अलग महत्व रखता है हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि दीपावली वाले दिन सूरन का सेवन करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है . वहीं सूरन में विटामिन सी, विटामिन बी6, विटामिन बी1, फोलिक एसिड और फाइबर पाया जाता है. साथ ही यह सूरन मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन और फॉस्फोरस का भी भंडार है. सूरन खाने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटमिन और पोषक तत्व मिलते हैं. अगर किसान भाई सूरन की खेती करते हैं, तो अच्छी कमाई कर सकते हैं.
जून के अंत में करें बुवाई
रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा (बीएससी एजी डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या) बताते हैं कि पहले सूरन की खेती, दालान या मकान के पीछे, बाग-बगीचों में थोड़ा-बहुत की जाती थी. सूरन की फसल गर्म जलवायु में 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के बीच होती है. सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है. इसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. सूरन का उत्पादन लागत 3 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर तथा आय लगभग 12 लाख रुपये है. सूरन आमतौर पर 6 से 8 माह में तैयार होने वाली फसल है. जहां सिंचाई की अच्छी सुविधा है वहां 15 मार्च से 15 मई के बीच इसे लगाया जाता है. जहां पर पानी की सुविधा नहीं रहती वहां जून के अंतिम सप्ताह में मानसून शुरू होने पर लगाया जाता है.
सूरन की टॉप 5 किस्म
शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि सूरन की तासीर गर्म होती है, देसी किस्म का सूरन खाने से गले में खुजली की समस्या हो सकती है. हालांकि सूरन की कई किस्मों को विकसित किया गया है, जिसे खाने से खुजली नहीं होती है. आज के समय में बाजरों में उन किस्मों की मांग है. सूरन की बेहतर और उन्नत किस्मों में गजेंद्र एन-15, श्री पदमा, कुसुम, राजेंद्र ओल कोयम्बटूर और संतरा गाची हैं, इन किस्मों से प्रति एकड़ 20 से 25 टन उपज प्राप्त होती है. किसान मौसम और बारिश के आधार पर प्रजाति का चयन कर सकते हैं.
एक हेक्टेयर में इतना होगा उत्पादन
शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि जिमीकंद की खेती के लिए दोमट मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी का चयन करें. साथ ही ऐसे खेत का चयन करें जहां जल निकासी की व्यवस्था अच्छी हो इसकी एक खासियत या भी होती है. सूरन 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में आसानी से उगाया जा सकता है. यह वर्षा आधारित फसल के रूप में जाना जाता है. एक हेक्टेयर में 40 से 50 टन कि दर से यह पैदावार देती है. बाजारों में 5 से 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल की दर से आसानी से बिक्री भी हो जाती है .
Tags: Agriculture, Local18, Rae Bareli News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : June 3, 2024, 19:42 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed