सौहार्द की मिसाल है यूपी का यह ताजिया रानी लक्ष्मीबाई ने शुरु की थी परंपरा
सौहार्द की मिसाल है यूपी का यह ताजिया रानी लक्ष्मीबाई ने शुरु की थी परंपरा
Jhansi News: इतिहास के जानकार हरगोविंद कुशवाहा ने बताया कि जब महाराजा गंगाधर राव और महारानी लक्ष्मीबाई के पुत्र गंगाधर राव का जन्म हुआ. इसके बाद उन्होंने इस ताजिया की स्थापना करवाई थी. रानी लक्ष्मीबाई के देहांत के बाद जब अंग्रेजों का झांसी पर कब्जा हुआ, तो उन्होंने इस ताजिया पर रोक लगाने का प्रयास किया. लेकिन, उस समय भी मौलाना वकस के वंशजों ने यह ताजिया बनाई. इसके बाद यह ताजिया लगातार बनाई जाती है.
झांसी /शाश्वत सिंह: झांसी अपनी गंगा जमुनी तहजीब के लिए विख्यात है. हिंदू मुस्लिम एकता के यहां अनेकों उदाहरण देखने को मिलते हैं. ऐसा ही एक उदाहरण है रानी लक्ष्मीबाई द्वारा स्थापित किया गया ताजिया. जी हां, मुहर्रम के पवित्र महीने में झांसी में एक ताजिया महारानी लक्ष्मीबाई के नाम से भी रखा जाता है. इस ताजिया को स्थापित भी महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा ही किया गया था. 1851 में इस ताजिया को रानी लक्ष्मीबाई ने शुरू किया था. उन्होंने इसकी जिम्मेदारी मौलाना वकस को सौंपी थीं. 171 साल बाद भी मौलाना वकस के खानदान द्वारा यह परंपरा कायम रखी गई है.
इतिहास के जानकार हरगोविंद कुशवाहा ने बताया कि जब महाराजा गंगाधर राव और महारानी लक्ष्मीबाई के पुत्र गंगाधर राव का जन्म हुआ. इसके बाद उन्होंने इस ताजिया की स्थापना करवाई थी. रानी लक्ष्मीबाई के देहांत के बाद जब अंग्रेजों का झांसी पर कब्जा हुआ, तो उन्होंने इस ताजिया पर रोक लगाने का प्रयास किया. लेकिन, उस समय भी मौलाना वकस के वंशजों ने यह ताजिया बनाई. इसके बाद यह ताजिया लगातार बनाई जाती है. वर्तमान समय में इस ताजिया को मौलाना वकस के वंशज रशीद मियां तैयार करते हैं. आज भी झांसी शहर में जो भी ताजिया तैयार की जाती है. वह सभी सबसे पहले रानी लक्ष्मीबाई के ताजिया को सलामी देने आते हैं.
शहर कोतवाल होते हैं संरक्षक
इस ताजिया के संरक्षण की जिम्मेदारी कोतवाल को दी गई थी. आज भी शहर कोतवाल इसके संरक्षक होते हैं. गौरतलब है कि मोहर्रम महीने के 10वें दिन ताजिया जुलूस निकाली जाती है. ताजिया इराक में बने इमाम हुसैन के दरगाह की कॉपी है. ताजिया बनाने की शुरुआत भी भारत से ही हुई है. उस समय के बादशाह तैमूर लंग ने इमाम हुसैन की दरगाह की नकल बनवाई. उसे ताजिया का नाम दिया. इसके माध्यम से इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत को याद किया जाता है. शमीम खान ने बताया कि मोहर्रम का चांद निकलने के पहले दिन के साथ ही ताजिया रखने का सिलसिला शुरू हो जाता है. 10वें दिन सभी ताजिया को दफनाया जाता है.
Tags: Jhansi news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : July 16, 2024, 17:32 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed