उत्तर प्रदेश के इस जगह से हुई थी ताजिया रखने की शुरुआत

Firozabad bada imambara: फिरोजाबाद के बड़ा इमामबाड़ा में रहने वाले सैय्यद शाहनियाज अली शहर काजी ने लोकल 18 को बताया कि बड़ा इमामबाड़ा में ताजिए रखने की परंपरा हजारों साल पुरानी है...

उत्तर प्रदेश के इस जगह से हुई थी ताजिया रखने की शुरुआत
धीर राजपूत/फिरोजाबाद: मोहर्रम के महीने को शहादत के रुप में मनाया जाता है और मुस्लिम धर्म के लोग करबला में हुई जंग को याद कर मातम मनाते हैं. फिरोजाबाद में भी एक ऐसी जगह है जिसे इमाम हुसैन के नाम पर रखा गया है. लोग आज भी यहां ताजिए रखते हैं और जियारद कर दुआएं मांगते हैं. शहर के बीचों-बीच स्थित इस जगह को इमामबाड़ा के नाम से जाना जाता है. हजारों साल पहले फिरोजाबाद में इसी जगह से ताजिए रखना शुरु किए गए थे. उसी परंपरा को निभाते हुए उनके वंशज यहां ताजिए रखते हैं और इमाम हुसैन को याद कर दुआएं मांगते हैं. ईराक में बने ताजिए से हुई शुरुआत फिरोजाबाद के बड़ा इमामबाड़ा में रहने वाले सैय्यद शाहनियाज अली शहर काजी ने लोकल 18 को बताया कि बड़ा इमामबाड़ा में ताजिए रखने की परंपरा हजारों साल पुरानी है. अभी वह इसके प्रमुख बने हुए हैं. शहर काजी ने कहा कि सन 1250 ई0 में उनके वंशज चंद्रवाड़ में रहते थे जो यमुना किनारे बसा हुआ है. पहले यातायात के साधन इतने नहीं होते थे तो पानी के जहाज के द्वारा ही आवाजाही होती थी. इसी दौर में हिंदुस्तान के अंदर उनके बुजुर्ग हजरत ख्बाजा मुईनुद्दीन चिस्ती ने अजमेर आकर लकड़ी और बांस द्वारा ईराक में बने हजरत ए इमाम हुसैन के रोजे की एक आकृति को अपने अनुयाइयों से तैयार करवाया और रखवाया. इमाम हुसैन के नाम पर पड़ा बड़ा इमामबाड़ा नाम उन्होंने बताया, “पहले आने-जाने के साधन नहीं थे तो लोग ऊंट-घोड़ों से एक समूह में ईराक जाते थे. संसाधनों की कमी के चलते इस दौरान लोगों की मौत भी हो जाती थी. इसलिए हमारे बुजुर्ग ने हिंदुस्तान के अंदर ताजिए रखने की शुरुआत की. हमारे बुजुर्ग लोगों ने चंद्रवाड़ से आकर सन् 1250 में इमाम हुसैन के नाम पर इस जगह का नाम बड़ा इमामबाड़ा रखा और ताजिए रखने की शुरुआत की. हालांकि, उस समय यह परंपरा नहीं चल पाई और फिर 1390 में इसे परंपरागत तरीके से निभाया गया. उसके बाद 1410 से यह परंपरा कभी बंद नहीं हुई और उनके वंशज आज भी इस परंपरा को निभा रहे हैं. मोहर्रम पर होते हैं कई कार्यक्रम, रात भर मनाते हैं मातम शहर काजी ने कहा कि इस इमामबाडे में मुस्लिम समुदाय के लोग आकर यहां रखे ताजिए की जियारद करते हैं और दुआएं मांगते हैं. यहां रखे ताजिए का लोग जुलूस नहीं निकालते हैं. यहां मेंहदी पेश का भी कार्यक्रम किया जाता है और लोग अपनी मंन्नतों को पूरा करने के लिए लंगर का भी आयोजन करते हैं. पूरे फिरोजाबाद में केवल इसी जगह मेंहदी पेश करने से लेकर अन्य कार्यक्रम होते हैं. यह सबसे प्राचीन इमामबाड़ा है. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : July 16, 2024, 17:44 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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