तो क्‍या बगावत करेंगे राव इंद्रजीत सिंह खत्‍म नहीं होगी बीजेपी की चुनौती!

Haryana Election: हरियाणा भाजपा के कद्दावर नेता राव इंद्रजीत सिंह की सीएम बनने की ख्वाहिश किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में सवाल यह है कि वह सीएम बनने के लिए चुनाव बाद भाजपा पर दबाव बनाने में कामयाब हो पाएंगे.

तो क्‍या बगावत करेंगे राव इंद्रजीत सिंह खत्‍म नहीं होगी बीजेपी की चुनौती!
राव इंद्रजीत सिंह. बीजेपी नेता. केंद्र में मंत्री. पर, ख्‍वाहिश मुख्‍यमंत्री बनने की. ख्‍वाहिश ऐसी भी नहीं कि दिल में छुपा के रखें. खुलेआम जताते रहे हैं. पार्टी हाईकमान की लाइन से अलग जाकर भी. पर, हाईकमान का फरमान ऐसा कि अरमानों पर पानी फिरता ही नजर आ रहा है. हाईकमान ने नायब सिंह सैनी को ही भावी सीएम घोषित कर रखा है. तो क्‍या राव इंद्रजीत सिंह बगावत भी कर सकते हैं? अभी पक्‍का तो नहीं कहा जा सकता, पर वह बीच-बीच में तेवर तो दिखाते ही रहते हैं. जब भाजपा ने टिकट बांटना शुरू भी नहीं किया था, तभी से उनकी बेटी अनीता राव अटेली से चुनाव लड़ने को तैयार थीं. पार्टी टिकट दे या न दे, उन्‍होंने ऐलान कर दिया था. मंत्री पिता बेटी के साथ थे. वह बार-बार यह भी कहते रहे हैं कि जनता उन्‍हें मुख्‍यमंत्री बनते देखना चाहती है. उन्‍होंने पार्टी से मौका नहीं मिलने को लेकर यहां तक कह दिया था कि 12 साल में तो कूड़े का भी नंबर आ जाता है. बता दें कि राव फरवरी 2014 में कांग्रेस से भाजपा में आए थे. बगावत कर पिता बने थे सीएम राव इंद्रजीत सिंह के पिता राव वीरेंद्र सिंह 1967 में हरियाणा के दूसरे सीएम बने थे. उसके बाद से दक्ष‍िण हरियाणा से कोई सीएम नहीं बना है. हर‍ियाणा में ज्‍यादातर समय लाल और चौटाला पर‍िवारों का ही शासन रहा है. पिता के सीएम बनने के 10 साल बाद ही राव इंद्रजीत पहली बार विधायक बन गए थे. मुख्‍यमंत्री बनने की इच्‍छा उनके मन में सालों से दबी हुई है. राव इंद्रजीत अपनी रैलियों में कहते रहे हैं, ‘यह चुनाव बस एक चुनाव भर नहीं है. यह दक्ष‍िण हरियाणा के लिए अपनी ताकत दिखाने का मौका है.’ 1967 में जब राव इंद्रजीत के पिता सीएम बने थे तो उन्‍होंने भी बगावत ही की थी. वह उस समय विधानसभा अध्‍यक्ष थे. उन्‍होंने कांग्रेस छोड़ कर विशाल हरियाणा पार्टी बनाई और 24 मार्च, 1967 को मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ले ली. लेकिन, वह साल भर भी कुर्सी पर नहीं रह सके. दगा कर सीएम बने, दगे का शिकार हो हटना पड़ा कांग्रेस से दगा कर उनके साथ आए कुछ नेताओं ने उनके साथ भी दगा कर दिया. नतीजा रहा कि इंदिरा गांधी ने सरकार बर्खास्‍त कर राष्‍ट्रपति शासन लगा दिया. 20 नवंबर, 1967 को राव वीरेंद्र सिंह को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. 1967 का साल वैसे भी हरियाणा की राजनीति के लिए ‘बेमिसाल’ रहा. चुनाव के बाद कांग्रेस को विधानसभा की 81 में से 48 सीटों पर जीत मिली थी. भागवत दयाल शर्मा मुख्‍यमंत्री बनाए गए थे. 10 मार्च को उन्‍होंने शपथ ली थी और एक सप्‍ताह के अंदर ही कांग्रेस के 12 विधायक टूट गए. उन्‍होंने हरियाणा कांग्रेस बना ली. निर्दलीय विधायकों ने भी अपना संयुक्‍त मोर्चा बना लिया. दल-बदल के दम पर संयुक्‍त मोर्चा के पास 48 विधायक हो गए. और, मोर्चे की सरकार बन गई. राव वीरेंद्र सिंह सीएम बन गए. दल-बदल का हाल यह था कि हसनपुर (एससी सीट) से गया लाल निर्दलीय जीते थे. वह नौ घंटे के भीतर कांग्रेस में शामिल हुए और बाहर भी हो गए. फिर एक पखवाड़े के भीतर संयुक्‍त मोर्चा में शामिल हो गए. दक्ष‍िण हरियाणा का सियासी गणित दक्ष‍िण हरियाणा में तीन लोकसभा सीट हैं- गुरुग्राम, फरीदाबाद और भिवानी-महेंद्रगढ़. इनके तहत कुल 27 विधानसभा सीटें हैं. बीजेपी का यहां दबदबा रहा है. इस बार के लोकसभा चुनाव में पांच सीटें खोने के बावजूद बीजेपी ने दक्ष‍िण हरियाणा की तीनों सीटें जीती हैं. 2014 और 2019 में तो जीती थी हीं. 2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी की कुल सीटें घट कर 47 से 40 रह गई थीं. 40 में से 16 दक्ष‍िण हरियाणा ने दी थीं. दक्ष‍िण हरियाणा में यादव (अहीर) बहुल 11 सीटें हैं. यहां 50-60 फीसदी आबादी अहीरों की है. 2014 में सभी बीजेपी के खाते में गई थीं. 2019 में आठ ही आईं. इस बार फिर बीजेपी सभी 11 सीटों पर कब्‍जा करना चाहती है. यह राव इंद्रजीत सिंह के लिए चुनौती है. पार्टी नहीं, अपने दम पर चुनाव जीतते हैं सिंह 74 साल के राव इंद्रजीत सिंह छह बार के सांसद और चार बार के विधायक हैं. चुनावी राजनीति में करीब पांच दशक पूरा करने वाले हैं. वह ऐसे नेता हैं जो अपने बूते चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं, पार्टी के दम पर नहीं. उन्‍होंने दोनों पार्ट‍ियों (कांग्रेस और बीजेपी) में राजनीति की है और चुनाव जीते हैं. राव इंद्रजीत अभी बीजेपी में हैं. पहले कांग्रेस में थे. वह पहली बार 1977 में रेवाड़ी के जटूसना से विधायक बने थे. तब से सात लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. हारे केवल एक (1999 लोकसभा चुनाव) हैं. पहले महेंद्रगढ़ से जीतते थे. 2008 में परिसीमन के बाद गुरुग्राम से लड़ने लगे. लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे देखें तो इस बार हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के सामने खड़ी लगती है. ऐसे में चुनाव नतीजों पर बहुत कुछ निर्भर करता है. अगर दक्ष‍िण हरियाणा इन नतीजों में ‘ताकत दिखाने’ में कामयाब रहा तो राव इंद्रजीत सिंह के तेवर भाजपा के सामने चुनौती खड़ी कर सकते हैं. ऐसी आशंका इसलिए भी दिखती है, क्‍योंकि वह मंत्री रहते हुए भी अपना असंतोष छिपा नहीं रहे हैं. कैबिनेट मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर भी उन्‍होंने खुले आम समर्थकों के बीच अपना असंतोष जाहिर किया था. अब वह उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, उसमें उनके लिए ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ वाली स्थिति बनती लग रही है. अगले चुनाव में उनकी उम्र 80 के करीब होगी. यह चुनाव उनके लिए उनकी बेटी को राजनीति में स्‍थापित कराने का भी चुनाव है. दो बार से कोशिश में लगे रहने के बाद इस बार आरती को बीजेपी का टिकट मिला है. ऐसे में चुनाव के पहले और दौरान कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही बीजेपी के लिए चुनाव के बाद भी चुनौतियां खत्‍म होती नहीं दिखाई दे रहीं. Tags: Assembly elections, Haryana election 2024FIRST PUBLISHED : October 1, 2024, 20:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed