दिल पर लगी ऐसी बात कि बन गए न्यूरो सर्जन अब मनीष हैं शहर में बड़का डॉक्टर
दिल पर लगी ऐसी बात कि बन गए न्यूरो सर्जन अब मनीष हैं शहर में बड़का डॉक्टर
डॉ मनीष ने बताया कि इन मरीजों को अगर सही वक्त और सही समय पर इलाज मिले तो इनकी हाथ और पैर की खोई हुई शक्ति वापस आ सकती है. किसी पर बिना निर्भर हुए यह अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
गाज़ियाबाद /विशाल झा: बिहार में जब डॉक्टर मनीष अपने गांव में रहते थे, तो वह देखते थे कि एक डॉक्टर के पास ही मरीजों की भारी भीड़ उमड़ रही है. सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल और डॉक्टर की कमी के कारण कई मरीजों को उन्होंने अपने सामने गंभीर बीमारियों से मरते हुए भी देखा. इसी वक्त उन्होंने यह ठान लिया था कि अब चाहे जो भी हो. लेकिन, बनना तो डॉक्टर ही है. फिर, कड़ी मेहनत के बाद आज वह डॉक्टर हैं.
डॉक्टर मनीष गाजियाबाद के संतोष अस्पताल में कंसल्टेंट न्यूरोसर्जन और असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर तैनात हैं. रोजाना ही कई मरीजों को देखने के बाद डॉक्टर मनीष को लगता है कि बचपन में देखा हुआ उनका सपना आज सच हो गया. पढ़ाई में डॉक्टर मनीष हमेशा ही अव्वल रहे और इसी कारण से वर्ष 2007 में उन्हें सफदरजंग अस्पताल में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए दाखिला मिल गया.
इसके बाद 2013 में दोबारा से एंट्रेंस एग्जाम क्लियर करके मास्टर एंड सर्जरी की पढ़ाई भी सफदरजंग अस्पताल से पूरी की. इस बीच रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन (लंदन ) की भी डॉ मनीष ने मेंबरशिप ली. अपने इलाज की विधि को सुधारने के लिए मेहनत की. डॉ मनीष यही नहीं रुके, बल्कि 2020 में ऑल इंडिया एग्जाम क्लियर करके बीएचयू में अपना सिलेक्शन पक्का किया. और यहां पर न्यूरो सर्जरी की पढ़ाई की. इस दौरान अव्वल रहने के लिए उन्हें गोल्ड मेडल मिला. अपनी पढ़ाई के दोनों मनीष को मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और अपने विभिन्न प्रिंसिपल से काफी पुरस्कार मिले हुए हैं. इसके अलावा इंटर और स्टेट कंपटीशन में भी डॉक्टर मनीष बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे.
स्पाइनल कोर्ड ट्यूमर पर किया शोध
कम उम्र में ही डॉक्टर मनीष ने अपने नाम कई उपलब्धियां कर ली. उनमें से ही एक उनके रिसर्च भी है. डॉ मनीष ने स्पाइनल ट्यूमर के मरीजों के ऊपर अपने पेपर रिप्रेजेंट किए थे. इसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि अक्सर स्पाइनल कॉर्ड के ट्यूमर के मरीजों के पैर और हाथ में कमजोरी आ जाती है. लेकिन, समाज में लोग ऐसे मरीजों के लिए कहते हैं कि वह पहले की तरह नहीं हो पाएगा.
डॉ मनीष ने बताया कि इन मरीजों को अगर सही वक्त और सही समय पर इलाज मिले तो इनकी हाथ और पैर की खोई हुई शक्ति वापस आ सकती है. किसी पर बिना निर्भर हुए यह अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं. समाज में इसी भ्रम से लड़ने के लिए डॉक्टर मनीष ने इन पेपर्स को प्रेजेंट किया था, जिसकी कई जगह पर सराहना की गई.
ऐसे आया था न्यूरो सर्जन बनने का ख्याल
न्यूरोसर्जन बनने का ख्याल डॉक्टर मनीष के मन में तब आया जब अपनी प्रैक्टिस के लिए डॉक्टर मनीष अंडमान एंड निकोबार स्थित पोर्ट ब्लेयर पर कार्य कर रहे थे. उस वक्त वहां पर कई मरीज हेड इंजरी के आए स्पेशलिस्ट नहीं होने के कारण डॉक्टर मनीष को ही उनकी सर्जरी करनी पड़ती थी. डॉ मनीष बताते है कि न्यूरोसर्जन बनने के बाद परिवार के लोगों को काफी कम समय मिल पाता है. क्योंकि हमें यह नहीं पता होता है कि कब कोई मरीज ब्रेन हेमरेज के केस के साथ आ रहा है या फिर कब ट्रामा के साथ. आगे डॉ मनीष बताते हैं कि भारत में रोड एक्सीडेंट न्यूरोलॉजिकल डिफिशिएंसी का सबसे बड़ा कारण है. ऐसे में वह अपने छुट्टी वाले दिन युवाओं को न्यूरो इंजरी के बारे में जागरूक करने का काम भी करते है.
Tags: Ghaziabad News, Local18, Medical18FIRST PUBLISHED : May 27, 2024, 12:18 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed