हाइलाइट्सजनसंघ ने स्थापना के बाद कई जगह चुनाव लड़े, सीटें भी जीतींंआपातकाल के बाद जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गयाजनसंघ से जनता पार्टी में गए नेताओं ने फिर भारतीय जनता पार्टी बनाई
इस समय देश में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार केंद्र और कई राज्यों में है. बीजेपी अब देश की सबसे ताकतवर पार्टी है. जनसंघ को बीजेपी की पितृ पार्टी कहा जाता है. जनसंघ 21 अक्टूबर 1951 में पैदा हुई और करीब 25 सालों बाद इसका विलय जनता पार्टी में हो गया. हालांकि जनता पार्टी की टूट की वजह भी जनसंघ ही बनी. उसके बाद जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के नेताओं ने 80 के दशक की शुरुआत में जिस नई पार्टी की स्थापना की, वो भारतीय जनता पार्टी थी.
25 सालों तक ये पार्टी भारतीय राजनीति में जब सक्रिय रही. इस दौरान इसने राज्य से लेकर केंद्र तक के चुनाव लड़े. अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गई. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय ने इसकी स्थापना की. इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था. इसने 1952 के संसदीय चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी, जिसमें डाक्टर मुखर्जी की खुद की जीत शामिल थी.
जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू किया तो जनसंघ समेत कई सियासी दलों ने 1977 के चुनावों से पहले एक दल जनता पार्टी का गठन किया था. हालांकि बाद में जनता पार्टी जनसंघ के आए नेताओं के दोहरे सदस्यता और विश्वास के मुद्दे पर टूट गई.
तब भारतीय जनसंघ के एक गुट ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया. हालांकि भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य प्रोफेसर बलराज मधोक ने अखिल भारतीय जनसंघ को चुनाव आयोग से पंजीकृत कराए रखकर इस पुरानी पार्टी को कागजों पर भी जिंदा रखा.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल से ताल्लुक रखते थे. सावरकर से प्रभावित होकर राजनीति में आए. वह जनसंघ के तीन संस्थापक नेताओं में एक थे. (फाइल फोटो)
आइए जानते हैं कि जनता पार्टी में विलय से पहले जनसंघ के पार्टी अध्यक्षों के बारे में
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1951–52) – उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को हुआ और मृत्यु 23 जून 1953 को. वह शिक्षाविद्, चिन्तक थे. उन्होंने 1917 में मैट्रिक किया. 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर लौटे. 33 वर्ष की उम्र में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने. सावरकर की विचारधारा से प्रभावित होने के बाद हिन्दू महासभा में सम्मिलित हुए.भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल हुए. फिर इससे अलग होकर जनसंघ की स्थापना की.
मौलि चन्द्र शर्मा (1954) – मौलि चन्द्र शर्मा देश के सीनियर लीडर और वकील थे. वह मूलतौर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ता थे लेकिन आजादी के बाद जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में एक थे. उसके उपाध्यक्ष तथा अध्यक्ष बने.
प्रेम नाथ डोगरा (1955) –वह प्रजा परिषद् के पहले अध्यक्ष थे. उन्हें ‘शेर-ए-डुग्गर’ कहा जाता है. डोगरा की दूरदर्शी सोच का ही परिणाम था कि ‘एक विधान, एक निशान और एक प्रधान’ की मांग पर आंदोलन का आगाज हुआ. वह महाराजा हरि सिंह के समय डी.सी. (विकास आयुक्त) थे. बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जम्मू के संघचालक बने. 1972 तक वे जम्मू की राजनीति में प्रभावी रहे.
बलराज मधोक जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखते थे. प्रखर चिंतक मधोक जनसंघ के संस्थापक नेताओं में थे. हालांकि जब जनसंघ के नेताओं ने बाद में भारतीय जनता पार्टी बनाई तब भी उन्होंने जनसंघ को जिंदा और बरकरार रखने का फैसला किया. (फाइल फोटो)
आचार्य देवप्रसाद घोष (1956–59) –गणितज्ञ, भाषाविद, वकील, पत्रकार, शिक्षाविद, तथा राजनेता थे. 21 वर्ष की आयु में रिपन कॉलेज में गणित के प्राध्यापक के रूप में अपना करियर शुरू किया. राजनीति में खासे सक्रिय रहे. 1956 से 1965 तक (1960 से 1962 को छोड़कर) सबसे लंबे समय तक भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे.
पीताम्बर दास (1960) – वह उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले भारतीय जनसंघ नेता थे. उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
अवसरला राम राव (1961) – अवसारला राम राव भारतीय राजनीतिज्ञ थे. आंध्र प्रदेश विधान परिषद के सदस्य थे.
आचार्य रघुवीर (1963) – भाषाविद, प्रख्यात विद्वान्, राजनीतिक नेता तथा भारतीय धरोहर के मनीषी थे. साथ ही कोशकार, शब्दशास्त्री तथा भारतीय संस्कृति के पैरोकार थे. वह भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे. दो बार राज्य सभा के लिए चुने गये. उन्होने 04 लाख शब्दों वाले अंग्रेजी-हिन्दी तकनीकी शब्दकोश के निर्माण का काम भी किया.
बच्छराज व्यास (1965) – पंडित बच्छराज व्यास राजस्थान के डीडवाना में पैदा हुए थे. वह नागपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय से अपना काम करते रहे. 1944 से 1947 तक राजस्थान में संघ का प्रचारक रहे. 1958 से 1962 तक महाराष्ट्र विधानपरिषद् के सदस्य रहे.
दीनदयाल उपाध्याय ने जनसंघ को भारतीय एकात्मवाद का दर्शन दिया. वह जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे और संस्थापकों में भी रहे. (Wiki Commons)
बलराज मधोक (1966) – प्रोफेसर बलराज मधोक राष्ट्रवादी विचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक रहे. वह 1960 के दशक के सीनियर नेता थे. वह दो बार लोकसभा के लिए चुने गए. खरी-खरी बोलने में नहीं हिचकते थे. 1960 के दशक में उन्होने गौहत्या विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया.
दीनदयाल उपाध्याय (1967–68) – वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतक और संगठनकर्ता थे. उन्होंने एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी. वह समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे. राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी. उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कई लेख लिखे.
अटल बिहारी वाजपेयी (1969–72) – अटल बिहारी देश के प्रधानमंत्री भी रहे. उनकी छवि हमेशा एक ऐसे नेता की रही, जो सबको साथ में लेकर चलना जानता है. जनता पार्टी की सरकार में वह विदेश मंत्री रहे. वह तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने. हिंदी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे. उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य (पत्र) और वीर अर्जुन का संपादन किया.
लालकृष्ण आडवाणी (1973–77) – 94 साल के लालकृष्ण आडवाणी जनसंघ के अध्यक्षों में अकेले ऐसे नेता हैं, जो जीवित हैं. वह भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता हैं. बीजेपी को प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है. वह कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.
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Tags: Atal Bihari Vajpayee, BJP, LK Advani, Pandit Deendayal Upadhyay, RSSFIRST PUBLISHED : October 21, 2022, 12:46 IST