महाभारत: क्यों जमीन से ऊपर रहता था युधिष्ठिर का रथ कैसे उस दिन नीचे आ गया
महाभारत: क्यों जमीन से ऊपर रहता था युधिष्ठिर का रथ कैसे उस दिन नीचे आ गया
Mahabharat katha : महाभारत की कथाओं में लिखा है कि युधिष्ठिर का रथ हमेशा जमीन पर नहीं बल्कि उससे कुछ ऊपर हवा में ही चलता था. लेकिन एक दिन वो नीचे गिर गया. क्या थी वजह
हाइलाइट्स युधिष्ठिर अकेले थे, जिनका रथ जमीन से ऊपर चलता था युधिष्ठिर के रथ के जमीन से ऊपर हवा में रहने की खास वजह थी जिस दिन ये जमीन पर आकर गिरा, उस दिन हर कोई हैरान था
युधिष्ठिर के बारे में कहा जाता है कि जमाना बेशक झूठ बोल दे लेकिन वो कभी ऐसा नहीं करते थे. ना ही उन्होंने ऐसा किया लेकिन एक बार माना गया कि उन्होंने झूठ में साथ जरूर दिया. इसी के साथ ये भी जुड़ा हुआ है कि वह अकेले थे जिनका रथ हमेशा धरती से कई इंच ऊपर रहकर चलता था. एक दिन नीचे जब नीचे आ गया, तब सभी लोग चकित हो गए.
पांडव भाइयों में किसी के लिए कभी ये दावा नहीं किया गया कि वो हमेशा सच बोलते हैं. न्याय का साथ देते हैं. धर्म के अनुसार आचरण करते हैं. कभी कोई गलत बात नहीं करते सिवाय एक शख्स के, वो थे युधिष्ठिर के, क्योंकि उन्होंने हमेशा सत्य, धर्म, न्याय और लोकाचार के अनुसार ही काम किया और हमेशा उसी के अनुसार जीवन जीया.
भाई और द्रौपदी अक्सर उनसे इस बात पर नाराज होते थे
हालांकि उनकी इन आदतों से अक्सर पांडव भाई उनसे नाराज होते थे. उन पर कटाक्ष करते थे. उन्हें कई घटनाओं का जिम्मेदार माना गया. द्रौपदी तो जुआ में सबकुछ हारने, वनवास और कुशासन द्वारा उनकी साड़ी सरे दरबार खींचे जाने पर उन्हें खूब खरीखोटी सुनाई थी. इसके बाद भी युधिष्ठिर ने अपनी सत्य औऱ धर्म, आचरण से जुड़ी बातों से हटने से इनकार कर दिया. युधिष्ठिर जब भी युद्ध मैदान में आते थे, लोग दूर से देख लेते थे कि उनका रथ जमीन पर नहीं चल रहा बल्कि उससे कुछ ऊपर रहकर दौड़ रहा है. इसे देखकर लोग उन्हें खास सम्मान देते थे. (image generated by meta ai)
किसके बेटे थे यु्धिष्ठिर
युधिष्ठिर राजा पांडु की पहली पत्नी कुंती के पुत्र थे, जिनका जन्म पांडु की संतान नहीं होने के कारण यम देवता द्वारा हुआ था. युधिष्ठिर धर्म (नैतिकता और सद्गुण) में विश्वास रखते थे. यही वो वजह थी कि कोई भी रथ उनके उस पर बैठते ही धरती से कई इंच ऊपर उठ जाता था. तब लोग इसे मिसाल के तौर पर पेश करते थे कि युधिष्ठिर किस तरह आदर्श हैं कि उनके आचरण से उनका रथ तक जमीन से ऊपर होकर ही चलता है.
कौन सी बात उन्हें युद्धक्षेत्र में अलग करती थी
हालांकि एक दिन जब उनका ये रथ जमीन पर आकर टकराया तो हर कोई हैरान रह गया. ये क्यों हुआ-इसकी एक खास वजह तो थी ही. जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो युधिष्ठिर जब भी कुरुक्षेत्र युद्ध में पहुंचते थे तो उनके रथ की यही बात उन्हें अन्य योद्धाओं से अलग करती थी.
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पांडवों ने क्या अफवाह फैलाई थी
खैर चलिए हम बताते हैं कि रथ युद्धमैदान में क्यों गिर गया. ये तब हुआ जबकि रणक्षेत्र में युधिष्ठिर का सामना द्रोण से हुआ. पांडवों ने युद्ध में ये अफवाह फैला दी थी कि द्रोणाचार्य के बेटे अश्वत्थामा की युद्ध मैदान में लड़ते हुए मृत्यु हो गई है. इसे सुनकर द्रोणाचार्य विचलित थे. उन्होंने ये मानने से मना कर दिया कि उनका पराक्रमी बेटा युद्ध मैदान में मारा जा सकता है. हकीकत ये थी कि पांडव पक्ष ने अश्वत्थामा को युद्ध क्षेत्र में कहीं दूर उलझा दिया था.
तब द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से सच्चाई जाननी चाही
जब मुख्य रणक्षेत्र में युधिष्ठिर और द्रोणाचार्य का सामना हुआ तो उन्हें लगा कि इस बारे में अगर कोई वाकई सच बता सकता है तो वह युधिष्ठिर ही हो सकते हैं. पांडव पक्ष को भी मालूम था कि ऐसा होगा. खुद सबसे सीनियर पांडव को भी मालूम था कि ऐसा होने वाला है. उन पर दबाव डाला कि आप युद्धमैदान में ये बोलेंगे कि अश्वतथामा मारा गया …पुरुष नहीं हाथी …पीछे के शब्दों को ढोल नगाड़े की आवाज तेज करके छिपा लिया जाएगा.
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तब युधिष्ठिर ने वो बोला जो वह नहीं चाहते थे
युधिष्ठिर बिल्कुल ऐसा नहीं करना चाहते थे लेकिन उन पर कृष्ण ने भी दबाव डाला. फिर द्रोणाचार्य भयंकर तरीके से पांडवों की सेना का संहार कर रहे थे लिहाजा उन्हें छल से मारना जरूरी था. नैतिक संघर्ष के उक क्षण में युधिष्ठिर ने आधा सच बताने का विकल्प चुना. द्रोणाचार्य के पूछने पर उन्होंने अश्वत्थामा की मृत्यु की पुष्टि करते हुए भ्रामक तौर पर संकेत दिया अश्वत्थामा मारा गया लेकिन वह हाथी था.
युधिष्ठिर जैसे व्यक्ति द्वारा बोले गए ये शब्द उनके नैतिक उच्च आधार और सदाचार के नुकसान का प्रतीक भी थे. जैसे ही युधिष्ठिर ने ये बोला तो द्रोणाचार्य को आघात लगा, वह अस्त्र-शस्त्र छोड़कर रथ से नीचे उतर आए. जमीन पर बैठ गए. उसी समय राजा द्रुपद के बेटे धृष्टद्युम्न ने कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य का सिर धड़ से अलग कर दिया.
तब रथ जमीन पर आकर गिर गया
जैसे ही ये सब हुआ तब तुरंत युधिष्ठिर का हवा से जमीन पर आकर गिर गया. जिसने भी युद्धक्षेत्र में इसे देखा हतप्रभ रह गया, क्योंकि ये बात किसी अनहोनी की तरह थी. द्रोणाचार्य भी मरने से पहले समझ गए कि उनके साथ जो धोखा हुआ, उसमें युधिष्ठिर भी शामिल थे. इसका मतलब था कि युधिष्ठिर ने गलत काम तो किया. और इसने ये भी जाहिर किया कि कैसे सबसे धर्मी व्यक्ति भी दबाव में लड़खड़ा सकता है. उसी वजह से युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग जरूर पहुंचे लेकिन उन्हें नरक की झलक दिखला दी गई.
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ये कहकर वह द्रोणाचार्य की हत्या के भी भागी बने. दिव्य दृष्टि पाकर धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आंखों देखा हाल सुना रहे संजय की नज़र में भी युधिष्ठिर के इस काम ने उनके उस गुण का नुकसान कर दिया, जिस पर लोग हमेशा विश्वास करते हैं. उन्होंने युधिष्ठिर को युद्ध में गलत काम करने वाले अन्य योद्धाओं के बराबर माना गया.
युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य की आत्मा को निकलते देखा
युधिष्ठिर उन पांच लोगों में थे, जिन्होंने द्रोण की आत्मा को उनके शरीर से निकलते हुए देखा. युधिष्ठिर भाला-युद्ध और रथ दौड़ में निपुण थे. वह बहुभाषी थे.हालांकि कहा जाता है कि युधिष्ठिर किसी को भी अपने क्रोध और गुस्से से जलाकर राख कर सकते थे. इसीलिए वह ज़्यादातर समय शांत और संयमित रहते थे.
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Tags: MahabharatFIRST PUBLISHED : September 13, 2024, 12:07 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed