विश्वेश्वरैया का वो विशाल बांध जो किसी मंदिर से कम नहीं तब सीमेंट नहीं होता था
विश्वेश्वरैया का वो विशाल बांध जो किसी मंदिर से कम नहीं तब सीमेंट नहीं होता था
ये वो जमाना था जब भारत में कोई बड़ा बांध नहीं बना था. अंग्रेज इसके एक्सपर्ट नहीं माने जाते थे. इस बांध को बनाना असंभव और पैसे के साथ समय की बर्बादी बताई जा रही थी, लेकिन मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर सर एम विश्वेश्वरैया ने कमर कस ली थी कि वो कावेरी नदी पर विशाल बांध को बनाकर ही दम लेंगे. 90 साल बाद भी आज ये बांध बखूबी काम कर रहा है और किसी गर्व से कम नहीं.
हाइलाइट्सकावेरी नदी पर 1911 में 10 हजार लोगों के साथ विश्वेश्वरैया ने शुरू किया था काम मैसूर के वित्त मंत्रालय ने इस बांध के प्रोजेक्ट बेकार मानकर खारिज कर दिया थाजब विश्वेश्वरैया ने इसे बनाया तो ये देश के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिए बड़ी बात थी
इन दिनों कावेरी नदी में बेतहाशा पानी है. मैसूर के पास इस नदी पर बना कृष्णराज सागर बांध के पास कृष्ण नदी का पानी कुलांचे मार रहा है. यहां जाकर इस बांध की ऊंचाई और विशालता चकित करने वाली है. ये बांध तब भारत में बनाया गया, जब देश में कोई बड़ा बांध नहीं था. अंग्रेज इंजीनियर बड़ा बांध बनाने के एक्सपर्ट नहीं माने जाते थे. देश में सीमेंट नहीं बनता था. तकनीक इतनी विकसित नहीं थी. तब एक ऐसे स्वदेशी इंजीनियर ने इसे बनाया, जिसे वाकई कर्नाटक में पूजा जाता है. कर्नाटक में वह अकेला शख्स है, जिसकी ख्याति और औरा सियासी हस्तियों को मात देती है.
इस इंजीनियर का नाम है सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, जिनकी ख्याति और कद देश में ऐसा है जो बहुत कम लोगों को नसीब होता है. 102 साल तक जिए और अपने तरीके से जिए. अंतिम समय तक सक्रिय रहे. विश्वश्वरैया के जन्मदिन पर अगर हम इस बांध की बात करें तो आज भी ये देश के लिए सही मायनों में एक भव्य लोककल्याण करने वाले मंदिर की तरह है, जिसने एक दो नहीं बल्कि पिछले 90 सालों में करोड़ों लोगों के जीवन को बदल कर रख दिया.
इस बांध को बनाना टेढी खीर था. सर एम वी यानि मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने मैसूर के चीफ इंजीनियर के तौर पर इसे अंजाम दिया. 1911 जब इसे बनाना शुरू किया गया तो इसे पैसे की बर्बादी और भविष्य का सफेद हाथी माना गया था. मैसूर रियासत की पूरी अफसरशाही और बड़े अफसरान इसके खिलाफ थे. उन्होंने तो इसकी फिजिबिलिटी रिपोर्ट पर सवाल खड़े करते हुए इसे खारिज ही कर दिया था. इन दिनों कृष्णराज सागर बांध मैसूर में लबालब पानी भरा है. ये बांध अपनी लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई में देश के सबसे बड़े बांधों में है. (Photo – Sanjay Srivastava)
अंग्रेजों ने भी कोशिश की थी
इससे पहले अंग्रेज इंजीनियरों की टीम ने इस पर काम करने की शुरुआती कोशिश की थी लेकिन योजना के स्तर पर ही वो इस तरह उलझे की आगे नहीं बढ़ पाए. हालांकि उनका बजट भी बहुत ज्यादा था. दरअसल मैसूर की ये जगह जहां कृष्ण राज सागर बांध बना है, वहां कावेरी का पानी बहुत ज्यादा होता है. इस पानी का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था. इसके करीब पड़ने वाले मांड्या और कई इलाकों में खूब गर्मी पड़ती थी. गर्मी में पानी की कमी तो हो ही जाती थी बल्कि जमीन भी बंजर हो रही थी.
बांध जरूरी था और अड़चनें भी थीं
इसलिए कावेरी के बेशुमार पानी के जरिए मैसूर के राजा कुछ ऐसा करना चाहते थे कि कई मकसद साधे जा सकें. इससे बिजली पैदा हो, सिंचाई की जरूरतें पूरी हों और गर्मी में पानी की कमी को विशाल जलाशय बनाकर दूर किया जा सके. लेकिन अड़चन सही डिजाइन से लेकर तकनीक और संसाधनों हर किसी की थी. इतना पैसा भी नहीं था. उस समय कृष्णराज सागर बांध बनाने पर सर विश्वेश्वरैया की टीम की लागत 81 लाख रुपए आई, जिसकी तब बहुत आलोचना होती थी.
बांध के लिए पानी का दबाव बर्दाश्त करना आसान नहीं होता
दरअसल बांध में पानी को संभालना आसान नहीं होता, पानी के प्रबल वेग की ताकत को कम रखना और उसकी ग्रेविटी का प्रबंधन करना कतई आसान नहीं होता. मैसूर के कृष्णराज सागर बांध ग्रेविटी डैम का सबसे जबरदस्त उदाहरण है. ये पानी को एक बडे़ जलाशय में गोलकार रोकता तो है और इसके दबाव को भरपूर तरीके बांध की दीवारों पर नहीं आने देता. इसके लोहे के स्वदेशी गेट 90 साल होने के बाद भी भरपूर अंदाज में अपना काम कर रहे हैं. इस बांध में 48 गेट हैं. हर गेट लोहे की मोटी चादर और तमाम तकनीक से इस तरह लैस है कि बांध पानी ज्यादा होते ही या जलाशय के लिए पानी रिलीज होते समय से आटोमैटिक तरीके से खुल जाते हैं (विकीकामंस)
10 हजार लोग दरबदर हुए थे
इस बांध को केआरएस कहा जाता है. कृष्ण राज नाम मैसूर के तत्कालीन राजा के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इस बांध को बनाने की अनुमति ही नहीं दी, बांध बनने में कोई अड़चन नहीं आए, इसलिए विश्वेश्वरैया के पीछे ताकत बनकर खड़े हो गया. जब बांध बना तो 10000 लोगों के घर उजड़े, उन्हें दूसरी जगह भेजा गया. विदेश से सीमेंट मंगाना बांध की लागत को और बढ़ा देता लिहाजा इसे सुर्की मसाले से तैयार किया गया. आज भी ये मुस्तैदी से टिका है.
बदल दी इसने लोगों की जिंदगी
ये बांध 1911 में बनना शुरू हुआ. 1931 में इस लंबे चौड़े बांध पर काम पूरी तरह से खत्म हुआ. फिर तो इसने वाकई यहां के लोगों की जिंदगी बदल दी. कभी ये इलाका अकाल से जूझता था, जो अब नहीं होता. इस बांध के बनने के बाद इसके जरिए ठीक इसके बगल में विश्व प्रसिद्ध बृंदावन गार्डन को विकसित किया गया. जो अपने आपमें दुनिया का अकेला गार्डन है. ये वो विश्व प्रसिद्ध बृंदावन गार्डन है, जिसे बांध से पानी मिलता है. ये हजारों तरह के फूल पौधे हैं और कई तालाब . ये अपनी तरह का नायाब गार्डन है. दूर दूर से लोग इसे देखने आते हैं. इसका म्युजिक फाउंटेन बहुत पसंद किया जाता है. (Photo – Sanjay Srivastava)
तब कावेरी में पानी तो था लेकिन इस्तेमाल नहीं
बांध बनने से पहले मैसूर और मांड्या के इस क्षेत्र में 1875-76 में भयंकर अकाल पड़ा था. मैसूर राज्य की आबादी का पांचवां हिस्सा इसमें खत्म हो गया. पानी की कमी से सिंचाई नहीं थी और फसलें नहीं हो पाती थीं. ये हैरानी होती थी कि कावेरी नदी के इतने प्रचुर पानी का उपयोग क्यों नहीं हो पा रहा है, क्यों इतने पानी के बावजूद इसका इस्तेमाल सिंचाई और जीवन बदलने में नहीं हो पा रहा है.
मैसूर के वित्त मंत्रालय ने रद्द कर दी थी ये योजना
तब चीफ इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया ने इस नदी पर एक विशाल बांध बनाने का ब्लू प्रिंट मैसूर सरकार को सौंपा, जो मैसूर सिटी से करीब 22 किलोमीटर दूर कन्नमबाडी में बनना था. मैसूर के वित्त मंत्रालय ने हाथ खड़े कर दिया. उसका मानना था कि बांध बनने से कुछ नहीं होगा और इससे जो बिजली पैदा होगी, उसका तो उपयोग ही नहीं हो पाएगा, लिहाजा इस प्रोजेक्ट का तो कोई मतलब ही नहीं है.
तब विश्वेश्वरैया अनुमति के लिए कमर कस ली
तब विश्वेश्वरैया ने मैसूर के तत्कालीन दीवान टी आनंद राव और महाराजा कृष्णराजा वाडियार से एप्रोच किया. उनसे मिले. ये कहा कि इस पूरे मामले पर फिर से विचार किया जाए. विश्वेश्वरैया दावे से इसके फायदे गिनाते थे. आखिरकार फिर से इस पूरे प्रोजेक्ट की जांच की गई. तब मद्रास प्रेसिडेंसी ने इसका विरोध किया और अंग्रेज सरकार ने अनुरोध किया कि इसको बनाने की अनुमति बिल्कुल नहीं दें. लेकिन अंग्रेज सरकार भी विश्वेश्वरैया पर इतना भरोसा करती थी कि उसने इसके लिए मंजूरी दे दी. एम विश्वेश्वरैया र(M Visvesvaraya) ने तब इस बांध का निर्माण किया जब ज्यादातर लोग इसकी खिलाफत कर रहे थे. जब उन्होंने बांध बनाया तब उन्होंने दावा किया था कि केवल कुछ सालों में ही ये बांध ना केवल अपनी लागत निकाल लेगा बल्कि मोटा फायदा देना शुरू करेगा. अब वही स्थिति है. अब इस बांध से लंबे चौड़े की इलाके की किस्मत तो बदली है और ये हर साल करोड़ों का राजस्व अर्जित करता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
दस हजार कर्मियों के साथ काम शुरू हुआ
नवंबर 1911 में 10 हजार कर्मचारियों के साथ काम शुरू हुआ. बांध का काम पूरे तौर पर 1931 में खत्म हुआ. 5000 से 10000 लोगों को घरों से बेदखल होना पड़ा और उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट किया गया. उन्हें ना केवल शिफ्ट किया गया बल्कि उन्हें कृषि योग्य जमीनें भी सरकार ने दीं.
48 आटोमैटिक गेट क्या काम करते हैं
इस बांध के 48 आटोमेटिक गेट बनवाए गए, जो अपने आप पानी के ज्यादा होने पर खुल और बंद हो जाते हैं. लोहे के गेट खास तकनीक के बनवाए गए जो देश में ही भद्रावती के स्टील प्लांट में बनाए गए थे. हालांकि इस बांध ने 1924 से काम करना शुरू कर दिया था लेकिन इससे जुड़े सिंचाई, जलाशय और दूसरे काम 1931 तक चलते रहे. इस बांध का पानी ही अब मैसूर, मांड्या और बेगलुरु सिटी के पेयजल संबंधी जरूरतें पूरा करता है.
यहीं से तमिलनाडु के लिए छोड़ा जाता है पानी
इसी बांध से तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ा जाता है. इसी कावेरी के जल को लेकर कर्नाटक का लंबे समय तक तमिलनाडु से विवाद रहा. जो अब सुलट चुका है. इससे निकाली गई नहरें बांध के आसपास की 92000 एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए उपयोगी बन चुकी है. जब आप इस एरिया में पहुंचेंगे तो इसे हरियाली से लहलहाते हुए पाएंगे.
कितना ऊंचा और कितना बड़ा
बांध ना केवल 130 फुट ऊंचा है बल्कि आज़ादी से पहले की देश की सिविल इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना भी है.बांध की लंबाई 8600 फीट और कुल क्षेत्रफल 130 वर्ग कि.मी. है. यानि खासा बड़ा. इसमें हेमावती तथा लक्ष्मणतीर्था नाम की नदियां भी गिरती हैं. कृष्णराजसागर बांध से बिजली पैदा होती है, जिसका इस्तेमाल इलाके के इंडस्ट्रीज द्वारा किया जाता है. एक जमाने में कोलार गोल्ड माइंस में यहीं से पैदा हुई बिजली भेजी जाती थी.
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Tags: Dams, Karnataka, MysoreFIRST PUBLISHED : September 15, 2022, 17:50 IST