पूर्वी लद्दाख में विवाद चीनी सेना ने भारतीय चरवाहों को पशु चराने से रोका कमांडर स्तर पर सुलझा मामला
पूर्वी लद्दाख में विवाद चीनी सेना ने भारतीय चरवाहों को पशु चराने से रोका कमांडर स्तर पर सुलझा मामला
अब भारतीय सेना एलएसी के क़रीब अपने चरागाहों पर चीनी घुसपैठ और दावे के ख़त्म करने के लिए भारतीय चरवाहों को ज़रूरी सुविधाओं से लैस कर रही है. जानकारी के मुताबिक़, एलएसी के क़रीब के छोटे गांवों तक बिजली और सड़क के अलावा पानी की व्यवस्था भी सरकार की तरफ़ से की जा रही है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या है उस इलाके में मवेशियों को चराने के जो मैदान हैं, वह अब सिकुड़ते जा रहे हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से नहीं, बल्कि वहां पर भारत और चीन के बीच जारी विवाद के चलते..
नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच सीमा वास्तविक है, यानी न तो कंटीले तार और न ही कोई दीवा.. दूर-दूर तक फैले सिर्फ़ बंजर मैदान और कहीं-कहीं हल्की-फुल्की घास भी दिख जाती है… और ये घास के मैदान ही हैं, एलएसी के पास रहने वाले भारतीय गांव वालों के पशुओं की लाइफ़ लाइन… और पिछले हफ़्ते ही भारतीय चरवाहों को अपने पशु चराने के लिये चीनी पीएलए के साथ विवाद हो गया. सूत्रों के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख के डेमचौक इलाके में एक बार फिर चीनी पीएलए ने भारतीय चरवाहों को पशुओं को चराने से रोका. हालांकि किसी तरह का फेसऑफ, धक्कामुक्की या बैनर ड्रिल की नौबत नहीं आई और इस विवाद को स्थानीय कमांडर स्तर पर बातचीत से सुलझा लिया गया.
ये घटना डेमचौक के सैडल पास के चार्डिंग निंगलुंग नाला (CNN) के ट्रैक जंशन के पास हुई. चीनी और भारत के बीच इस तरह की विवाद कोई नया नहीं है. पारंपरिक चरागाह में भारतीय चरवाहों के पशुओं को चराने को लेकर विवाद होता रहा है.
दरअसल, तिब्बत के पठार और लद्दाख के इन ठंडे मरुस्थल में सदियों से यहां के जनजातीय लोग रहते हैं, जोकि अपने पशुओं को उन मैदान में चराते हैं, लेकिन पिछले कई दशकों से चीन-तिब्बत के इलाक़े में पड़ने वाले चरागाह में स्थानीय लोगों, जोकि अपने पशुओं को चराया करते हैं, उन्हीं चरवाहों के भेष में चीन अपने सैनिकों और जासूसों को भेजता रहा है. चीनी चरवाहों की मदद से भारतीय इलाकों में अपनी गतिविधियों को अंजाम देता आया है और भारतीय इलाक़े में अपने चरवाहों को भेजकर उन चरागाहों पर अपना दावा भी ठोंकता रहा है, लेकिन अब भारत ने चीन की इस हरकतों का उसी की भाषा में जवाब देने की तैयारी कर ली है.
अब भारतीय सेना एलएसी के क़रीब अपने चरागाहों पर चीनी घुसपैठ और दावे के ख़त्म करने के लिए भारतीय चरवाहों को ज़रूरी सुविधाओं से लैस कर रही है. जानकारी के मुताबिक़, एलएसी के क़रीब के छोटे गांवों तक बिजली और सड़क के अलावा पानी की व्यवस्था भी सरकार की तरफ़ से की जा रही है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या है उस इलाके में मवेशियों को चराने के जो मैदान हैं, वह अब सिकुड़ते जा रहे हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से नहीं, बल्कि वहां पर भारत और चीन के बीच जारी विवाद के चलते.. लेकिन अब भारतीय सेना एलएसी के पास रहने वाले चरवाहों की मदद कर रही है, ताकि वह एलएसी के पास के उन चरागाहों तक अपने जानवरों को ले जा सकें, जो भारत के दावे के क्षेत्र में हैं. सुरक्षा के अलावा वो इन्हें जरूरी मदद भी दे रही है.
सूत्रों की मानें तो सेना एलएसी के पास इन चरवाहों को उनके पारंपरिक चरागाह पर लौटने में मदद कर रही है. भारतीय सेना चरवाहों के लिए मेडिकल कैंप का आयोजन करती है और उनके जानवरों के लिए अलग से मेडिकल कैंप लगाया जाता हैं. किसी स्वास्थ्य इमरजेंसी के वक्त हैलिकॉप्टर के ज़रिए भी उनकी मदद की जाती है. साथ ही चरवाहों के बीच आपदा के दौरान राशन बांटने के साथ ही भारतीय सेना हर मुश्किल घड़ी में इनके साथ खड़ी रहती है.
चीन अपने कब्जे वाले इलाक़े में मवेशियों को चराने के लिए छोड़ देते हैं और उनके मेवाशी भारतीय इलाक़े तक पहुंच जाते हैं और उनके साथ उनके चरवाहे अपने मवेशियों के साथ उन इलको में टिक जाते हैं और फिर चीन उन पर दावा ठोक देता है कि ये इलाक़ा उनका है और उनके लोग सदियों से वहां अपने पशुओं को चराते आए हैं, लेकिन विवाद के चलते भारतीय सेना भारतीय चरवाहों को एलएसी के क़रीब अपने पशुओं को चराने के लिए जाने नहीं देते, बल्कि कुछ दूसरे चरागाह को चिहिन्हत किया गया है, जोकि काफी दूरी पर है, लेकिन जब से दोनों देशों के बीच तनाव कम हुआ है फिर से चरवाहे अपने चरागाहों तक जाने दिया जा रहा है.
कुछ महीनों पहले लद्दाख ऑटोनोमस हिल काउंसिल के सदस्य की तरफ़ से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को भी एक मेमोरेंडम भी सौंपा था और पारंपरिक चरागाहों तक जाने देने की गुज़ारिश भी की थी. एक बार सीडीएस बिपिन रावत ने चीन की इस ज़मीन पर क़ब्ज़े साज़िश को सलामी स्लाइसिंग का नाम भी दिया था. चूंकि ये चरवाहे भारतीय सेना के आंख और कान का कम करते हैं, जिन जगह पर भारतीय सेना आम तौर पर पेट्रोलिंग नहीं कर पाते, उन सब इलाकों में ये चरवाहों की मदद से ही चीनी सैनिकों और उनकी तरफ़ से की जाने वाली किसी भी मूवमेंट के बारे में भारतीय सेना जानकारी मिलती है. ये चरवाहे कितने कारगर हैं, उसका सबसे जीता जागता उदाहरण कारगिल में पाकिस्तानी सेना के जमावड़े की खबर का मिलना है. बटालिक सैक्टर में एक गडरिये ने ही भारतीय इलाक़े में पाकिस्तानियों के होने की सबसे पहले खबर दी थी. उसी तर्ज़ पर चीनी पीएलए की हरकतों पर भी ये चरवाहे नज़र रखते हैं.
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Tags: China, Chinese Army, Indian army, LadakhFIRST PUBLISHED : August 30, 2022, 16:07 IST