150 साल पुराना मेला जहां दोस्ती परंपरा बनती है सिंदूर और माला से होता स्वागत

Bankura News: जिले के इंदास ब्लॉक में 150 साल पुरानी ‘सहेला’ उत्सव की परंपरा आज भी जीवित है. इस अनोखे मेले में दोस्ती, सौहार्द और सामाजिक समानता का जश्न मनाया जाता है, जहां जाति-धर्म के भेद मिटते हैं.

150 साल पुराना मेला जहां दोस्ती परंपरा बनती है सिंदूर और माला से होता स्वागत
बांकुरा: आज के डिजिटल युग में, जब सोशल मीडिया पर दोस्ती सिर्फ एक क्लिक की दूरी पर है, बांकुरा जिले के इंदास ब्लॉक के खटनगर इलाके में ‘मां मनसा’ के दर्शन के साथ दोस्ती का एक अनूठा उत्सव मनाया जाता है. साल 2024 में भी यह परंपरा जीवित है, जहां लोग इस त्योहारी समय में प्राचीन प्रथा ‘सहेला’ उत्सव के माध्यम से दोस्ती के बंधन में बंधते हैं. दोस्ती और सौहार्द का अनोखा त्योहार सहेला उत्सव में लोग अपने मतभेदों को भुलाकर सौहार्द का संदेश देते हैं. इस फैंसी उत्सव के दौरान बुधवार को खटनगर फुटबॉल मैदान में दस से पंद्रह हजार लोग एकत्र हुए. यह मेला हर वर्ग के लोगों को जोड़ता है, जहां दोस्ती को चंदन, सिंदूर, और फूलों की मालाओं से सम्मानित किया जाता है. युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक, हर उम्र के लोग इस आयोजन में हिस्सा लेते हैं. इस त्योहार के दौरान माहौल पूरी तरह से उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है. 150 साल पुरानी परंपरा का जादू सहेला उत्सव की शुरुआत करीब 150 साल पहले हुई थी. स्थानीय भाषा में इसे ‘सोयला’ के नाम से भी जाना जाता है. इस अनोखे मेले में नए दोस्त और प्रेमिकाएं एक-दूसरे का स्वागत सिंदूर, चंदन और फूलों की माला से करते हैं. यह परंपरा इंदास इलाके के लोगों के लिए सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि रिश्तों को जोड़ने का त्योहार है. पुराने समय में, यह मेला सिर्फ दोस्ती के रिश्ते तक सीमित नहीं था बल्कि इसे सामाजिक बंधनों को मजबूत करने के लिए भी मनाया जाता था. जाति-धर्म से परे एक अनूठा मेल इस उत्सव में हजारों पुरुष और महिलाएं जाति और धर्म से परे अपने पसंदीदा दोस्तों का स्वागत करते हैं. खास बात यह है कि पुरुष केवल पुरुषों को और महिलाएं केवल महिलाओं को दोस्त के रूप में चुनती हैं. शादी के बाद लोग एक-दूसरे को गले लगाकर अपनी दोस्ती का इज़हार करते हैं. यह आयोजन सिर्फ दोस्ती ही नहीं, बल्कि समाज में भाईचारे और समानता का प्रतीक भी है. आधुनिकता के बावजूद परंपराओं का सम्मान हालांकि समय के साथ लोग आधुनिक हो गए हैं और कई पुराने रीति-रिवाज खत्म हो गए हैं, लेकिन सहेला उत्सव अपनी मौलिकता और भावना को बरकरार रखे हुए है. आज की व्यस्त जिंदगी में यह त्योहार लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ने और जीवन में मित्रता की अहमियत को समझने का मौका देता है. Tags: Local18, Special Project, West bengalFIRST PUBLISHED : November 15, 2024, 15:48 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed