सावन में पहली बार करनी है कांवड़ यात्रा जानें कैसे करें तैयारी नियम सामग्री
सावन में पहली बार करनी है कांवड़ यात्रा जानें कैसे करें तैयारी नियम सामग्री
Kanwar Yatra 2024 Niyam: सावन का महीना 22 जुलाई दिन सोमवार से शुरू हो रहा है. शिव भक्त अपने मनोकामनाओं की पूर्ति और महादेव की कृपा पाने के लिए कांवड़ यात्रा करते हैं. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं कि कांवड़ यात्रा क्या है? कांवड़ यात्रा कितने तरह की होती है? कांवड़ यात्रा के लिए क्या तैयारी करनी चाहिए? इसके नियम, सामाग्री और शिवलिंग पर जल चढ़ाने की विधि क्या है?
इस साल सावन का महीना 22 जुलाई दिन सोमवार से शुरू हो रहा है. सावन माह में कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी 22 जुलाई से हो रही है. सावन में भगवान शिव शंकर की पूजा करते हैं. कहा जाता है कि श्रावण मास शिव का प्रिय महीना है और इसमें शिव जी को जल अर्पित करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं. शिव भक्त अपने मनोकामनाओं की पूर्ति और महादेव की कृपा पाने के लिए कांवड़ यात्रा करते हैं. कांवड़ यात्रा की शुरूआत के संदर्भ में कई कथाएं हैं, जिसमें श्रवण कुमार, प्रभु राम, परशुराम, रावण आदि की कांवड़ यात्रा का जिक्र है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं कि कांवड़ यात्रा क्या है? कांवड़ यात्रा कितने तरह की होती है? कांवड़ यात्रा के लिए क्या तैयारी करनी चाहिए? इसके नियम, सामाग्री और शिवलिंग पर जल चढ़ाने की विधि क्या है?
कांवड़ यात्रा क्या है?
किसी भी मनोकामना की पूर्ति के लिए पवित्र नदी का जल कांवड़ में लेकर आते हैं और उससे देवों के देव महादेव का जलाभिषेक करते हैं. घर से कांवड़ लेकर निकलते हैं और नदी से जल भरकर शिवलिंग के अभिषेक तक की जो यात्रा करते हैं, वह कांवड़ यात्रा कहलाती है.
कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा मंख्यत: चार प्रकार की होती है, जिसमें सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ और दांडी कांवड़ हैं.
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1. सामान्य कांवड़: इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िए रास्ते में विश्राम करते हुए यात्रा करते हैं और अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं.
2. डाक कांवड़: इस यात्रा में डाक कांवड़िए को नदी से जल लेकर शिव जी का अभिषेक करने तक लगातार चलना होता है. एक बार जब वे यात्रा शुरू करते हैं तो जलाभिषेक के बाद ही खत्म करते हैं. मंदिरों में जलाभिषेक के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है.
3. दांडी कांवड़: यह सबसे कठिन कांवड़ यात्रा है. इसमें कांवड़िए को बोल बम के जयकारे के साथ दंडवत करते हुए यात्रा करनी होती है. वह घर से लेकर नदी तट तक और उसके बाद जल लेकर शिवालय तक दंडवत करता हुआ जाता है. इसमें काफी समय लगता है.
4. खड़ी कांवड़: इस कांवड़ यात्रा में कुछ लोग मिलकर खड़ी कांवड़ ले जाते हैं. इसमें जो व्यक्ति खड़ी कांवड़ ले जाता है, उसका सहयोग करने के लिए कुछ लोग होते हैं.
कांवड़ यात्रा के लिए सामग्री
1. लकड़ी की बनी हुई कांवड़
2. भगवान शिव की तस्वीर, कांवड़ को सजाने के लिए श्रृंगार सामग्री
3. गंगाजल या नदी जल भरने के लिए कोई बर्तन या पात्र
4. कांवड़िए के लिए गेरुआ वस्त्र
5. कुछ जरूरी दवाएं, पट्टी आदि.
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कांवड़ यात्रा की तैयारी कैसे करें?
सबसे पहली बात की कांवड़ यात्रा श्राद्ध भाव से की जाती है. आपके मन में उसके प्रति श्रद्धा हो तो ही आप कांवड़ यात्रा करें अन्यथा वह व्यर्थ होगा. उसका फल आपको नहीं मिलेगा. कांवड़ यात्रा के लिए स्वयं को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करें. कांवड़ यात्रा के प्रारंभ के पहले से ही कुछ दूरी की पैदल यात्राएं करना शुरू करें ताकि आपका मन और शरीर कांवड़ यात्रा के लिए तैयार हो. कांवड़ यात्रा में नंगे पैर ही लंबी दूरी तय करनी होती है, इसलिए इसके लिए छोटे अभ्यास करें. इस यात्रा में आपको मौसम की कठिनाइयों को भी झेलने के लिए तैयार रहना होगा.
कांवड़ यात्रा के नियम
1. कांवड़ यात्रा के समय में आपको मन, कर्म और वचन से शुद्ध होना चाहिए.
2. इस समय में शराब, पान, गुटखा, तंबाकू, सिगरेट, तामसिक वस्तुओं आदि का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए.
3. कांवड़ यात्रा में आपकी श्रद्धा और भक्ति के साथ मन की दृढ़ता की भी परीक्षा होती है. इसमें आपका एक ही लक्ष्य होता है, भगवान भोलेनाथ की कृपा पाना. इस उद्देश्य से भटकना नहीं चाहिए.
4. एक बार कांवड़ उठाने के बाद उसे भूमि पर नहीं रखा जाता है. थक जाने पर आप उसे पेड़, स्टैंड आदि पर रख सकते हैं.
5. कांवड़ यात्रा में नंगे पैर पैदल यात्रा की जाती है. ऐसे में आप एक जत्थे के साथ रहते हैं तो उनको देखकर आपका भी मनोबल बढ़ता है. बोल बम के जयकारे के साथ आगे बढ़ते जाते हैं.
6. शारीरिक क्षमता के अनुसार ही कांवड़ यात्रा करें. पहली बार कांवड़ यात्रा कर रहे हैं तो अधिक दूरी से परहेज कर सकते हैं. बीमार या अस्वस्थ लोगों इस यात्रा से बचना चाहिए.
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जलाभिषेक की विधि
कांवड़ यात्रा ऐसे दिन शुरू करते हैं कि उसका समापन यानी शिव जी को जल चढ़ाने का दिन सोमवार, प्रदोष, शिवरात्रि हो. हालांकि सावन में पूरा दिन ही विशेष है. यदि ऐसा संभव न हो तो आप सावन में किसी भी दिन किसी समय जल अर्पित कर सकते हैं.
नदी से जल लाकर अपने घर के पास या उस क्षेत्र के किसी भी शिव मंदिर में जाकर महादेव का जलाभिषेक करें. भगवान शिव का स्मरण करके ओम नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल अर्पित करें. उसके बाद बेलपत्र, भांग, मदार पुष्प, चंदन, अक्षत्, शहद आदि चढ़ाते हुए शिव जी की विधि विधान से पूजा करें.
Tags: Dharma Aastha, Kanwar yatra, Lord Shiva, ReligionFIRST PUBLISHED : July 10, 2024, 10:43 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed