सुहाग-तिरंगे में किसी एक का करना था चुनाव तारा रानी ने लिया बड़ा फैसला और
सुहाग-तिरंगे में किसी एक का करना था चुनाव तारा रानी ने लिया बड़ा फैसला और
तारा रानी के सामने दो विकल्प थे, पहला- वह गोली से जख्मी अपने पति की जान बचाएं और दूसरा- आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए पुलिस स्टेशन के बाहर तिरंगा फहराए. यहां पर वीरांगना तारा ने एक कड़ा फैसला लिया और देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. कौन हैं अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाली वीरांगना तारा, जानने के लिए पढ़ें आगे...
भूले बिसरे स्वतंत्रता सेनानी: देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाली वीरांगनाओं में तारा रानी श्रीवास्तव का नाम भी शामिल है. तारा रानी श्रीवास्तव का जन्म पटना शहर के करीब सारण में हुआ था. किशोरावस्था में कदम रखने के साथ तारा महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ गई थीं. इसी बीच, उनकी शादी फुलेंद्र बाबू से हो गई थी.
चूंकि फुलेंद्र बाबू खुद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गांधीजी के अनुयायी थे, लिहाजा शादी के बाद भी तारा स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी रहीं. शादी के बाद तारा ने अपने महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने और ब्रिटिश राज की खिलाफत के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया. साथ ही, तारा ने अब अपने पति फुलेंद्र बाबू के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चा निकालना शुरू कर दिया था. यह भी पढ़ें:- 8 AUG 1947: गांधी के लिए क्यों बदले 8 अगस्त के मायने? जिन्ना की चाल पर कैसे भारी पड़े वेंकटाचारी, और धधक उठा कोलकाता… महात्मा गांधी के जीवन में 8 अगस्त की दो तारीखें बेहद अहम हैं, पर इन दोनों तारीखों के मायने उनके लिए बिल्कुल उलट गए थे. वहीं, जोधपुर रियासत को पाकिस्तान में शामिल करने की जिन्ना की साजिश पर वेंकटाचारी ने एक झटके पर पानी फेर दिया था. इस दिन कोलकाता से भी सांप्रदायिक नरसंहार की खबरें आने लगी थीं. भारत की स्वतंत्रता में क्या है 8 अगस्त की अहमियत, जानने के लिए क्लिक करें.
यह घटना 12 अगस्त 1942 की है. भारत छोड़ो आंदोलन के तहत तारा और उनके पति फुलेंद्र ने अपने साथियों के साथ सीवान पुलिस स्टेशन के सामने भारत का झंडा फहराने के लिए निकल पड़े. वहीं अंग्रेज अफसर नहीं चाहते थे कि तारा और फुलेंद्र किसी भी कीमत में भारत के झंडे को वहां फहरा पाएं. इनको रोकने के लिए पुलिस ने पहले लाठी चार्ज की और फिर सीधी गोलियों की बरसात कर दी.
एक गोली सीधे आकर फुलेंद्र के सीने पर लगी. इस समय झंडा तारा के हाथ में था. अब तारा के सामने दो विकल्प थे, पहला- वह अपने पति के प्राण बचाए और दूसरा- भारत के झंडे को पहरा कर आंदोलन को मजबूत करे. यहां पर तारा ने एक कड़ा फैसला लिया. उन्होंने अपनी साड़ी का एक हिस्सा फाड़ा और उसे फुलेंद्र के सीने में बांध दिया. फिर फुलेंद्र को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आंदोलन को आगे बढ़ा दिया. यह भी पढ़ें: 7 AUG 1947: भारत से पहले कहां फहराया तिरंगा? गांधी ने राष्ट्रध्वज के सामने झुकने से किया इनकार! दिलचस्प है किस्सा… भारत के नए राष्ट्रध्वज का चुनाव हो चुका था. 7 अगस्त 1947 शायद वह पहली तारीख थी, जब भारत के नए राष्ट्रध्वज को आधिकारिक तौर पर विदेश में फहराया गया हो. कौन सा था वह देश और महात्मा गांधी ने राष्ट्रध्वज के सामने झुकने से क्यों किया इंकार, जानने के लिए क्लिक करें.
कुछ समय के प्रयास के बाद पुलिस को तारा और उसके साथियों के सामने घुटने टेकने पड़े. तारा पुलिस स्टेशन के सामने तिरंगा फहराने में कामयाब हो गई. तिरंगा फहराने के बाद जह वह अपने पति के पास पहुंची, तब तक वह देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे चुके थे. वीरांगना तारा ने पति की शहादत के बाद भी स्वतंत्रता के आंदोलन में अपनी भागेदारी जारी रखी और अंग्रेजी हुकूमत से लड़ती रहीं.
Tags: 15 August, Independence dayFIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 13:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed